भोपाल: विधानसभा की समितियों द्वारा दिए जाने वाले सुझावों को सरकार हल्के में नहीं ले सकेगी. सरकार और उनके विभागों को समय सीमा में उस पर एक्शन लेना होगा. विधानसभा की समितियों को पहले के मुकाबले और उपयोगी बनाने के लिए मध्य प्रदेश सहित 7 विधानसभाओं के अध्यक्षों की बैठक की गई. बैठक में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष और उनके अधिकारी शामिल हुए.
बैठक में समितियों को कुशल बनाने के लिए सभी ने अपने-अपने सुझाव दिए हैं. अब इसको लेकर देश की दूसरी विधानसभा अध्यक्षों को भी पत्र लिखकर उनके सुझाव मंगाए जाएंगे.
समितियां शासन से मांगती है जवाब
मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में 7 राज्यों की समिति की पहली बैठक भोपाल में हुई. दरअसल, जब विधानसभा की बैठकें नहीं होती उस वक्त विधानसभा की समितियां विधायिका के तौर पर काम करती हैं. नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि "मध्य प्रदेश में 4 वित्तीय समितियां हैं. इसके अलावा अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग की 2 समितियां और बाकी 15 अलग-अलग समितियां हैं. जिसमें पक्ष और विपक्ष मिलकर सदस्यों को समितियों में नामांकित करती है.
यह समितियां विभिन्न विभागों से जुड़े कामों का निरीक्षण करती हैं, भ्रमण करती हैं और जरूरत पड़ने पर शासन को बुलाकर संबंधित विषय पर चर्चा भी करती है. सरकार की तरफ से दिए गए अपूर्ण उत्तर हो या फिर राज्य सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन उन पर समितियां निगरानी करती है, ताकि उन पर काम हो सके."
सभी विधानसभाओं को लिखा जाएगा पत्र
दरअसल अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के शताब्दी वर्ष सम्मेलन में विधानसभा की समितियों को और बेहतर बनाने के लिए 7 राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों की एक समिति बनाई गई है. इसकी पहली बैठक भोपाल में हुई. नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि "जैसे-जैसे देश की आबादी बढ़ रही है और तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है. उसी तरह विधानसभा का काम और जिम्मेदारी भी बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि विधानसभा समितियों को काम करने की और स्वतंत्रता देनी चाहिए. समितियों का काम सबके सामने आना चाहिए. साथ ही समितियों की अनुशंसा का समय सीमा में पालन होना चाहिए. इन सभी को लेकर पहली बैठक में कई तरह के सुझाव आए हैं. अब इसको लेकर देश की दूसरी विधानसभा अध्यक्षों को भी पत्र लिखकर उनसे सुझाव मांगे जाएंगे. समिति की अगली बैठक राजस्थान में होगी.