बेटे-बेटी की शादी बार-बार टल रही है? कुंडली के ग्रह क्यों बना रहे हैं विवाह में अड़चन? जानिए कारण और समाधान

हैदराबाद: विवाह न केवल दो लोगों के बीच का रिश्ता है, बल्कि यह दो परिवारों का भी पवित्र संबंध होता है. जब किसी योग्य कन्या या युवक का विवाह नहीं हो पा रहा हो या बार-बार बातचीत होते हुए भी बात बनते-बनते बिगड़ जाती हो, तो उसके पीछे केवल सामाजिक या मानसिक कारण ही नहीं होते, बल्कि गहरे ज्योतिषीय कारण भी हो सकते हैं.

भारतीय वैदिक ज्योतिष में विवाह की स्थिति और संभावनाएं व्यक्ति की जन्म कुंडली में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं. कई बार कुंडली में ऐसे ग्रह दोष या कमजोर स्थितियाँ होती हैं, जो विवाह में देरी का कारण बनती हैं. आइए जानते हैं वैदिक ज्योतिष और वास्तु विशेषज्ञ आदित्य झा से

कमजोर विवाह योग या सातवें भाव में ग्रह दोष
कुंडली में सप्तम भाव विवाह और जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करता है. यदि इस भाव में शुभ ग्रह न हों, या पाप ग्रहों (शनि, राहु, केतु) की युति या दृष्टि हो, तो विवाह में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं. कई बार सप्तम भाव का स्वामी अशुभ भावों में स्थित होता है या शत्रु ग्रहों से पीड़ित होता है, जिससे विवाह में विलंब होता है.

मांगलिक दोष
मंगल दोष एक सामान्य लेकिन प्रभावशाली कारण है विवाह में देरी का. जब जन्म कुंडली में मंगल ग्रह 1, 4, 7, 8 या 12वें भाव में स्थित होता है, तो व्यक्ति मांगलिक कहलाता है. यह दोष यदि उचित मिलान के बिना विवाह हो जाए तो वैवाहिक जीवन में कलह या दुर्भाग्य ला सकता है, और यदि यह दोष अधिक तीव्र हो तो विवाह में लम्बी देरी होती है.

दुर्बल या पीड़ित शुक्र ग्रह
शुक्र ग्रह, जिसे विवाह, प्रेम और भौतिक सुखों का कारक माना गया है, यदि कुंडली में कमजोर, अस्त या शत्रु ग्रहों से पीड़ित हो, तो जातक को विवाह में काफी विलंब हो सकता है. कमजोर शुक्र न केवल विवाह में देरी करता है, बल्कि वैवाहिक जीवन में भी असंतुलन और अस्थिरता ला सकता है.

शनि की दृष्टि और प्रभाव
शनि को न्यायप्रिय और कर्मफलदाता ग्रह माना जाता है, लेकिन इसकी दृष्टि जीवन में देरी और ठहराव लाती है. यदि शनि सप्तम भाव पर दृष्टि डाल रहा हो, या सप्तम भाव में उपस्थित हो, तो व्यक्ति को विवाह में धैर्य और लंबे इंतज़ार का सामना करना पड़ सकता है. शनि जीवन के हर बड़े निर्णय को समय ले कर ही पूर्ण करता है.

राहु और केतु का भ्रमित प्रभाव
राहु और केतु को छाया ग्रह कहा गया है, और इनका प्रभाव मानसिक व भावनात्मक स्थितियों पर बहुत अधिक पड़ता है. यदि सप्तम भाव में या सप्तम भाव के स्वामी के साथ राहु या केतु की युति हो, तो व्यक्ति सही जीवनसाथी के चुनाव को लेकर असमंजस में रहता है. कई बार राहु व्यक्ति को गलत निर्णय लेने पर भी मजबूर करता है, जिससे विवाह टलते जाते हैं.

प्रतिकूल ग्रह दशाएं
कई बार कुंडली में विवाह का समय आने के बावजूद, महादशा या अंतरदशा अशुभ ग्रह की चल रही होती है. इस दौरान विवाह की बातचीत में बार-बार बाधाएँ आती हैं या रिश्ता बनते-बनते बिगड़ जाता है. खासकर शनि, राहु, केतु या मंगल की प्रतिकूल दशाएं विवाह में देरी का प्रमुख कारण बनती हैं.

ज्योतिषीय उपाय: क्या करें विवाह योग को मजबूत करने के लिए?

  • शुक्र और गुरु ग्रह को बलवान बनाने के लिए शुक्रवार को माता लक्ष्मी और गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करें.
  • मांगलिक दोष निवारण के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करें और मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं.
  • राहु-केतु के प्रभाव से मुक्ति के लिए शनिवार को शनिदेव की पूजा करें और राहु-केतु शांति मंत्र का जाप करें.
  • कुंडली मिलान अवश्य करवाएं और किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से व्यक्तिगत परामर्श लें.
  • सप्तम भाव के दोष निवारण हेतु सप्तमेश (सप्तम भाव के स्वामी) की शांति हेतु विशेष पूजा करवाई जा सकती है.