हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समय बेहद खास माना जाता है. यह 16 दिन पूर्वजों को याद करने, उनके लिए श्राद्ध करने और आशीर्वाद पाने का अवसर होता है. कहा जाता है कि इस दौरान कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है, वरना पितरों की कृपा की जगह नाराज़गी मिल सकती है. उन्हीं नियमों में से एक है लोहे का सामान न खरीदना. ज्योतिष के अनुसार, लोहा शनि ग्रह से जुड़ा होता है और पितृपक्ष में इसे घर लाना अशुभ माना जाता है. माना जाता है कि इस दौरान लोहे की वस्तु खरीदने से घर की सुख-शांति और बरकत पर असर पड़ता है. आइए जानते हैं
पितृपक्ष में क्यों नहीं खरीदा जाता लोहे का सामान?
पितृपक्ष का समय पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए माना जाता है. लोग इस दौरान नई चीजें खरीदने से बचते हैं क्योंकि यह समय भोग-विलास का नहीं बल्कि श्रद्धा और सादगी का होता है. लोहे का संबंध शनि ग्रह से होता है और शनि को न्याय का देवता कहा जाता है. पंडितों का मानना है कि अगर पितृपक्ष में लोहा खरीदा जाए तो यह शनि को अप्रसन्न करता है. इसके कारण जीवन में कठिनाइयां बढ़ सकती हैं और पितरों के आशीर्वाद में रुकावटें आ सकती हैं.
लोहा एक कठोर धातु है, जिसे नकारात्मक ऊर्जा और संघर्ष का प्रतीक माना जाता है. जबकि पितृपक्ष का महत्व शांति, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है. इसलिए इस समय लोहे का सामान खरीदना सही नहीं माना जाता.
किन लोहे के सामानों से बचना चाहिए?
पितृपक्ष में हर तरह के लोहे के सामान से बचना चाहिए, लेकिन खासतौर पर किचन से जुड़े लोहे के बर्तन और औज़ार बिल्कुल नहीं खरीदने चाहिए. किचन घर का सबसे पवित्र स्थान होता है क्योंकि यहीं से पूरे परिवार का भोजन बनता है. कहा जाता है कि इस दौरान किचन में लोहे का नया सामान लाने से बरकत कम हो सकती है और नेगेटिव एनर्जी बढ़ सकती है.
इसके अलावा घर की सजावट या रोज़मर्रा के काम आने वाले लोहे के सामान जैसे दरवाज़े, ताले या औज़ार भी इस समय खरीदने से बचना चाहिए.
लोहा दान करना क्यों होता है शुभ?
जहां पितृपक्ष में लोहा खरीदना अशुभ माना जाता है, वहीं इसे दान करना बेहद शुभ होता है. इस समय तिल, काले कपड़े और लोहे से बनी वस्तुएं दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. दान-पुण्य पितृपक्ष का सबसे अहम हिस्सा है. यह माना जाता है कि दान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है और परिवार पर सुख-समृद्धि बनी रहती है.