लुधियाना पश्चिमी विधान सभा क्षेत्र में हुए उप चुनाव में पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु को एक और हार का सामना करना पड़ा। इस विधान सभा क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक बने आशु को अब लगातार दूसरी हार भी मिली है। पहले वह आप के गुरप्रीत बस्सी गोगी से 2022 में हार गए थे। जबकि 2025 में उप चुनाव में उन्हें आप के ही संजीव अरोड़ा के हाथों हारना पड़ा।
आशु की इस हार के बाद अब पार्टी में जंग छिड़नी तय है। क्योंकि आशु और उनके गुट ने अपने दम पर उप-चुनाव लड़ा था। आशु ने प्रदेश प्रधान व लुधियाना के सांसद अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा को प्रचार में आने नहीं दिया था। प्रदेश प्रधान राजा वड़िंग और आशु के बीच खींचतान 2024 के लोक सभा चुनाव के दौरान ही शुरू हो गई थी। वहीं, विजिलेंस द्वारा आशु को गिरफ्तार किए जाने के बाद से ही दोनों नेताओं के लड़ाई सतह पर आ गई थी।
'चुनाव में नहीं दिया साथ'
यही कारण था कि आशु ने पूरा चुनाव अपने दम पर लड़ा और हार की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ही ली। आशु के अकेले लड़ने की वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने प्रदेश प्रभारी भूपेश बघेल के पास यह शिकायत भी की कि लुधियाना में पार्टी नहीं बल्कि आशु लड़ रहे हैं। क्योंकि आशु के प्रचार से प्रदेश प्रधान और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा पूर्ण रूप से गायब थे।
आशु के हार के बाद अब पार्टी के अंदर जंग छिड़नी लगभग तय हो गई है। क्योंकि उप चुनाव के दौरान ही कांग्रेस पार्टी दो हिस्सों में बंटी नजर आ रही थी।
राजा और बाजवा के विरोधी खुल कर लुधियाना में आशु के समर्थन में उतर गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और कपूरथला के विधायक राणा गुरजीत सिंह समेत एक दर्जन से भी अधिक वरिष्ठ नेताओं ने आशु के हक में प्रचार किया। जबकि राजा और बाजवा की एंट्री महज प्रचार के अंतिम समय में प्रदेश प्रभारी के साथ हुई।
आशु की हार के बाद यह तय हैं कि राजा और बाजवा के समर्थक अब चुप नहीं रहेंगे। पार्टी के अंदर खींचतान और बढ़ सकती है।
मैं यह स्वीकार करता हूं कि लुधियाना पश्चिमी में कांग्रेस के वर्करों ने सरकार की पूरी मशीनरी के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। यह एक उप चुनाव था। हमारी लड़ाई 2027 तक जारी रहेगी जब तक वह सही नतीजे पर न पहुंच जाए।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि पार्टी को मिले वोट इस बात के संकेत हैं कि पंजाब के लोग आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के आगे राज्य के लिए कोई ठोस बदलाव देख रहे हैं। यह चुनाव इस बात के संकेत देते हैं कि 2027 के लिए हम पूरे जोश और योजनाबद्ध तरीके से अपना काम शुरू करें। यह चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए भी शीशे की तरह है। जो पूरी सरकारी मशीनरी के साथ चुनाव लड़ी लेकिन मामूली अंतर से ही चुनाव जीत पाई।