खजुराहो में दिखा लोक कला का जादू, गुदुम-शहनाई गीतों ने चुराया देशी-विदेशी सैलानियों का दिल

खजुराहो: देश-विदेश में प्रसिद्व यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल खजुराहो में इन दिनों देशी-विदेशी सैलानियों को बुंदेलखंड, बघेलखंड सहित विलुप्त होती जनजातियों के गीतों और नृत्य का चस्का लगा हुआ है. तभी तो हर शनिवार, रविवार को होने वाले देश के आयोजन में सैलानियों का खजुराहो में तांता लगता है. बुन्देली-बघेली सहित विलुप्त जनजातियों के नृत्य व गीत लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

हर किसी को भाती है बुंदेलखंड की कला संस्कृति
बुंदेलखंड की धरती पर बसा खजुराहो देश दुनिया में अपनी एक अगल पहचान रखता है. यह दुनिया के सबसे बेहतरीन और सबसे प्राचीन मंदिरों का घर भी कहा जाता है. खजुराहो स्मारक समूह हिंदू, जैन और बौद्ध मंदिरों का एक संग्रह है. खजुराहो अपनी खूबसूरत नागर शैली की वास्तुकला और मूर्तियों के लिए जाने जाते हैं. तभी तो देश-दुनिया भर के लोग खजुराहो को देखने, जानने और समझने के लिए आते हैं. जो भी यहां एक बार आता है वह यहां की कला संस्कृति, वेशभूषा और रहनसहन में घुल मिल जाता है.

यही वजह है कि मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा स्थापित 'आदिवर्त' जनजातीय लोककला राज्य संग्रहालय खजुराहो में प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को नृत्य, नाट्य, गायन एवं वादन पर केन्द्रित समारोह 'देशज का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में बघेलखंड, बुंदेलखंड के नृत्य, गीतों और विलुप्त होती जनजातियों के परंपरागत आयोजनों का अद्भुत सगंम देखने को मिलता है. इस संगम का चस्का खजुराहो आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों को जमकर लगा हुआ है.

'देशज' में लोकनृत्य एवं लोकगीतों की शानदार प्रस्तुतियां
रविवार को खजुराहो में आयोजित 'देशज' कार्यक्रम में बघेलखंड, बुन्देलखंड एवं जनजातीय अंचलों की समृद्ध लोकपरंपराओं पर आधारित लोकनृत्य एवं लोकगीतों की शानदार प्रस्तुतियां दी गईं. कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं कलाकारों के पारंपरिक सम्मान के साथ हुआ. कार्यक्रम की प्रथम प्रस्तुति प्राची पाण्डेय एवं रीवा द्वारा प्रस्तुत बघेली लोकगीतों से शुरू हुई. जिलमें बिरहा, देवी गीत, कलेवा गारी एवं फगुआ जैसे पारंपरिक गीतों की सुरमयी प्रस्तुति दी गई.

इसके बाद डिंडोरी से आये अशोक कुमार मार्को एवं साथी द्वारा प्रस्तुत गुदुमबाजा जनजातीय नृत्य ने दर्शकों को जनजातीय संस्कृति के सजीव स्वरूप से परिचित कराया. यह नृत्य गोंड जनजाति की उपजाति ढुलिया की पारंपरिक कला है. जिसमें गुदुम, ढफ, मंजीरा, शहनाई एवं टिमकी जैसे वाद्यों के साथ सामूहिक नृत्य किया जाता है.

विवाह एवं अन्य मांगलिक तथा आनुष्ठानिक अवसरों पर इस जनजाति के कलाकारों की उपस्थिति परंपरागत रूप से अनिवार्य एवं शुभ मानी जाती है. वहीं, कार्यक्रम की आखिरी प्रस्तुति जय हिन्द सिंह एवं साथी, पलेरा द्वारा प्रस्तुत बुन्देली संस्कार गीतों की हुई. जिसमें दादरा, लेद, चेतावनी भजन, बन्ना एवं सोहर जैसे गीतों की प्रस्तुति हुई तो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

क्या कहते हैं कलाकार
वहीं, डिंडोरी से आये कलाकार अशोक कुमार मार्को बताते हैं, ''खजुराहो में हम पहली बार आये हैं. यहां पर अपनी प्रस्तुति देना शोभाग्य की बात है. यहां देश-विदेश से लोग आते हैं और हमारी संस्कृति कला से रूबरू होते हैं. जिससे हम लोगों की कला देश दुनिया में जानी जा रही है. इससे हम छोटे कलाकारों को भी फायदा हो रहा है.''

आदिवर्त जनजातीय संग्रहालय खजुराहो के प्रभारी अशोक मिश्रा से बात हुई तो उन्होंने बताया, ''हर रविवार को देशज नाम की गतिविधि होती है. विशेष रूप से मध्य प्रदेश के कलाकार, जनजातीय और लोक समुदाय के गायन व नृत्य की प्रस्तुति देते हैं. कलाकरों को मानदेय, आने-जाने का किराया, दैनिक भत्ता मिलने से सीधा लाभ होता है. वहीं देशी-विदेशी पर्यटक जो आदिवर्त आ रहा है उन्हें सांकृतिक आयोजन के जीवन का अनुभव कराता है.''