चुनाव दूर लेकिन तमिलनाडु में गरमाई सियासत, सहयोगी दलों ने डीएमके से मांगी ज्यादा विधानसभा सीटें

चेन्नई। तमिलनाडु में 2026 विधानसभा चुनाव भले ही अभी दूर नजर आ रहा है, लेकिन सियासी सरगर्मियां तेज़ हो चुकी हैं। सत्तारूढ़ डीएमके गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों ने सीटों के बंटवारे को लेकर अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक, सीपीआई(एम) और वीसीके जैसे दल आने वाले चुनाव में ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग करने की तैयारी में हैं। यह स्थिति मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन के लिए एक बड़ी रणनीतिक चुनौती बन सकती है। 
दरअसल 2021 विधानसभा चुनाव में सीटों का जो बंटवारा हुआ था, उसमें डीएमके ने अपने गठबंधन सहयोगियों को सीमित हिस्सेदारी दी थी। इस बंटवारे के मुताबिक डीएमके ने 188 सीटों पर चुनाव लड़ी, कांग्रेस 25 सीटों पर और वीसीके, सीपीआई, सीपीआई(एम) ने 6-6 सीटों पर और आईयूएमएल 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।  
अब जबकि सीपीआई(एम) और वीसीके अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में पकड़ मजबूत होने का दावा कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी सीटों की संख्या में इजाफा किया जाए। सीपीआई(एम) की मांग है कि वह कम से कम 10 सीटों पर चुनाव लड़े, वहीं वीसीके भी दोगुनी हिस्सेदारी चाहता है। 
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि डीएमके गठबंधन का एक सहयोगी दल बीजेपी से बातचीत कर रहा है। भले ही इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह संभावना जताई जा रही है कि सीटों के बंटवारे को लेकर असंतोष कुछ दलों को गठबंधन से बाहर निकलने या नई राह चुनने की ओर धकेल सकता है।
डीएमके का लक्ष्य और दवाब
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही 2026 चुनाव में 200 सीटें जीतने का लक्ष्य घोषित कर चुके हैं। ऐसे में यदि सहयोगी दल ज्यादा सीटों की मांग करते हैं तो यह उनके इस लक्ष्य को प्रभावित कर सकता है। अब स्टालिन को तय करना होगा कि गठबंधन की एकता को प्राथमिकता दें या स्वयं की जीत की संभावना वाले प्रत्याशियों को तरजीह दें।  यह संतुलन बनाना चुनावी रणनीति का सबसे अहम पहलू साबित हो सकता है। 

क्या गठबंधन में दरार संभव है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि डीएमके ने सहयोगियों की मांगों पर सकारात्मक रुख नहीं दिखाया, तो इससे गठबंधन में दरार पड़ सकती है। खासकर यदि सीपीआई(एम) या वीसीके जैसे दल अलग राह चुनते हैं तो यह डीएमके के वोट शेयर को सीधा प्रभावित कर सकता है। तमिलनाडु की राजनीति में फिलहाल कूटनीति और संतुलन का दौर शुरू हो चुका है। सहयोगी दलों की मांगें और विपक्षी खेमे की सक्रियता आने वाले महीनों में राजनीतिक समीकरणों को नया रूप दे सकती हैं। फिलहाल, सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि डीएमके नेतृत्व इन मांगों का जवाब कैसे देता है।