नए साल में लगेगा बिजली का करंट, 10% तक बढ़ सकते हैं रेट, जबलपुर में विरोध प्रदर्शन

जबलपुर : मध्य प्रदेश में बिजली कंपनियां बिजली के दाम 10% तक बढ़ाना चाहती हैं. बिजली कंपनियों ने नियामक आयोग में टैरिफ पिटीशन पेश की है. जबलपुर के नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच का कहना है "इस बार की टैरिफ पिटीशन में कुछ ऐसा हुआ, जो इसके पहले कभी देखने में नहीं आया. इस अनियमितता के खिलाफ नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच अब आयोग के सामने जनसुनवाई में तो विरोध करेगा." सोमवार को भी लोगों ने सड़क पर भी उतरकर आंदोलन किया.

बिजली कंपनियों की फिजूलखर्ची, भुगतेगी जनता

उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच का कहना है "बिजली कंपनियों ने बीते कुछ सालों में कुछ ऐसे खर्च किए हैं, जिनका फायदा जनता को नहीं मिला बल्कि इसका नुकसान बिजली कंपनियों को उठाना पड़ा. अब उस नुकसान की भरपाई आम जनता से होने जा रही है. 3451 करोड़ रुपए की राशि बिजली कंपनियां बिल के माध्यम से अब आम जनता से वसूलने जा रही हैं."

नियामक आयोग की भूमिका पर भी सवाल

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के संरक्षक डॉ. पी.जी. नाजपांडे का कहना है "अभी तक बिजली कंपनियां कम दरों पर बिजली खरीदती हैं और महंगी दर पर जनता को बेचती रही हैं. बिजली की महंगी कीमत के खिलाफ आम जनता अपनी बात विद्युत नियामक आयोग के सामने रखता रहा है, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि विद्युत नियामक आयोग ने ही बिजली कंपनियों के पुराने घाटे की राशि को इस बार के घाटे में शामिल करके जनता से वसूलने का प्रस्ताव बिजली कंपनियों के माध्यम से रखवाया है, यह बेहद आपत्तिजनक है."

स्मार्ट मीटर की राशि जनता से वसूलने की तैयारी

बिजली मामलों के जानकार रिटायर्ड इंजीनियर राजेंद्र अग्रवाल का कहना है "बिजली कंपनियां पहले भी इस राशि को जनता से वसूलने के लिए नियामक आयोग के सामने आई थीं लेकिन नियामक आयोग ने खुद ही यह खारिज कर दिया था कि यह राशि जनता से नहीं वसूली जा सकती. इस 3451 करोड़ में कई ऐसे खर्चे हैं जो बिना बताए जनता के ऊपर लादे गए हैं. इनमें स्मार्ट मीटर की खरीदी पर हुआ खर्च भी अब जनता से वसूलने की तैयारी की जा रही है."

इसके साथ ही सरकार की कई सब्सिडी जो सरकार ने बिजली कंपनियों को नहीं दी और जिसकी वजह से बिजली कंपनियां घाटे में है. इन्हें भी अब जनता से वसूलने की तैयारी की जा रही है.

 

इस बार जनसुनवाई नहीं, ऑनलाइन की सुविधा

राजेंद्र अग्रवाल का कहना है "बिजली कंपनियां जब भी दाम बढ़ाती हैं तो उसके खिलाफ यदि कोई आपत्ति दर्ज करवाना चाहता है तो उसके लिए एक सुविधा होती थी और जनसुनवाई होती थी लेकिन इस बार की जनसुनवाई में आम जनता को अपनी बात रखने के लिए जनसुनवाई की बजाय ऑनलाइन का मौका दिया गया है. ऑनलाइन के जरिए अपनी आपत्ति दर्ज करवाना एक कठिन काम है और इसमें आम आदमी अपनी बात नहीं रख पाता."

राजेंद्र अग्रवाल का कहना है "एक तरफ जीएसटी कम होने की वजह से कोयले के दाम कम हुए. लोगों को उम्मीद थी कि इसका फायदा आम जनता को मिलेगा लेकिन उसकी बजाय बिजली के दाम बढ़ाए जा रहे हैं. महंगी बिजली का असर सबसे ज्यादा कारोबार पर पड़ता है और कई बार उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से कारोबारी कारोबार बंद तक कर देते हैं."