बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना इस समय लगातार अंतरिम सरकार पर निशाना साध रही हैं. शेख हसीना ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में तख्तापलट को लेकर दावा किया है कि मैंने अस्थायी रूप से जाने का फैसला किया. शेख हसीना का कहना है कि उन्होंने कभी इस्तीफा नहीं दिया, कभी सत्ता नहीं छोड़ी, बल्कि उन्हें गैर-निर्वाचित तरीके से सत्ता छीनकर बाहर किया गया. शेख हसीना देश की चार बार की प्रधानमंत्री हैं. बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद शेख हसीना दिल्ली में एक गुप्त स्थान पर रह रहीं हैं.
इसी के बाद इन दिनों एक के बाद एक शेख हसीना के इंटरव्यू सामने आ रहे हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में तख्तापलट को लेकर उन्होंने पाकिस्तान और अमेरिका पर बड़े आरोप लगाए. उन्होंने हाल ही में एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में अपने शासन के गिरने, उसके बाद फैली हिंसा और मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार के बारे में बात की. साथ ही वो जनविद्रोह को खारिज करती हैं, अपने विरोधियों पर उग्रवादियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाती हैं और चेतावनी देती हैं कि उनके जाने के बाद से बांग्लादेश की अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं पर सुनियोजित हमले बढ़े हैं.
भारत से की अपील
हाल ही में दिए इंटरव्यू में शेख हसीना ने 2024 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान अत्यधिक बल प्रयोग के आरोपों, अपने राजनीतिक भविष्य और आगामी चुनाव में उनकी संभावित वापसी पर खुलकर जवाब दिया. हसीना का कहना है कि भारत — जिसे वो बांग्लादेश का सबसे अहम संबंध मानती हैं उसको ऐसे किसी भी चुनाव को वैधता नहीं देनी चाहिए जिसमें अवामी लीग को बाहर रखा जाए.
वो यह भी बताती हैं कि नया जुलाई चार्टर देश के इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश है और उन मूल सिद्धांतों को कमजोर करता है जिन्हें उनके पिता, शेख मुजीबुर रहमान, ने स्वतंत्रता के समय स्थापित किया था.
जब बांग्लादेश भारत के साथ बढ़ते तनाव और चीन की बढ़ती मौजूदगी के बीच एक भू-राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है, हसीना अंतरिम सरकार की अब तक की सबसे कड़ी आलोचना पेश करती हैं — और आगाह करती हैं कि दांव पर सिर्फ बांग्लादेश का भविष्य नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता है.
इस्तीफे को लेकर क्या कहा?
शेख हसीना ने कहा, मैंने न तो इस्तीफा लिखा, न हस्ताक्षर किए, और न ही कोई इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपा. अगस्त में जो हुआ वो एक संवैधानिक सत्ता-हस्तांतरण नहीं था, बल्कि बिना चुने हुए लोगों की ओर से सत्ता छीनने की कार्रवाई थी. अगस्त की शुरुआत तक सुरक्षा हालात इतने बिगड़ चुके थे कि मेरी जान के खिलाफ विश्वसनीय खतरे पैदा हो गए थे. मेरी सुरक्षा और मेरे आसपास के लोगों की सुरक्षा को देखते हुए मुझे देश छोड़ने की सलाह दी गई.
उन्होंने आगे कहा, उस समय मेरे सामने दो विकल्प थे — या तो उग्रवादी ताकतों की मांगों के सामने झुक जाऊं, या फिर खुद को तत्काल खतरे से दूर करके अपने लोगों को और हिंसा से बचाऊं. मैंने हालात को और बिगड़ने से रोकने और किसी भी तरह का और खून-खराबा होने से रोकने के लिए अस्थायी रूप से देश छोड़ने का निर्णय लिया. मेरा जाना मजबूरी और अस्तित्व का सवाल था, त्याग या पद छोड़ने का नहीं.
आंदोलन को लेकर क्या कहा?
शेख हसीना ने साल 2024 में उनके खिलाफ शुरू हुए आंदोलन को लेकर कहा, शुरुआत में यह आंदोलान छात्रों की आर्थिक और सामाजिक शिकायतों से जुड़ा था, लेकिन बहुत जल्दी इसे उग्रवादी गुटों और उन ताकतों ने हाइजैक कर लिया जिनका मकसद बांग्लादेश की लोकतांत्रिक संरचना को खत्म करना था.
उन्होंने आगे कहा, हिंसा का अचानक भड़कना, देश की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक पार्टी पर प्रतिबंध लगाना और सत्ता का तुरंत युनुस के आस-पास एक छोटे समूह में केंद्रीकरण होना, ये सब दिखाता है कि यह लोकतांत्रिक सुधार का आंदोलन कभी था ही नहीं. यह जनआंदोलन से कहीं अधिक एक तख्तापलट था.
अगर यह वाकई जनता का आंदोलन होता, तो यूनुस अब तक जनता के बीच जाकर निष्पक्ष चुनाव के जरिए अपनी वैधता क्यों नहीं परखते?
हिंदू समुदाय पर हुए अत्याचार को लेकर क्या कहा?
शेख हसीना ने कहा, अगस्त 2024 के बाद से हिंदू समुदायों और अन्य अल्पसंख्यकों पर होने वाले व्यवस्थित हमले कोई बेमतलब की हिंसक घटनाएं नहीं हैं. वो एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा हैं, जिसे कट्टरपंथी तत्व चला रहे हैं जिन्हें वर्तमान प्रशासन ने हिम्मत और सहारा दिया है.
उन्होंने आगे कहा, मेरी सरकार के दौरान, हमने सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए कड़ी मेहनत की, चाहे वो किसी भी धर्म के हों. बांग्लादेश की स्थापना धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर हुई थी जो विविधता का सम्मान करते हैं. लेकिन, अब धार्मिक अल्पसंख्यक भय में जी रहे हैं. उनके मंदिरों पर हमले हो रहे हैं, उनके कारोबार नष्ट किए जा रहे हैं और उनके परिवारों को धमकाया जा रहा है.
अंतरिम सरकार का अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल होना सिर्फ लापरवाही नहीं है — यह मिलीभगत है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चुप नहीं रहना चाहिए जबकि बांग्लादेश के हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक इस अत्याचार का सामना कर रहे हैं.
