छतरपुर: सावन का पावन महीना चल रहा है. देशभर के सभी शिवालयों में हर-हर महादेव की गूंज है. मंदिरों में बेलपत्र चढ़ाए जा रहे हैं, गंगाजल से अभिषेक हो रहा है. भक्ति के इस रंग में हर कोना शिवमय हो गया है, लेकिन छतरपुर में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर है, जहां न तो कोई भक्त पहुंच रहा है और न ही इस पौराणिक और रहस्यमई मंदिर का कहीं कोई जिक्र है. आज हम आपको काशी विश्वनाथ की तर्ज पर बने इस भव्य और दिव्य मंदिर से परिचित कराएंगे और आपको इस मंदिर की महत्ता से भी अवगत कराएंगे.
महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
छतरपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर मऊ सहनिया में स्थित इस मंदिर को 'भीमकुंड मंदिर समूह' के नाम से जाना जाता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर की स्थापना 9वीं-10वीं शताब्दी में हुई थी. इस प्राचीन मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. स्थानीय निवासी और इतिहास के जानकार अप्पू राजा सोनी बताते हैं कि "अज्ञातवास के दौरान जब पांडव यहां से गुजर रहे थे, तो उन्हें बहुत जोर से प्यास लगी थी. प्यास से व्याकुल पांडवों ने आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन उन्हें कहीं पानी नजर नहीं आया.
इसके बाद महाबलशाली भीम ने अपने गदे से एक चट्टान पर प्रहार किया और वहीं से एक जलधारा फूट पड़ी. आज उस जलधारा को 'भीमकुंड' के नाम से जाना जाता है और इस पहाड़ को 'फटा पहाड़' कहा जाने लगा. यहां का जल आज भी शुद्ध, निर्मल और अविरल बहता है". अप्पू राजा सोनी कहते हैं कि "यह जल शिव की कृपा और भीम के पराक्रम का प्रतीक है, जो रोगों से मुक्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है."
बिना गारे के इस्तेमाल से बनाया गया है मंदिर
यहां 4 प्राचीन मंदिरों के साथ एक भव्य शिव मंदिर विद्यमान है, जो काशी विश्वनाथ की तर्ज पर बना है. इसकी अद्भुत कलाकृति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह विशाल और भव्य मंदिर बिना किसी गारे (सीमेंट) के एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोड़कर बनाया गया है. मंदिर के चारों ओर माता रानी, नीलकंठ, श्री राम और हनुमान के प्राचीन मंदिर भी हैं. चट्टानों पर उकेरे गए शिल्प इसे आध्यात्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक धरोहर भी बनाते हैं.
छिपी हुई काशी मानते हैं लोग
भीमकुंड समूह मंदिर चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इस शिव धाम को प्राकृतिक सुंदरता मन मोह लेती है. हालांकि पहाड़ों से घिरे होने की वजह से इस रमणीय और मनोरम स्थल तक लोगों की पहुंच उतनी नहीं है, जितनी बाकी के दैवीय स्थलों तक है. कुछ लोग इसको छिपी हुई काशी भी कहते हैं. यहां भीड़-भाड़ नहीं रहती, तो भगवान की भक्ति और आराधना करने वालों के लिए ये शानदार स्थल है.
मंदिर को संरक्षित करने की मांग
छतरपुर के रिटायर्ड प्रोफेसर और इतिहासकार सीएम शुक्ला बताते हैं कि "ये मंदिर 9वीं-10वीं सदी के पहले के मंदिर हैं. चंदेल शासन के पहले प्रतिहारों का शासन था. ये मंदिर उस समय के हैं. यह इलाका महाराजा छत्रशाल की कर्मभूमि भी रहा है. लोग इसको महाभारत काल से भी जोड़कर देखते हैं.
यहां पर एक काशी विश्वनाथ मंदिर जैसी बनावट का शिव मंदिर बना हुआ है. इसके अलावा और 4 छोटे-छोटे मंदिर हैं, जो पत्थरों के बने हैं. एक कुंड जो अति प्राचीन हैं." सरपंच प्रतिनिधी अप्पू राजा सोनी का कहना है कि इस प्राचीन स्थल को संरक्षित करने की जरूरत है, नहीं तो ये अपना अस्तित्व जल्द ही खो देगा.