विदिशा: मध्य प्रदेश के विदिशा जिले का झूकरजोगी गांव रक्षाबंधन के अगले दिन मनाए जाने वाले भुजरिया पर्व को एक अनोखे और रोमांचक अंदाज में मनाने के लिए जाना जाता है. यहां यह पर्व सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि हथियारों की गूंज और निशानेबाजी की परंपरा के साथ खास रंग में रंग जाता है. गांव में भुजरिया पर्व की शुरुआत तब होती है, जब दर्जनों ग्रामीण बंदूकें लेकर निशानेबाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं. इस प्रतियोगिता में करीब तीन दर्जन से अधिक बंदूकधारी 200 फीट की दूरी से, 200 फीट से अधिक ऊंचाई पर बंधे नारियल को निशाना बनाने की कोशिश करते हैं.
महिलाओं की भुजरिया यात्रा की शर्त
यहां एक खास नियम है—जब तक कोई बंदूकधारी नारियल को सफलतापूर्वक फोड़ नहीं देता, तब तक महिलाएं भुजरियां लेकर गांव में घूमने के लिए नहीं निकल सकतीं. जैसे ही नारियल टूटता है, महिलाएं पारंपरिक लहंगी नृत्य और गीतों के साथ भुजरिया यात्रा शुरू करती हैं.
नारियल को तोड़ने में सफल रहने वाले को ग्राम पंचायत करती है सम्मानित
जो भी निशानेबाज नारियल को तोड़ने में सफल होता है, उसे ग्राम पंचायत द्वारा सम्मानित किया जाता है और एक निश्चित नकद राशि भेंट की जाती है. आयोजन की सुरक्षा के लिए पुलिस बल की तैनाती रहती है, जिससे पर्व हर्षोल्लास और सुरक्षित माहौल में संपन्न हो सके.
सदियों से चली आ रही पुरानी परंपरा
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसमें किसी जाति या समाज का भेदभाव नहीं है. भुजरिया का यह रूप चंबल क्षेत्र की पुरानी बंदूकों की गूंज और शौर्य की याद दिलाता है. लेकिन यहां यह शक्ति, एकता और उत्सव का प्रतीक बनकर सामने आता है. यह अनोखी परंपरा साबित करती है कि एक ही पर्व को अलग-अलग जगहों पर, कितने अलग और खास रंग में मनाया जा सकता है.
वहीं विदिशा में बेतवा नदी के तट पर रविवार को आस्था और परंपरा का संगम देखने को मिला. रविवार को भुजरिया विसर्जन के अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु नदी किनारे पहुंचे. शाम चार बजे से शुरू हुए इस आयोजन में श्रद्धालुओं ने पूरे उत्साह के साथ भुजरिया विसर्जन किया. सुरक्षा के मद्देनज़र प्रशासन ने पुख्ता इंतज़ाम किए हैं. एसडीआरएफ और होमगार्ड के जवान तैनात हैं, जबकि नदी पर नावों के जरिए भी निगरानी रखी गई है. परंपरा, आस्था और उत्साह के इस संगम ने विदिशा की सांस्कृतिक विरासत को एक बार फिर जीवंत कर दिया.