बी सुदर्शन रेड्डी को इंडिया ब्लॉक ने बनाया उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार

खड़गे बोले- रेड्डी भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविदों में से एक

नई दिल्ली। विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी को विपक्ष ने अपना उम्मीदवार बनाया है। इसका ऐलान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया। खड़गे ने कहा कि बी. सुदर्शन रेड्डी भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविदों में से एक हैं। उनका लंबा और प्रतिष्ठित कानूनी करियर रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक खड़गे ने बी सुदर्शन रेड्डी को विपक्ष की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया है। बता दें सुदर्शन रेड्डी सुप्रीम कोर्ट में जज के पद पर रह चुके हैं। खड़गे ने बताया कि वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश, गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में काम कर चुके हैं। साथ ही वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए भी काम करते रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुदर्शन रेड्डी को 12 जनवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया था। सुदर्शन रेड्डी 8 जुलाई 2011 को रिटायर हुए थे।
खड़गे ने कहा कि वे एक गरीब व्यक्ति है और अगर आप उनके कई फैसले पढ़ेंगे, तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने कैसे गरीबों का पक्ष लिया और संविधान और मौलिक अधिकारों की रक्षा की है। खड़गे ने कहा कि उनके नाम का ऐलान सबकी सहमति मिलने के बाद ही किया गया है। बता दें एनडीए की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के लिए सीपी राधाकृष्णन का नाम घोषित हो चुका है।
बता दें न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई 1946 को हुआ था। उन्होंने 27 दिसंबर 1971 को आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में पंजीकरण कराया और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में रिट और सिविल मामलों में वकालत की। वह 1988 से 1990 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट  में सरकारी वकील रहे। इसके बाद 1990 में करीब छह माह तक केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील के रूप में काम किया। साथ ही उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय के लिए विधिक सलाहकार और स्थायी अधिवक्ता के रूप में भी सेवाएं दीं। न्यायमूर्ति रेड्डी को 2 मई 1995 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया था। बाद में उन्हें 5 दिसंबर 2005 को गौहाटी हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। इसके बाद वे 12 जनवरी 2007 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। न्यायपालिका में अहम योगदान देने के बाद वे 8 जुलाई 2011 को रिटायर हो गए। अपने चार दशक लंबे विधिक और न्यायिक जीवन में उन्होंने निष्पक्षता, ईमानदारी और न्याय की परंपरा को मजबूत किया।