कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने प्रशासन में कन्नड़ भाषा के व्यापक उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एक कड़ा परिपत्र जारी किया है. इसके अनुसार अब से सभी सरकारी विभागों को आधिकारिक कार्यों में कन्नड़ का अनिवार्य प्रयोग करना होगा. उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है. इसके साथ ही दुकानों की नेमप्लेट में भी कन्नड़ का प्रयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया है. सरकारी भाषा में कन्नड़ भाषा का इस्तेमाल अनिवार्य, उल्लंघन करने पर होगी कार्रवाई… कर्नाटक सरकार का बड़ा आदेश
कर्नाटक में कन्नड़ भाषा की स्थिति को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच सिद्धारमैया सरकार ने प्रशासन में कन्नड़ के व्यापक उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एक सख्त सर्कुलर जारी किया है. राज्य की मुख्य सचिव शालिनी रजनीश ने बुधवार को एक अहम परिपत्र जारी करते हुए सभी सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डों और स्थानीय निकायों को निर्देश दिया कि वे सभी आधिकारिक कार्यों में कन्नड़ भाषा का अनिवार्य रूप से प्रयोग करें.सरकार ने यह कदम कन्नड़ भाषा समग्र विकास अधिनियम के उचित क्रियान्वयन की कमी और कन्नड़ भाषा के सार्वजनिक जीवन से धीरे-धीरे हटने की आशंका के बीच उठाया है.
मुख्य सचिव द्वारा जारी इस परिपत्र में स्पष्ट किया गया है कि अब सभी प्रकार के सरकारी आदेश, नियुक्तियां, स्थानांतरण, छुट्टी से संबंधित आदेश, नोटिस, कार्यालयीय पत्राचार, आंतरिक फाइल नोट्स तथा रिकॉर्ड बुक आदि कन्नड़ भाषा में ही तैयार किए जाएं. केवल केंद्र सरकार, अन्य राज्यों और न्यायालयों के साथ किए जाने वाले पत्राचार को इस नियम से छूट दी गई है.
उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी
इसके साथ ही कार्यालयों की नामपट्टिकाएं भी अनिवार्य रूप से कन्नड़ में प्रदर्शित की जानी चाहिए. इसके अलावा कन्नड़ में प्राप्त होने वाले सभी पत्रों और आवेदनों का उत्तर कन्नड़ में ही दिया जाना आवश्यक होगा. विधायी कार्यवाही और सभी प्रकार के आधिकारिक दस्तावेज भी अब कन्नड़ में तैयार किए जाने का निर्देश दिया गया है.
परिपत्र में यह भी चेतावनी दी गई है कि इन निर्देशों का पालन न करने पर संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. मुख्य सचिव ने यह भी कहा कि यह सभी अधिकारियों और कर्मचारियों का कर्तव्य है कि वे भाषा नीति को सभी स्तरों पर पूरी निष्ठा से लागू करें.
दुकानों की नेमप्लेट में 60 फीसदी कन्नड़ का इस्तेमाल
इससे पहले राज्य सरकार ने निर्देश जारी किया था कि दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की नामपट्टिकाओं में कम से कम 60% कन्नड़ भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए. सरकार ने अध्यादेश लाकर अधिनियम में संशोधन भी किया था, ताकि नामपट्टिकाओं में कन्नड़ को प्राथमिकता दी जा सके. हालांकि, यह नियम जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाया है. कई कन्नड़ समर्थक संगठनों ने इस मुद्दे पर सरकार से सख्त कदम उठाने की मांग की थी. उनका कहना है कि राज्य में सार्वजनिक स्थानों पर कन्नड़ भाषा का प्रयोग लगातार कम हो रहा है और इससे कन्नड़ की सांस्कृतिक पहचान को खतरा है. कन्नड़ भाषा समग्र विकास अधिनियम को लागू करने के बावजूद कर्नाटक में भाषायी असंतुलन की स्थिति बनी हुई है. सार्वजनिक संस्थानों, निजी कंपनियों, यहां तक कि कई सरकारी कार्यालयों में भी अंग्रेजी या अन्य भाषाओं का अधिक प्रयोग हो रहा है, जिससे कन्नड़ को धीरे-धीरे पीछे धकेला जा रहा है.