पंजाब और जम्मू में बाढ़, बारिश, भूस्खलन से 40 साल में सबसे बड़ी तबाही!

30,000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान, 400 से ज्यादा लोगों की गई जान

नई दिल्ली।  इस साल देश में मानसून का कहर हर तरफ देखने को मिल रहा है। खासकर उत्तर भारत के कई इलाकों हुई भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं ने हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में तबाही मचाई। उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य लगातार भारी बारिश और फ्लैश फ्लड से तबाह हो गए हैं। इस प्राकृतिक आपदा ने पहाड़ों को कीचड़ भरी नदियों और मैदान को विशाल समुद्रों में बदल दिए हैं। अधिकारियों और मौसम वैज्ञानिकों ने इसे पिछले चार दशकों में उत्तर भारत की सबसे भयावह बाढ़ बताया है। इस प्राकृतिक आपदा में 400 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और दस लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। वहीं  तीनों राज्यों में कुल आर्थिक नुकसान 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है।
इस आपदा ने तीन राज्यों में हुई आर्थिक तबाही के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। राज्य सरकारों और केंद्रीय गृह मंत्रालय के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, तीनों राज्यों में कुल आर्थिक नुकसान 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है।  इसी बीच बीमा कंपनियां हजारों करोड़ के क्लेम की तैयारी कर रही हैं। इस नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने 3,000 करोड़ रुपये की अंतरिम राहत जारी की है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि पुनर्निर्माण के लिए इससे कहीं अधिक की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि सडक़ें, पुल, बिजली लाइनें, सिंचाई नहरें और पेयजल ढांचा तबाह हो चुका है। इस प्राकृतिक आपदा में 400 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और दस लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। स्कूल और कॉलेज बंद हैं, राहत शिविर भरे हुए हैं और स्वास्थ्य अधिकारियों ने जलजनित बीमारियों की चेतावनी दी है। फिलहाल हिमाचल, पंजाब और जम्मू के लोग अपने घरों-गलियों से मलबे को समेट रहे हैं, पानी के उतरने और मदद के सरकारी वादों के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं।

बढ़ रही हैं प्रकृतिक आपदाएं
जलवायु वैज्ञानिक इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि ऐसी चरम घटनाएं जो कभी 50 साल में एक बार होने की आशंका थी, अब लगातार बढ़ती जा रही हैं। हिमालय, वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से गर्म हो रहा है और तेजी से बर्फ और बर्फ पिघल रही है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही वनों की कटाई, खनन और नदी तटों और बाढ़ के मैदानों पर बेतहाशा निर्माण ने धरती के प्राकृतिक आघात अवशोषक को नष्ट कर दिया है। इस बाढ़ ने साल 1998 के पंजाब बाढ़ की यादों को ताजा कर दिया है, जब सिंधु जल सिस्टम की नदियों ने खेतो और कस्बों को डुबो दिया था, लेकिन इस बार जलवायु परिवर्तन, अनियोजित शहरीकरण और जर्जर बुनियादी ढांचे ने  इस प्रकृति प्रकोप को बढ़ावा दिया है। इस बार भी सिंधु नदी प्रणाली (जिसमें सिंधु, रावी, सतलुज, झेलम, चिनाब और ब्यास शामिल हैं) उफान पर हैं।

कुल्लू-मंडी और किन्नौर में भारी तबाही
इसका सबसे पहले दंश हिमाचल प्रदेश ने झेला, जहां लगातार बादल फटने के कारण कुल्लू, मंडी और किन्नौर जिलों की खड़ी ढलानें ढह गईं और चट्टानें-मलबा नदियों में बह गया। इसके अलावा ब्यास और सतलज नदियों ने कई जगहों पर तटबंध तोड़ दिए। बाढ़ में 250 से ज्यादा सडक़ें बह गई, जिनमें चंडीगढ़-मनाली राजमार्ग का हिस्सा भी शामिल है। सतलुज पर नाथपा झकरी जैसे बड़े जलविद्युत संयंत्रों में गाद भरने से टर्बाइन बंद करनी पड़ी हैं। उधर, शिमला और कुल्लू के सेब के बाग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। हिमाचल के अधिकारियों का अनुमान है कि 10,000 हेक्टेयर से ज्यादा बागवानी जमीन बर्बाद हो गई है,  जिससे किसानों की आय को कम से कम दो सीजन पीछे चली गई है। 31 अगस्त तक हिमाचल में 220 से अधिक लोगों की मौत और 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान का अनुमान लगाया गया है।

राजौरी-पूंछ में टूटे पुल
जम्मू में चिनाब और झेलम नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। राजौरी और पूंछ में पुल टूट गए, जिससे कई गांव अलग-थलग पड़ गए। श्रीनगर में लोग 2014 की बाढ़ की यादों के साथ झेलम के खतरे के निशान तक पहुंचने की आशंका से डरे रहे। हालांकि। इस बार तटबंध टिके रहे, फिर भी हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना पड़ा। जम्मू-कश्मीर में 40,000 घर और 90,000 हेक्टेयर धान की फसलें बर्बाद हो गई हैं। शुरुआती  सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य को 6,500 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान का अनुमान है।

पंजाब के 1800 गांव जलमग्न
वहीं, नहर-नालों से घिरे पंजाब में तबाही का बड़ा मंजर देखने को मिला है, जहां भाखड़ा नांगल बांध से छोड़े गए अतिरिक्त पानी से सतलज नदी में उफान आ गया। इस पानी से रोपड़, लुधियाना, जालंधर और फिरोजपुर में भीषण तबाही मचा दी तो घग्गर और रावी ने स्थिति को और भी बदतर कर दिया, जिससे प्रशासन की मुसीबत बढ़ गई हैं। 30 अगस्त तक 1800 से ज्यादा गांव जलमग्न हो चुके हैं, 250,000 हेक्टेयर खेतों में पानी भर गया, जिससे 9000 करोड़ रुपये की फसलें नष्ट हो गईं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पंजाब में कटाई के लिए तैयार धान, कपास और गन्ने की फसलें कई दिनों तक पानी में डूबी रहीं। जालंधर और कपूरथला में पोल्ट्री फार्मों ने दस लाख से अधिक पक्षियों की मराने जानी की सूचना दी है। इसके अलावा डेयरी सहकारी समितियों ने दूध की कमी की चेतावनी दी है। 120,000 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए और हजारों घर पूरी तरह बह गए, जिससे लाखों लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हैं। वहीं, पंजाब के उद्योग भी प्रभावित हुए हैं, लुधियाना का होजरी उद्योग बंद हो गया और फगवाड़ा व अमृतसर के खाद्य प्रसंस्करण केंद्र जलमग्न हो गए हैं।