हिंदू धर्म में प्रत्येक तिथि और प्रत्येक वार का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है. इन्हीं पावन तिथियों में माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन संकट चतुर्थी और तिल चौथ का व्रत किया जाता है, जो भगवान गणेश को समर्पित होता है. गणपति महाराज को प्रथम पूज्य देवता का स्थान प्राप्त है, इसलिए हर महीने आने वाली चतुर्थी तिथि उनकी आराधना के लिए विशेष मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को रखने से जीवन में आने वाले कष्ट, बाधाएं और संकट दूर होते हैं. मान्यता है कि संकट चतुर्थी के दिन श्रद्धा और विधि-विधान से गणपति बप्पा की पूजा करने से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है. साथ ही मानसिक तनाव और नकारात्मक ऊर्जा से भी मुक्ति मिलती है. उज्जैन के प्रसिद्ध आचार्य आनंद भारद्वाज से जानते हैं कि साल 2026 के जनवरी माह में आने वाली पहली संकट चतुर्थी कब है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा किस विधि से करनी चाहिए ताकि गणपति महाराज की विशेष कृपा प्राप्त हो सके.
वैदिक पंचांग के अनुसार, नए साल में माघ कृष्ण चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 6 जनवरी को सुबह 8 बजकर 1 मिनट पर होगा. यह तिथि 7 जनवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट तक मान्य रहेगी. ऐसे में सकट चौथ का व्रत 6 जनवरी 2026 दिन मंगलवार को रखा जाएगा.
तिल और गुड़ का दान
सकट चौथ को कई स्थानों पर तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. इस पावन दिन तिल का दान अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है, इसलिए सकट चौथ पर तिल और गुड़ का दान अवश्य करना चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से शनि दोष का प्रभाव कम होता है और जीवन में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं. साथ ही समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है.
गर्म वस्त्रों का दान
माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली सकट चौथ के समय ठंड अपने चरम पर होती है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति या योग्य ब्राह्मण को कंबल, ऊनी वस्त्र या जूते-चप्पल का दान करने से पितृ दोष शांत होता है. साथ ही संतान से जुड़ी परेशानियों और कष्टों से भी राहत मिलती है.
अन्न दान का महत्व
भूखे व्यक्ति को भोजन कराना सबसे श्रेष्ठ दान माना गया है. सकट चौथ के अवसर पर अनाज का दान करने से घर में अन्न और धन की कभी कमी नहीं होती. धार्मिक मान्यता है कि इससे आर्थिक संकट दूर होता है और परिवार में समृद्धि बनी रहती है.
तांबे के पात्र और दक्षिणा का दान
सकट चौथ की पूजा संपन्न होने के बाद किसी ब्राह्मण को तांबे का पात्र और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देना व्रत की पूर्णता का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों में कहा गया है कि दक्षिणा के बिना कोई भी पूजा अधूरी रहती है, इसलिए अंत में श्रद्धा भाव से दक्षिणा अवश्य अर्पित करें.
