“इंदौर की सराफा चौपाटी बारूद के ढेर पर? स्वाद के पीछे छिपा बड़ा खतरा!”

इंदौर।  मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर कई मायनों में देश का बिरला शहर है। यहां संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, उद्योग धंधे सब बड़ी तेजी से पनपते और फैलते हैं। देश की आजादी के पहले यह होल्कर रियासत का केंद्र रहा। आजादी के बाद पहले मध्य भारत और फिर मध्य प्रदेश का प्रमुख शहर बनकर उभरा और अब देश का सबसे स्वच्छ शहर होने के साथ ही बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में स्वाद की राजधानी भी है। 

इंदौर के स्वाद की राजधानी बनने की बात करें तो करीब 80 साल पहले इसकी शुरुआत सराफा बाजार में जेवर और घेवर की बिक्री से हुई। चूंकि, सराफा होल्कर रियासत के मुख्यालय रजवाड़े के सबसे समीप था। इसलिए यह सोना चांदी, हीरे जवाहरात, कपास, अफीम के साथ मावा मिठाइयों और नमकीन का भी बड़ा बाजार बनकर उभरा। यहां मिठाइयों और नमकीन की नामचीन स्थाई दुकानों के साथ ही शाम से देर रात होटलों और ठेलों पर लगने वाली चाट चौपाटी देशभर में अपने स्वाद के लिए मशहूर है।

दो वर्ष पहले इंदौर में हुए प्रवासी भारतीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे। उन्होंने अपने संबोधन में इंदौर के खानपान की तारीफ करते हुए समोसे-कचौरी का जिक्र तो किया था, साथ नगर को देश में स्वाद की राजधानी कहकर देश भर में इंदौर का नाम और चर्चित कर दिया था। प्रवासी भारतीय सम्मलेन में इंदौर के खान-पान के स्थानों पर महत्वपूर्ण आगंतुकों ने जाने और स्वाद का जायका लेने की रुचि जाहिर की और सराफा तथा नई बनी चाट चौपाटी छप्पन दुकानों पर जाकर इंदौर के स्वादिष्ट व्यंजनों का जायका लिया था।

मालवा का नमकीन देश में प्रसिद्ध

देशभर में इंदौर की नमकीन और मिठाइयां प्रसिद्ध हैं। नगर के खाऊ ठीये पिछले 80 वर्ष से आबाद हैं। वैसे भी मालवा स्वाद का पारखी है और संपूर्ण मालवा-निमाड़ में निर्मित नमकीन की एक अलग ही पहचान देश भर में रखता है। इसमें रतलाम की सेंव का भी अहम योगदान है, जो देश में रतलामी सेंव के नाम से खास पहचान रखती है।

अब विवादों में सराफा चाट चौपाटी

दो वर्ष पूर्व हरदा की पटाखा फैक्टरी पर हुए विस्फोट और जनहानि के बाद इंदौर की सराफा चाट चौपाटी की सुरक्षा को लेकर नगर निगम को चिंता हुई और एक समिति का गठन कर जांच कराई गई। इसमें यह निष्कर्ष निकला कि सराफा चौपाटी बारूद के ढेर पर बैठी है, क्योंकि यह चौपाटी खुले में लगती है और यहां संकरी गलियों में गैस भट्टियों का बगैर किसी सुरक्षा व्यवस्था के इस्तेमाल होता है। सराफा की कई चाट की दुकानों में फुटपाथ पर ही सामग्री तत्काल निर्मित की जाती है। सराफा में सोना-चांदी का कार्य होता है और उसमें तेजाब की जरूरत रहती है, आभूषणों के निर्माण में गैस का उपयोग होता है, संकरी गलियां और कोई अनहोनी होने पर फायर ब्रिगेड के वाहनों को पहुंचने में कई तकलीफों को देखते हुए चौपाटी पर रोज आने वाले सैक ड़ों लोगों की सुरक्षा प्रमुख मुद्दा बन गया है।

निगम कर रहा शिफ्ट करने पर विचार

नगर निगम की रिपोर्ट के बाद से इस खान-पान की चौपाटी को शिफ्ट करने का विचार इंदौर नगर निगम कर रहा है। पिछले दिनों सराफा व्यापारियों ने भी मिठाइयों और नमकीन की परंपरागत दुकानों को छोड़कर अन्य दुकानों को शिफ्ट करने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया था।

सराफा कारोबार हो रहा प्रभावित

सराफा व्यापारियों का यह भी कहना है कि रात में चौपाटी लगाने वाले दुकानदार शाम होने के पूर्व ही आ जाते हैं और उनकी जेवर की दुकानों के आगे दुकानें लगाते हैं और रोकने पर विवाद करते हैं। उन्होंने करीब 80 परंपरागत खाद्य पदार्थों की दुकानों को ही चौपाटी पर लगने देने और शेष दुकानों को अन्यत्र शिफ्ट करने की मांग की है। वहीं, कुछ सराफा व्यापारी चाहते हैं कि चाट चौपाटी की दुकानें लगें तो सभी लगें, नहीं तो एक भी नहीं रहनी चाहिए। हाल ही में यहां रात के समय नशे में लोगों के आने और विवाद करने के भी मामले सामने आए हैं। इसे लेकर भी सराफा व्यापारी इसे शिफ्ट कराने के पक्षधर हैं।

सराफा चौपाटी की शुरुआत कैसे हुई 

सराफा में खानपान की शुरुआत की रोचक कहानी है। यहां 1877 में दी बड़ा सराफा कॉटन एसोसिएशन की स्थापना हुई थी। इस संस्था का स्वयं का भवन था। इसके बाद श्री इंदौर बुलियन एक्सचेंज की स्थापना 1944 में हुई थी। कारोबार के लिए बड़ी संख्या में व्यापारी एकत्र होते थे। उस दौर में मारवाड़ से आए व्यापारियों की दुकानें सराफा में थी। यहां सोना, चांदी, कपड़ा, अफीम के कारोबार के सौदे हुआ करते थे। इन्हीं भवनों और दुकानों के बाहर और सराफा क्षेत्र में पीतल के बड़े थालों में कलाकंद और अन्य मिठाई घरों से निर्मित कर कुछ राजस्थान से आए मिठाई बनाने वाले कारीगर लाकर बेचते थे। सराफे के समीप ही स्थित मोरसली गली में मुख्य रूप से ये सामग्री बेची जाती थी। मोरसली गली भोजन की दुकानों के लिए प्रसिद्ध रही। 

जति हलवाई की दुकान प्रसिद्ध थी

जति जी और जैन मिठाई भंडार की सब्जी पूरी की दुकानों के साथ अन्य भोजन की दुकानें इस गली में थीं। सराफे में बाद में राजहंस, नीलकमल जैसे भोजनालय भी आरंभ हुए थे। मोरसली गली में स्थान की कमी के कारण धीरे-धीरे सराफा बाजार में भारत माता, जैन पूड़ी भंडार, ब्रजवासी, शर्मा स्वीट, सर्व फलाहारी नागौरी मिठाई, जय जिनेंद्र नमकीन भंडार की दुकानें 1940 के बाद आरंभ हुईं। उस दौर में बिजली नहीं होना और सामाजिक परंपरा के कारण सूर्यास्त के साथ ही दुकानें बंद हो जाती थीं। दुकान बंद होने के बाद व्यापारी ओटलों पर बैठ कर बातचीत करते थे। ऐसे दौर में राजस्थान से आए कुछ मिठाई के कारीगरों ने मिठाई की दुकानें यहां लैंपों की रोशनी में लगाना आरंभ की थी। सराफे में 1950 के दशक के बाद दूध, साबुन, बिजली, कपडे़ की दुकानों के साथ लॉज, पोस्टऑफिस भी थे पर समय के साथ ये विलुप्त हो गए।

ये हैं सराफा की परंपरागत मिठाइयां 

अब यह मांग की जा रही है कि परंपरागत मिठाई की दुकानें ही सराफा में रहने दी जाएं, ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर वे कौन सी मिठाइयां हैं, जो प्राचीन दौर में सराफे में उपलब्ध होती थीं? सराफे और मोरसली गली में मिठाई की दुकानों पर मावे की बर्फी, मक्खन बड़े, घेवर, फैनी, मावा मिश्री के लड्डू और बेसन के लड्डू मुख्य रूप से मिलते थे। बाद में कलाकंद, रबड़ी, भुट्टे का किस, छोले टिकिया और मौसम के अनुसार गाजर का हलवा, मूंग का हलवा, तले हुए गराडू और शुद्ध घी की बड़ी जलेबी, केसरिया दूध मिलना आरंभ हुआ था। डिब्बे का आइसक्रीम गर्मी में 1950 के करीब मिलना शुरू हुआ था। गर्मी में आइसक्रीम मिलने की मुख्य वजह नगर में एसपी एंड कंपनी का पक्का बर्फ सरलता से मिलना था। वर्तमान में सराफा चाट चौपाटी पर कई दुकानें लगती हैं, जिनका मालवा के मूल व्यंजनों के कोई वास्ता नहीं है।

जमीन पर बैठाकर भोजन कराते थे 

सराफा के समीप मोरसली गली में रहने वाले 70 वर्षीय अनिल गेहलोत का कहना है कि 1960 के करीब तक हमारा परिवार मोरसली गली में रहता था। गली में बड़ी संख्या में भोजन की दुकानें थीं, जिनमें जमीन पर बैठकर भोजन करवाया जाता था। जती जी की सब्जी पूरी और मांगीलाल जी का मूंग का हलवा हमने खूब खाया। वहीं, दिलीप तंवर का परिवार करीब 150 वर्ष से भी अधिक समय तक धान गली में रह रहा था। उनका कहना है कि सराफा में चुनिंदा दुकानें लगा करती थीं। 1975 के करीब मैंने 15-20 दुकानें ही देखी हैं। बाद में ये संख्या बढ़ती चली गई। 90 वर्षीय रतनलाल तंवर का कहना है कि पहले तो घर के बाहर कुछ खाने का चलन नहीं था। बाद में बाजारों में खाना आरंभ हुआ। मैं भी 1945 के बाद सराफा की चाट चौपाटी पर जाता था चुनिंदा दुकाने थीं। इनमें नागौरी की मिठाई, जोशी का दहीबड़ा, बड़ी जलेबी, ब्रजवासी और शर्मा स्वीट की मिठाई, विजय चाट का पेटिस और मित्तल की कचौरी की दुकानें प्रसिद्ध थीं।