रीवा: प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गोविंदगढ़ का यह ऐतिहासिक किला लगभग 170 वर्ष पुराना है. यह किला कभी रीवा रियासत के महाराजाओं की शान हुआ करता था. इस भव्य किले का निर्माण साल 1851 में रीवा रियासत के महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव ने कराया था. लेकिन समय बीतता गया और किले का अस्तित्व खत्म होता चला गया. देखरेख के अभाव में एक विशालकाय और खूबसूरत किला खंडहर में तब्दील हो गया.
बीते कई वर्षों से सरकार इसके संरक्षण के लिए योजनाएं तो बना रही थी लेकिन इसे मूर्तरूप नहीं दिया जा सका, बीते कुछ वर्ष पूर्व ही किले का वास्तविक रूप लौटाने के लिए सरकार के द्वारा वाइल्ड लाइफ हेरिटेज कंपनी को इसका काम सौंप दिया गया है. मगर स्थिति जस की तस बनी हुई है.
महाराजा विश्वनाथ सिंह ने कराया निर्माण
इतिहासकार असद खान ने बताया, "रीवा रियासत में अब तक 37 राजाओं की पीढ़ी ने राज किया. इन्हीं राजाओं में से एक राजा थे महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव. महाराजा विश्वनाथ जूदेव के पुत्र थे रघुराज सिंह जूदेव. जिनका विवाह साल 1851 में उदयपुर के महाराजा की बेटी राजकुमारी सौभाग्य कुमारी के साथ सम्पन्न हुआ था.
विवाह से पहले उदयपुर के महाराजा ने रीवा महाराजा विश्वनाथ सिंह के सामने उदयपुर स्थित लेक पैलेस की तर्ज पर रीवा में एक भव्य किला निर्माण कराने की शर्त रखी थी जो की प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हो. इसके बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव ने उनकी शर्त मान ली और गोविंदगढ़ में एक महल का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया."
गोविंदगढ़ तालाब का ऐतिहासिक महत्व
महल के निर्माण कार्य से पहले एक विशालकाय तालाब का निर्माण कार्य कराया गया, जिसका नाम विश्वनाथ सरोवर रखा गया. जिसे आज गोविंदगढ़ तालाब भी कहा जाता है. तालाब के ही किनारे एक किले का निर्माण कराया गया जो की उदयपुर के लेक पैलेस से मिलता-जुलता था.
असद खान ने बताया कि "साल 1851 में किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 4 वर्ष बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव का निधन हो गया. जिसके बाद आगे का निर्माण कार्य उनके पुत्र महाराजा रघुराज सिंह जूदेव की देखरेख में किया गया. शर्त के अनुसार महाराजा रघुराज सिंह जूदेव का विवाह उदयपुर की राजकुमारी सौभाग्य कुमरी के साथ संपन्न हुआ था. रीवा राजघराने की महारानी बनने के बाद इसी गोविंदगढ़ के किले में उनका निवास हुआ."
वृंदावन की तर्ज पर बना गोविंदगढ़ का कस्बा
इस ऐतिहासिक किले के निर्माण कार्य के दौरान उसके आसपास बड़ी संख्या में मंदिरों का भी निर्माण कार्य कराया गया. इतिहासकार असद खान ने अनुसार "वृंदावन की तर्ज पर कस्बे को विकसित किया गया, जिनमें से एक मंदिर में रमा गोविंद भगवान जबकि अन्य सभी मंदिरों में अलग-अलग भगवानों की भव्य और बेशकीमती मूर्तियों की स्थापना की गई. तब से इस कस्बे का नाम गोविंदगढ़ हुआ.
जबकि पहले गोविंदगढ़ को खंदो के नाम से जाना जाता था. समय बीतने के साथ ही इस ऐतिहासिक किले और मंदिरों के अंदर रखी बेशकीमती मूर्तियों पर तस्करों की नजर पड़ी और कई मंदिरों से मूर्तिया चोरी कर ली गईं."
पहला सफेद बाघ मोहन इसी किले में पला बढ़ा
साल 1951 में विश्व के पहले सफेद बाघ मोहन को गोविंदगढ़ से लगे सीधी स्थित बरगड़ी के जंगलों से पकड़ा गया था. सफेद शेर को महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव ने पकड़ा था. सफेद बाघ महाराजा को इतना भा गया कि उन्होंने इसे अपने साथ गोविंदगढ़ के किले में रखा और उसका नाम मोहन रखा.
आज दुनिया भर के चिड़ियाघरों में जितने भी सफेद शेर मौजूद हैं वे सभी सफेद बाघ मोहन के ही वंशज हैं. इसी गोविंदगढ़ किले में 25 वर्षों तक मोहन की देखरेख की गई. लगभग 1976 के दरमियान मोहन ने अंतिम सांस ली. जिसकी याद में किले के बाहर आंगन में ही उसकी समाधि भी बनाई गई है.
देखरेख के अभाव में खंडहर हुआ किला
महाराजा रघुराज सिंह जूदेव के बाद उनके पुत्र गुलाब सिंह और महाराजा गुलाब सिंह जूदेव के बाद उनके पुत्र महाराजा मार्तण्ड सिंह के कार्यकाल में लगातार इस किले का विस्तार होता रहा. इसके बाद राजतंत्र समाप्त हुआ और लोकतंत्र स्थापित होने के बाद से प्रशासनिक अनदेखी के चलते प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर खूबसूरत इस विशालकाय किले का अस्तित्व खोता चला गया और 170 वर्ष पुराना यह किला खंडहर में तब्दील हो गया.
राज्य सरकार ने 1985 में लिया अपने अधीन
साल 1985 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने इस किले को राज्य सरकार के आधीन ले लिया. इसके बाद इसमें पुलिस कार्यशाला का संचालन शुरू कर दिया गया. वहीं देखरेख के अभाव में यह किला जीर्णशीर्ण होने लगा, तो कुछ वर्षों बाद इसे पुरातत्व विभाग के हवाले कर दिया गया. प्रशासनिक अभाव का दंश झेलता किला जर्जर होता चला गया और बाद में किले की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंप दी गई.
100 करोड़ की लागत से होना था जीर्णोद्धार
किले का रिनोवेशन करने के लिए राज्य सरकार के द्वारा वर्ष 2010 में 3 साल के भीतर काम पूरा करने की शर्त पर मेसर्स मैगपाई रिसोर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को काम सौंपा गया, लेकिन 5 वर्ष तक कार्य शुरू नहीं हुआ. 5 साल के बाद समीक्षा कर अनुबंध निरस्त कर दिया गया. कंपनी की ओर से जमानत की जमा कराई गई 1.72 करोड़ की राशि को जब्त कर लिया गया.
