हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत को विशेष पुण्यदायक माना गया है. यह न केवल आत्मशुद्धि का माध्यम है, बल्कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करने का अवसर भी है. सालभर में 24 एकादशियाँ आती हैं हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में एक-एक.
कि एकादशी व्रत सिर्फ व्रत रखने का नाम नहीं, बल्कि एक नियमबद्ध तपस्या है. यदि इसमें कुछ गलतियां हो जाएं, तो व्रत अधूरा रह जाता है और इसका पूरा फल नहीं मिल पाता.
एकादशी व्रत के लाभ
पं. शुक्ला के अनुसार, “जो भी श्रद्धा और नियम से एकादशी का व्रत करता है, उसके समस्त पापों का क्षय होता है और उसे जीवन में शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.” भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और पारिवारिक सुख भी बढ़ते हैं.
व्रत को अधूरा बना देती हैं ये सामान्य गलतियां
दोपहर में सोना या सुबह देर तक उठना:
व्रत के दिन आलस्य वर्जित माना गया है. दोपहर में सोने से मानसिक शुद्धता पर असर पड़ता है और शास्त्रों के अनुसार व्रत का फल कम हो जाता है.
लहसुन-प्याज और तामसिक भोजन:
एकादशी के दिन व्रती को पूरी तरह सात्विक आहार पर रहना चाहिए. प्याज, लहसुन जैसे तामसिक तत्वों का सेवन व्रत की पवित्रता को प्रभावित करता है.
कटु वचन और नकारात्मकता से परहेज:
किसी को अपशब्द कहना या मन में नकारात्मक विचार लाना व्रत को अपवित्र कर देता है. व्रत के दौरान मन, वाणी और आचरण तीनों में शुद्धता अत्यंत आवश्यक है.
पूजा की विधि और धार्मिक व्यवहार
पं. शुक्ला बताते हैं कि एकादशी के दिन सुबह स्नान कर के भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए, साथ ही तुलसी दल, पीले फूल और पंचामृत का प्रयोग कर उन्हें भोग अर्पण करें. पूरे दिन भक्ति, ध्यान और दान में मन लगाना चाहिए.
व्रत को बनाएं सफल, न कि दिखावा
व्रत का उद्देश्य केवल शरीर को कष्ट देना नहीं, बल्कि मन और आत्मा को शुद्ध करना है. इसलिए केवल भोजन त्यागना ही नहीं, बल्कि आचरण सुधारना भी व्रत की सफलता की कुंजी है.