चंडीगढ़। हरियाणा कांग्रेस (Haryana Congress) को बड़ा झटका लगा है। पूर्व मंत्री संपत सिंह (Former minister Sampat Singh) ने कांग्रेस (Congress) छोड़ दी है। आज उन्होंने अपना इस्तीफा (Resign) कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को भेज दिया। पार्टी छोड़ने का फैसले को उन्होंने पूरी तरह से व्यक्तिगत बताया है और किसी अन्य पार्टी में जाने पर अभी कोई विचार नहीं किया है। संपत सिंह ताऊ देवीलाल के जन्मदिवस पर 25 सितंबर को रोहतक में हुई इनेलो की रैली में गए थे। वह इनेलो से ही कांग्रेस में आए थे। हालांकि अभी उन्होंने किसी भी पार्टी को ज्वाइन करने के बारे में नहीं बताया है। उन्होंने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर भी सवाल उठाए थे। संपत सिंह का इस्तीफा हरियाणा कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित होगा।
लगातार अनदेखी और राज्य नेतृत्व पर सवाल उठाए
संपत सिंह ने चार पेज के अपने लंबे-चौड़े इस्तीफे में लगातार अनदेखी, विधानसभा क्षेत्र बदलने, टिकट न देने, जीतने पर मंत्री मंडल में जगह न देने, इलाके के विकास कार्यों के लिए सरकार होते हुए भी बजट न देने जैसे कई कारण गिनाए हैं। साथ ही राज्य नेतृत्व पर भी सवाल उठाए हैं। इसके अलावा कांग्रेस से लगातार हो रही दिग्गज नेताओं की अनदेखी और पलायन का उल्लेख करते हुए इसके कांग्रेस के लिए खतरनाक बताया है। कुलदीप बिश्नोई, धर्मबीर सिंह, किरण चौधरी, श्रुति चौधरी, अरविंद शर्मा, अशोक तंवर, अवतार भड़ाना, सावित्री जिंदल, नवीन जिंदल जैसे बड़े नेताओं के कांग्रेस छोड़ने का जिक्र किया है।
पार्टी की लगातार हार पर कोई जवाबदेही तय नहीं हुई
संपत सिंह ने लिखा कि लोकसभा चुनावों में दलित मतदाताओं ने भारी समर्थन देकर कांग्रेस को पांच सीटें जिताईं, परंतु राज्य नेतृत्व ने अहंकार और पारिवारिक हितों के कारण कुमारी सैलजा को हाशिये पर डाल दिया। उनके खिलाफ जातिसूचक टिप्पणियां और आपत्तिजनक वीडियो फैलाए गए। उनके समर्थकों को टिकट से वंचित कर दिया गया। परिणामस्वरूप दलित वर्ग ने कांग्रेस का बहिष्कार कर दिया। 2009 से 2024 तक पार्टी की लगातार हार पर कोई जवाबदेही तय नहीं हुई। वोट चोरी या टिकट चोरी के दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। 2005 में भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस ने 67 सीटें जीती थीं और उसके बाद से पराजयों का सिलसिला जारी है। हरियाणा की जनता अब राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व दोनों से निराश है। 2024 की हार के बाद स्वयं राहुल गांधी ने स्वीकार किया कि राज्य नेतृत्व ने व्यक्तिगत हितों को पार्टी से ऊपर रखा। फिर भी वही नेतृत्व बना रहा। इन परिस्थितियों में, मुझे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उस क्षमता पर विश्वास नहीं रहा कि वह हरियाणा की जनता के हितों का प्रतिनिधित्व कर सकती है। मैं एक गर्वित हरियाणवी हूं और अपने प्रदेश की जनता को निराश नहीं कर सकता। हरियाणा के प्रति मेरी प्रतिबद्धता अटूट है परंतु वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व में मेरा विश्वास समाप्त हो गया है। अतः मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना त्यागपत्र देने के लिए विवश हूं।
