कैलाश सोनी
पूर्व राज्यसभा सांसद
एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकतंत्र सेनानी संघ
आजादी के बाद देश के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 मनहूस काला दिन है। इस दिन दुनिया की श्रेष्ठतम शासन व्यवस्था लोकतंत्र को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता की भूख के लिये सारे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर मध्यरात्रि में देश पर आपातकाल लगाकर अपनी तानाशाही स्थापित कर दी। देश की वर्तमान पीढ़ी को इस काले इतिहास के सारे घनाक्रम को जानना बहुत जरूरी है, इससे आने वाले समय में देश की चेतना लोकतंत्र की चुनौतियों व खतरों से सतर्क रहें। लोकतंत्र चिरजीवी होकर अबाध गति से स्थापित रहे। वर्तमान सरकार ने इस दिन को संविधान हत्या दिवस घोषित कर बड़ा काम किया है। नई पीढ़ी की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति निष्ठा बढ़े, इसके लिए इस दिन एक श्रेष्ठ कार्यक्रम का आयोजन अम्बेडकर भवन दिल्ली में किया गया है। अन्य संस्थान, पत्रकार, लेखक, पूरे देश में इस काले इतिहास पर 25 एवं 26 जून को विभिन्न आयोजन कर रहे हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि देश में लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था कितनी गहरी है। देश को यह जानना नितांत आवश्यक है कि 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। उनके ही दल में कांग्रेस में विचार- विमर्श हुआ कि वर्तमान में जो चुने हुये प्रतिनिधि है, वे बैठकर अपने नये नेता का चुनाव कर लेंगे। दूसरे दिन बैठक में निर्णय होना था, परंतु 25 जून 1975 की मध्य रात्रि में आनन- फानन में इमरजेंसी घोषित कर दी गई। इंटरनल इमरजेंसी के लिए यह आवश्यक है देश के आधे से अधिक प्रदेश जब लिखित में ये मांग करें कि हमारे यहां कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है, तब केन्द्रीय मंत्रिमंडल में सबकी सहमति से राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देश के भीतर आपातकाल घोषित हो सकता है। ऐसी किसी भी प्रक्रिया का पालन किये बगैर उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करके अवैधानिक तरीके से देश पर आपातकाल थोपने का पाप किया गया। काश उस समय संविधान के प्रति आस्था रखने वाले राष्ट्रपति होते, तो इस तानाशाही और नृशंसता से देश बच जाता। व्यक्तिनिष्ठा भय में काम करने वाले सदैव देश के लिये खतरा बनते हैं।
आपातकाल लगाने के समय दूसरा पाप इस देश की न्यायपालिका ने किया। इतिहास में इस देश ने वह न्यायपालिका भी देखी जब तीन- तीन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को सुपर सीड करके अपनी मर्जी से मुख्य न्यायाधीश बनाये गये। देश के सामने बेशर्मी के साथ भूतलक्षी प्रभाव से कानूनों में परिवर्तन करके श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने पक्ष में निर्णय लिया। देश के 9 उच्च न्यायालयों के निर्णयों को बदलकर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 4- 1 के सहमत से आपात काल को वैध घोषित कर दिया, इसमें वो जज भी शामिल थे, जो वरीयता तोड़कर बनाये गये थे। काश न्यायपालिका उस समय ठीक निर्णय कर पाती तो देश को आपातकाल नहीं भोगना पड़ता। श्रीमती गांधी द्वारा अपनी सत्ता के लिये पूरे देश को कारागार बना दिया गया। देश के महान विचारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल जी, जार्ज फर्नाडीज, सर्वोदयी, समाजवादी, भारतीय जनसंघ, आर.एस.एस., आनंदमार्गी, कांग्रेस सहित विभिन्न दलों के भी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। दो सौ से अधिक पत्रकार, विदेशी पत्रकार देश में प्रतिबंधित कर दिये। एक लाख 8 हजार से अधिक लोगों को मीसा डी.आई.आर. में और हजारों लोगों को धारा 151 में बंद कर दिया गया। मीडिया पर पाबंदी लगा दी गई। इस बारे में कोई अपील कोर्ट में नहीं की जा सकती थी। देश में पुलिस को असीमित अधिकार दे दिये गये थे। किसी को पुलिस द्वारा गोली मार देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो सकती थी। उस समय के हुकमरानों का आदेश ही कानून बन गया था। दुनिया मानती है कि हिंदुस्तान के लोगों के खून में ही लोकतंत्र है। यहां के संस्कारों में सभी को समान रूप से जीवन यापन की आजादी है। कुछ समय के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों में अस्थिरता आ सकती है, परंतु देश फिर ताकत के साथ खड़ा हो जाता है।
आपातकाल के सबसे बड़े याद्धा वे रहे, जिन्हें जेलों में बंद कर दिया गया था। जेल से छूटने का समय निश्चित नहीं था। कैदियों को तो मालूम था कि वे कब छूटेंगे, परंतु राजनैतिक बंदियों को नहीं पता था। आपातकाल के दौरान जेल के भीतर कई लोग पागल हो गये, 100 से अधिक लोगों की असमय मौत हो गई। इन सबके बावजूद आर.एस.एस. के आव्हान पर आपातकाल से आजादी और लोकतंत्र को बहाल करने के लिए आंदोलन चलाये गये। आंदोलन के दौरान हजारों लोगों को जेल में डाला गया। उन्हें इतनी यातनायें दी गई कि कुछ लोगों की असमय मौत भी हो गई। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी सहित लोकतंत्र में आस्था रखने वाले अन्य लोगों ने दुनिया में अपनी बात पहुंचाई, ताकि देश में लोकतंत्र को सुरक्षित रखा जा सके। आपातकाल के संघर्ष को अटल जी और जार्ज फर्नांडीज ने आजादी की दूसरी लड़ाई बताया। लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष करने वालों को सम्मान देने का निर्णय सबसे पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह ने किया, जिसे बाद में मुख्यमंत्री रही सुश्री मायावती ने बंद कर दिया। इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि यह उचित नहीं है। लोकतंत्र पुन: स्थापित करने के लिए संघर्ष करने वाले लोकतंत्र सेनानी वे लोग हैं, जो जब- जब लोकतंत्र पर आघात होगा, तब- तब देश के लोगों को लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाये रखने के लिए प्रेरित करेंगे। देश की नई पीढ़ी को आपातकाल के संघर्ष को जानना बेहद जरूरी है, ताकि देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को बरकरार रखा जा सके। साथ ही लोग लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा ले सकें।