मनरेगा से प्राकृतिक संतुलन की ओर एक सशक्त पहल

रायपुर : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में न केवल रोजगार के अवसर सृजित हो रहे हैं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सतत विकास भी सुनिश्चित किया जा रहा है। इसी क्रम में विकासखंड भैरमगढ़ से लगभग 15 किलोमीटर दूर, जिला दंतेवाड़ा की सीमा से लगे ग्राम पंचायत दारापाल के कच्चा घाटी में 300 नग कंटूर ट्रेंच का निर्माण कर एक अनुकरणीय कार्य किया गया है।

तीव्र ढलान वाली इस घाटी में वर्षों से वर्षा जल का तेज बहाव खेती योग्य भूमि को क्षति पहुँचा रहा था। इस समस्या के स्थायी समाधान के उद्देश्य से महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत कंटूर ट्रेंच निर्माण कार्य को प्राथमिकता से क्रियान्वित किया गया। इससे घाटी के आसपास की भूमि में नमी की मात्रा में वृद्धि हुई है, जिससे प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़-पौधों को जीवित रहने में मदद मिल रही है।

घाटी के ठीक नीचे 25 कृषकों की लगभग 150 एकड़ कृषि भूमि स्थित है, जिन्हें इस कार्य से प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त हो रहा है। कंटूर ट्रेंच के अतिरिक्त घाटी के निचले हिस्से में एक तालाब का निर्माण भी किया गया है, जिससे बहते हुए पानी को रोका जा सके और इसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सके।

ग्राम पंचायत दारापाल की तकनीकी सहायक ने जानकारी दी कि कलेक्टर एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत  के मार्गदर्शन में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन से जुड़े कार्यों को प्राथमिकता दी जा रही है। कन्टूर ट्रेंच निर्माण से जहां भूमि कटाव की समस्या पर नियंत्रण पाया गया है, वहीं इससे मृदा संरक्षण और जल संचयन को भी बढ़ावा मिला है। इस कार्य पर ₹4 लाख 68 हजार की लागत आई है तथा कुल 1929 मानव दिवस का सृजन किया गया है, जिससे स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार भी प्राप्त हुआ।

ग्राम दारापाल निवासी कृषक राजकुमार कश्यप, जिनकी 7 एकड़ भूमि घाटी के निचले हिस्से में स्थित है, ने बताया कि पूर्व में बारिश के दौरान घाटी से तेज बहाव के साथ झाड़ियाँ और कचरा खेतों में आकर फसल को नष्ट कर देते थे और मेड़ों का कटाव भी होता था। अब कंटूर ट्रेंच बनने से यह समस्या समाप्त हो गई है। उन्होंने यह भी बताया कि इस कार्य में श्रमिक के रूप में भाग लेने से उन्हें मजदूरी का लाभ भी मिला है।

महात्मा गांधी नरेगा योजना के माध्यम से ग्राम दारापाल में किया गया यह प्रयास पर्यावरणीय संरक्षण, कृषि भूमि की सुरक्षा, जल-संसाधन विकास एवं ग्रामीण रोजगार सृजन का उत्तम उदाहरण है। यह पहल ग्रामीण अंचलों में स्थायी विकास की दिशा में एक सार्थक कदम सिद्ध हो रही है।