मौत के मुहाने पर मासूमों की क्लास, सीहोर के स्कूलों की दहला देने वाली तस्वीर

सीहोर। राजस्थान के झालावाड़ में स्कूल की छत गिरने से सात मासूमों की मौत की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन मध्यप्रदेश का सीहोर जिला इससे कोई सीख लेता नहीं दिख रहा है। जिले में 1557 शासकीय स्कूल हैं, जिनमें से करीब 200 स्कूल खस्ताहाल इमारतों में संचालित हो रहे हैं। इन भवनों की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे बच्चे

सीहोर जिले के कई स्कूलों की छतों में दरारें पड़ चुकी हैं। कई दीवारें झड़ चुकी हैं और छतों से सरिए बाहर निकल आए हैं। शासकीय प्राथमिक शाला लसूड़िया कांगर, इछावर की हालत ऐसी ही है। जहां 70 छात्र और तीन शिक्षक जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं। बारिश में छतों से पानी टपकता है, जिससे पढ़ाई बाधित होती है और हर समय दुर्घटना का डर बना रहता है।

टीन की छतें और पॉलिथीन का सहारा

कमला नेहरू माध्यमिक शाला सीहोर की छत टीन की चादरों से बनी है, जो बरसात में टपकती है। ऐसे में शिक्षक पॉलिथीन बिछाकर बच्चों को पढ़ाते हैं। यहां 37 बच्चे और तीन शिक्षक हैं, पर स्कूल में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। ये दृश्य सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति को दर्शाने के लिए काफी हैं।
 
गंदगी, जीव-जंतु और टूटी दीवारों का खौफ

प्राथमिक शाला दशहरा वाला, सीहोर में स्थिति और भी भयावह है। चारों तरफ गंदगी, टूटी दीवारें और जहरीले जीव-जंतुओं का डर हर समय बच्चों पर मंडराता रहता है। यहां पढ़ने वाले 29 बच्चे और दो शिक्षक रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल आते हैं। तमाम शिकायती पत्रों और आवेदन के बावजूद अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
 
जर्जर भवन बंद, लेकिन छात्रों को ठूंसा गया दूसरे कमरों में

हाई सेकेंडरी स्कूल निम्नागांव में स्कूल भवन पूरी तरह से असुरक्षित हो चुका है, जिससे उसे बंद कर दिया गया है। लेकिन कक्षा छह से आठ तक के 100 से अधिक बच्चों को अन्य कक्षों में एक साथ बैठा कर पढ़ाया जा रहा है। इससे न केवल पढ़ाई बाधित हो रही है, बल्कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।
 
भय और तनाव के बीच जारी है शिक्षा

इन हालातों में पालक अपने बच्चों को रोज डर के साए में स्कूल भेजते हैं। वे मजबूरी में शिक्षा दिला रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर हर दिन आशंका बनी रहती है कि कहीं कोई हादसा न हो जाए। वहीं शिक्षक भी लगातार तनाव में रहते हैं, क्योंकि वे बच्चों की सुरक्षा को लेकर खुद को जिम्मेदार मानते हैं।

शिक्षा विभाग और प्रशासन पर गंभीर सवाल

जहां एक ओर देशभर में जर्जर स्कूल भवनों की समीक्षा और पुनर्निर्माण की कवायद शुरू हो चुकी है, वहीं सीहोर में अब तक सिर्फ कागजी योजनाएं बन रही हैं। न तो मरम्मत की कोई स्पष्ट योजना सामने आई है और न ही कोई आपातकालीन कार्य योजना बन पाई है।
 
क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार है?

डीपीसी आर.आर. उइके का कहना है कि माध्यमिक स्तर के 93 स्कूलों में मरम्मत कार्य चल रहा है और हाई सेकेंडरी स्कूलों की देखरेख जिला शिक्षा अधिकारी करते हैं, जिन्हें प्रति स्कूल 3.50 लाख रुपये की राशि शासन से मिलती है। कलेक्टर बालागुरु के. ने भी निर्देश दिए हैं कि जर्जर भवनों में कक्षाएं न लगें, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात जस के तस बने हुए हैं।