गौरक्षक उत्पीड़न के विरोध में पशु व्यापारियों का कदम, जालना में मवेशी बाजार का बहिष्कार

महाराष्ट्र : महाराष्ट्र के जालना जिले में गौरक्षकों के हमलों के विरोध में पशु व्यापारियों ने साप्ताहिक बाजारों का बहिष्कार किया है। कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) के एक अधिकारी ने गुरुवार को यह जानकारी दी। इस बहिष्कार का निर्णय पिछले सप्ताह पशु व्यापारियों की एक बैठक में लिया गया था। 

साप्ताहिक बाजार हुए प्रभावित

स्थानीय एपीएमसी के सचिव अनिल खंडाले ने दावा किया कि जालना में 13 जुलाई से सभी 10 बड़े साप्ताहिक बाजारों में कारोबार बंद है। उन्होंने कहा कि मवेशियों के खरीदार न होने के कारण साप्ताहिक बाजार प्रभावित हुए हैं। किसान अपने जानवर ला रहे हैं, लेकिन व्यापारी उन्हें खरीदने से इनकार कर रहे हैं। 

चौधरी ने लगाए कई आरोप

अखिल भारतीय जमीयतुल कुरेश महाराष्ट्र के अध्यक्ष आरिफ चौधरी ने दावा किया कि राज्य के अन्य जिलों के व्यापारी भी स्वत्रंत रूप से बहिष्कार में शामिल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि एक बार पशुओं को जब्त कर लेने के बाद पुलिस अक्सर उन्हें गौशालाओं में छोड़ देती है। इससे मालिकों को उनकी वापसी के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। 

चौधरी ने यह भी आरोप लगाया कि निगरानी समूह चुनिंदा रूप से विशिष्ट समुदायों के सदस्यों को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि पशु व्यापार बहिष्कार के कारण राज्य में भैंस मांस प्रसंस्करण कंपनियां बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई हैं। उन्होंने कहा कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो बहिष्कार अनिश्चित काल तक जारी रहेगा।

पशु व्यापारियों की सुरक्षा की मांग

चौधरी ने कहा कि पशु व्यापारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में महाराष्ट्र की पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला से मुलाकात की। उन्हें अपनी शिकायतों से अवगत कराया और गौरक्षकों के उत्पीड़न से सुरक्षा की मांग की। उन्होंने राज्य सरकार और जिला प्रशासन से वैध पशु व्यापार में लगे लोगों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने का आग्रह किया।

महराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम,1976 का जिक्र 

सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अकीफ कुरैशी ने दावा किया कि महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम, 1976 (2015 में संशोधित किया गया) "गाय और उसके गोवंश के वध पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन गोजातीय पशुओं, मादा भैंसों और भैंस के बछड़ों के वध की अनुमति देता है"। उन्होंने आरोप लगाया कि कानून की वर्तमान व्याख्या वैध व्यापारियों के विरुद्ध अनुचित कार्रवाई को बढ़ावा दे रही है।