काशी के इस मंदिर हर साल तिल के बराबर बढ़ता है शिवलिंग, सावन में दर्शन मात्र से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य

सावन का पावन माह चल रहा है. ऐसे में शिवनगरी काशी, जहां की हर गली में शिव की महिमा गूंजती है, वहां कई मंदिर हैं, जो ना केवल चमत्कार की कहानी कहते हैं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच के रिश्ते को भी दिखाते हैं. ऐसा ही एक मंदिर है, तिलभांडेश्वर महादेव का, जो एक अनूठा चमत्कार समेटे हुए है. इस मंदिर का स्वयंभू शिवलिंग हर साल मकर संक्रांति पर तिल के बराबर बढ़ता है, जिसका उल्लेख शिव पुराण के काशी खंड में मिलता है. सावन मास में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है और मनोकामना पूर्ति के लिए पूजा अर्चना करते हैं.

ऋषि विभांड की थी तप स्थली
मान्यता है कि काशी के तिलभांडेश्वर मंदिर के दर्शन करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है, जो भक्तों की आस्था को और गहरा करता है. काशी विश्वनाथ मंदिर से महज 500 मीटर दूर, पांडे हवेली में स्थित यह मंदिर ऋषि विभांड की तपस्थली पर बना है. यह क्षेत्र ऋषि विभांड की तप स्थली थी और यहीं पर वह ध्यान लगाकर पूजा करते थे. उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया था कि यह शिवलिंग (तिलभांडेश्वर) हर साल तिल के बराबर बढ़ता रहेगा. तिल के बराबर बढ़ते रहने से और ऋषि विभांड के नाम पर इस मंदिर को तिलभांडेश्वर नाम मिला है.
मंदिर को लेकर मान्यता
धर्म शास्त्र में इस मंदिर के बारे में कथा उल्लेखित है, जिसके अनुसार भगवान शिव ने ऋषि को वरदान दिया था कि उनका शिवलिंग कलयुग में हर साल तिल जितना बढ़ेगा. तिलभांडेश्वर मंदिर में भक्त कालसर्प दोष की शांति के लिए भी पूजा करते हैं. मंदिर में भोलेनाथ के अलावा कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं. मान्यताओं के अनुसार, सावन मास के दौरान इस मंदिर के दर्शन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता और व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है.

दर्शन मात्र से मिटते हैं पाप
काशीवासियों के साथ ही देश-दुनिया से लोग बाबा के दर्शन को यहां पहुंचते हैं. काशी की रहने वाली श्रद्धालु रीता त्रिपाठी ने बताया कि हम लोग काफी समय से मंदिर आते रहे हैं. तिलभांडेश्वर हर साल तिल के बराबर बढ़ता है. सावन में पूरे माह में बाबा के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं. बाबा स्वयंभू हैं और इनके दर्शन करने से पाप मिट जाते हैं और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है. माना जाता है कि तिलभांडेश्वर मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था.
ग्रह-नक्षत्र के कष्टों से मिलती है मुक्ति
उत्तर प्रदेश, पर्यटन विभाग के अनुसार, काशी नगरी में हर शिवलिंग का अपना अलग महात्म्य है. यहां अति प्राचीन तिलभांडेश्वर महादेव का पौराणिक इतिहास भी है. यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग 500 मीटर दूर, पांडेय हवेली के पास स्थित है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का शिवलिंग विराजमान है. यहां सावन के साथ ही महाशिवरात्रि और प्रदोष पर भी भक्तों की भीड़ लगती है. सावन, महाशिवरात्रि और प्रदोष व्रत पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. भक्त तिल, जौ और जल चढ़ाकर कालसर्प दोष, ग्रह-नक्षत्रों के कष्टों से मुक्ति पाते हैं. मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मंत्रमुग्ध करती हैं.