नई दिल्ली। गर्भ में पल रही पहली संतान से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी शोभिता स्मार्टफोन पर सर्च करती रहीं। कुछ भी खाने से पहले स्मार्टफोन, बच्चे के फोटोशूट के बारे में जानना हुआ तो भी स्मार्टफोन और इस तरह इंटरनेट मीडिया की दुनिया पैरेंटिंग के सफर में उनकी हमराही बन गई। बच्चे के पहले कदम से लेकर उसकी तोतली जुबान में बनी रील तक को शोभिता बड़े गर्व से इंटरनेट मीडिया पर शेयर करती रहीं।
कभी कुछ जानने तो कभी दुनिया के साथ अपडेट रहने के लिए, स्मार्टफोन के साथ माता-पिता की जुगलबंदी अब परमानेंट हो चुकी है। उनकी यह आदत अब उनके बच्चों को भी लग चुकी है क्योंकि व्यस्त दिनचर्या के बीच जब पैरेंट्स को अपना काम करना होता है तो वो झट से बच्चे के हाथ में स्मार्टफोन पकड़ा देते है। बच्चे तो स्मार्टफोन के बारे में जानते तक नहीं, मगर माता-पिता की देखादेखी और माता-पिता द्वारा समय देने के बजाय यूट्यूब की स्क्रीन के आगे बैठा देना बच्चों को बना रहा है स्मार्टफोन का आदी।
जरूरत बन गई लत
इंटरनेट मीडिया ऐसी चीज है जिसे सही तरीके से इस्तेमाल करें तो यह जीवन के लिए सकारात्मक है, मगर गलत तरीका इसे खतरनाक बना देता है। चिकित्सकीय सलाह से लेकर बच्चों के टीचर्स, यहां सब एक क्लिक पर उपलब्ध हैं। बच्चों के जन्म से पहले से लेकर बाद तक के सारे माइलस्टोन, बच्चों का खाना, सोना, बीमारियां और उनके सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक व मनोवैज्ञानिक विषय पर जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है। एकल परिवार, वर्किंग पैरेंट्स और समय की मांग ने स्मार्टफोन की जरूरत को साबित किया है। मगर जरूरत कब लत बन गई, इसकी खबर लगने तक पानी सिर से ऊपर हो जाता है। माता-पिता जरूरी बातों के लिए स्मार्टफोन की ओर हाथ बढ़ाते ही हैं, इसके अलावा दिन का काफी समय रील स्क्राल करने में ही खर्च कर देते हैं। यही आदतें बच्चे आपसे देखते-सीखते हैं और उन्हें इंटरनेट मीडिया पर रहना या बिना किसी वजह भी स्मार्टफोन के नोटिफिकेशन चेक करते रहना सामान्य लगता है।
स्मार्टफोन नहीं, समय दें
कई बार बातचीत के दौरान या काउंसलिंग सेशंस में पैरेंट्स स्वीकार करते हैं कि फोन पर स्क्रालिंग करते वक्त उनका ध्यान भटकता है और वह बच्चों की बातों और गतिविधियों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते हैं। यही नहीं, जहां पहले जो बातचीत आमने-सामने होती थी, वह बच्चों के साथ टेक्स्ट के रूप में होने लगी है, यह तब भी होता है जब बच्चे घर में ही होते हैं। ऐसा नहीं है कि स्मार्टफोन ने यूं ही बच्चों की दुनिया में जगह बना ली है। आप देखेंगे कि शैशवावस्था में ही माता-पिता बच्चों को यूट्यूब की नाचती-गाती दुनिया से मिला देते हैं। भले ही बच्चे स्क्रीन पर कविताएं या वर्णमाला सीखें, मगर सोचने वाली बात है कि यह काम माता-पिता स्वयं भी तो कर सकते हैं। इसी तरह बच्चे को व्यस्त रखना हो या स्वयं पैरेंट्स को आराम या कोई काम करना हो तो वे बच्चे को फोन दे देते हैं। आप पहले अपने आराम के लिए बच्चों को फोन देते हैं, मगर बाद में यही बच्चों के लिए नुकसानदेह हो जाता है, भविष्य में बच्चों के साथ आपके संबंध भी बस स्मार्टफोन तक सीमित रह जाते हैं। जबकि पैरेंट्स को समझना चाहिए कि इस दौरान बच्चों को आपके समय की ज्यादा आवश्यकता है। बच्चों के साथ आपका बिताया हर एक पल बेहतर रिश्तों के भविष्य की नींव रखता है।
आडियो डिवाइस बन रहीं सहारा
बच्चों में स्मार्टफोन की लत सिर्फ हमारी नहीं बल्कि दुनियाभर के पैरेंट्स की परेशानी बन चुकी है। अत्यधिक स्क्रीनटाइम के चलते बच्चों में बोलने संबंधी परेशानी तो आ ही रही है, साथ ही बच्चे आमने-सामने बात करने से कतराने लगे हैं। उनमें एडीएचडी (अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसआर्डर) की परेशानी तेजी से बढ़ रही है। पैरेंट्स बच्चों का ध्यान स्क्रीन से हटाने के लिए विकल्प ढूंढ रहे हैं। इसमें सहायक बन रही हैं आडियो डिवाइसेज। आडियो प्लेयर का एक लाभ यह है कि इसमें बच्चा स्क्रीन से दूर होता है। ऐसे में ध्यान आडियो पर केंद्रित होता है, जिससे बच्चे आवाज-कहानी की कल्पना करते हुए उसका चित्र अपने दिमाग में बनाते जाते हैं। जबकि स्क्रीन पर पहले से रंग-बिरंगी तस्वीरों की वजह से यह उनके लिए संभव नहीं होता।
- फोन देखने से मना करने पर बच्चा रोता-चिल्लाता या हाथ-पैर पटकता है तो इसका सीधा अर्थ है कि बच्चा स्क्रीन का आदी हो चुका है।
- बच्चा टैंट्रम दिखा रहा है, बोर हो रहा है या शरारत कर रहा है तो इसे रोकने के लिए स्मार्टफोन का सहारा कतई न लें।
- पढ़ाई के लिए भी स्मार्टफोन का सीमित उपयोग करने दें।
- बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें, स्वयं भी उनके साथ खेलें। यह आप दोनों का स्क्रीन समय नियंत्रित कर देता है।
- पेरेंट्स अपने लिए एक अच्छा सपोर्ट नेटवर्क बनाएं, जिसमें आपके दोस्त, बच्चों के सहपाठियों के माता-पिता और आपके