जम्मू कश्मीर की नई हाइड्रो पावर पॉलिसी, बिजली उत्पादन की कमी को दूर करने का प्रयास

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर सरकार जल्द ही एक नई जलविद्युत नीति (हाइड्रो पावर पॉलिसी) पेश करेगी. इस कदम से जलविद्युत उत्पादन में निजी निवेश को प्राइवेट उत्पादकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है.

इस नीति के तहत 18,000 मेगावाट (MW) की अनुमानित जलविद्युत क्षमता वाले क्षेत्र में बिजली उत्पादन की कमी को दूर करने का प्रयास किया जाएगा. इस नई हाइड्रो पावर पॉलिसी में डेवलपर्स को कई रियायतें प्राप्त हो रही हैं जैसे, पानी के उपयोग से छूट और निवास संबंधी प्रावधानों को हटाना शामिल है.

इस नीति पर इस साल सरकार द्वारा दो बार विचार-विमर्श किया गया और बुधवार को सिविल सचिवालय में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा अधिकारियों के साथ एक बैठक में इसकी समीक्षा की गई. यह नीति जम्मू-कश्मीर राज्य जलविद्युत परियोजना विकास नीति 2011 का स्थान लेगी.

डेवलपर्स को आकर्षित करने के लिए, सरकार ने आईपीपी के लिए जल उपयोग शुल्क जैसे प्रावधानों को हटा दिया है, जो 2011 की नीति के विपरीत है. जहां हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश इन लघु जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन और विकास के लिए अपने निवासियों को प्राथमिकता दे रहे हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर सरकार अपनी नई नीति से इन डोमिसाइल प्रावधानों को हटाने का प्रस्ताव कर रही है.

हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड ने 5 मेगावाट तक की परियोजनाओं को अपने निवासियों के लिए आरक्षित कर दिया है. मसौदा नीति में अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली के लिए व्हीलिंग शुल्क को भी हटा दिया गया है, जो 2011 की नीति में लागू था.

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (डीआईपीआर) द्वारा बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया, "जलविद्युत नीति 2025 के मसौदे का उद्देश्य 2011 की नीति का स्थान लेना और स्वतंत्र विद्युत उत्पादक (आईपीपी) तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडलों के माध्यम से निजी निवेश के नए रास्ते खोलना है.

इस नीति में पारदर्शी आवंटन तंत्र, वित्तीय प्रोत्साहन, सुव्यवस्थित मंजूरी और गारंटीकृत बिजली उठाव शामिल हैं. ये सभी नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए डिजाइन किए गए हैं. बयान में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला ने सतत विकास, स्वच्छ ऊर्जा और समावेशी विकास के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई.

ईटीवी भारत द्वारा मूल्यांकन की गई जम्मू-कश्मीर जलविद्युत नीति-2025 नामक मसौदा नीति अधिसूचना की तिथि से लागू होगी. इस नीति के तहत, डेवलपर्स जम्मू-कश्मीर औद्योगिक नीति 2021-30 के अनुसार प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं, जिसका अनावरण उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 2021 में किया था.

100 मेगावाट तक की जलविद्युत परियोजनाओं का उपयोग स्वतंत्र विद्युत उत्पादकों (आईपीपी मोड) और सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी मोड) के माध्यम से किया जाएगा.

अधिकारियों ने कहा कि प्रस्तावित नीति के तहत सभी परियोजनाओं (यानी 100 मेगावाट क्षमता तक) के लिए जल उपयोग पर कोई शुल्क नहीं लेना जम्मू-कश्मीर जल संसाधन (विनियमन और प्रबंधन) अधिनियम 2010 की धारा 137 के अनुसार और विद्युत मंत्रालय के निर्देश (25 अप्रैल 2023) के अनुरूप है.

जम्मू कश्मीर जल नियामक प्राधिकरण के अधिकारियों के मुताबिक, जल विद्युत परियोजनाओं के संचालन के लिए प्रस्तावित जल उपयोग पर रोक से राज्य के खजाने को राजस्व का नुकसान होगा. जम्मू कश्मीर जल नियामक प्राधिकरण के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद काकरू ने हाल ही में ईटीवी भारत को बताया कि वर्तमान परियोजनाओं से सरकारी खजाने को 250-350 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है क्योंकि मालिक जल शुल्क का भुगतान करने से इनकार कर रहे हैं.

जम्मू कश्मीर सरकार को अपनी व्यापारिक उपयोगिता के माध्यम से 25 मेगावाट तक की परियोजनाओं के लिए अनिवार्य रूप से बिजली खरीदनी होगी. नीति में कहा गया है कि 25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली परियोजनाओं से उत्पादित बिजली के लिए, जम्मू-कश्मीर सरकार को परियोजना से उत्पादित संपूर्ण बिजली खरीदने से इनकार करने का पहला अधिकार होगा.

नीति के अनुसार, जम्मू-कश्मीर सरकार 40 साल की लीज अवधि के दौरान 25 मेगावाट तक की परियोजनाओं से आस्थगित और चरणबद्ध तरीके से 12 प्रतिशत तक मुफ्त बिजली प्राप्त करेगी. 25 मेगावाट से 100 मेगावाट तक की परियोजनाओं के लिए, मुफ्त बिजली (उत्पन्न शुद्ध ऊर्जा का 12 फीसदी) चरणबद्ध तरीके से दी जाएगी.

शुरुआती 10 सालों के दौरान मुफ्त बिजली का 10 फीसदी, मानक 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली के अतिरिक्त, रियायत अवधि के शेष 30 वर्षों में वसूल किया जाएगा. यह नीति केंद्र शासित प्रदेश के पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत विकास लक्ष्यों पर जोर देती है.

भूमि अधिग्रहण के लिए, नीति कहती है कि दोहरी फसल वाली या उपजाऊ कृषि भूमि के उपयोग से बचने और विस्थापन को कम करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे. इसमें कहा गया है, जम्मू कश्मीर सरकार, जहां भी लागू हो, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा '2' के अंतर्गत भारत सरकार से पूर्वानुमति लेने के बाद, दीर्घकालिक पट्टे के आधार पर मानी गई वन भूमि उपलब्ध करा सकती है.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, शाहिद चौधरी ने कहा कि यह नीति, जिस पर विशेषज्ञों, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) और प्रमुख जलविद्युत विकासकर्ताओं के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया है.

इस बात का एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे विज्ञान, नीति और कार्रवाई मिलकर हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वच्छ, समावेशी और सतत ऊर्जा का समाधान कर सकते हैं.