माधवन ने अजय को दिया कड़ी टक्कर, लेकिन कहानी बीच में लड़खड़ाई; रकुल बनीं कमजोर पक्ष

मुंबई: अजय देवगन दो नंबर के हीरो बन गए हैं। दरअसल, ऐसा उनकी फिल्मोग्राफी देखकर कहना पड़ रहा है। ‘रेड 2’ और ‘सन ऑफ सरदार 2’ के बाद अब अजय देवगन ‘दे दे प्यार दे 2’ लेकर आए हैं। ये साल 2019 में आई ‘दे दे प्यार दे’ का सीक्वल है। अब छह साल बाद आए सीक्वल में कुछ नए कलाकारों को जोड़ा गया है और फिल्म को पहली फिल्म से थोड़े बड़े स्तर पर बनाने का प्रयास किया गया है। लेकिन क्या इस प्रयास में मेकर्स सफल हुए हैं और क्या ‘दे दे प्यार दे 2’ अपनी पहली फिल्म ‘दे दे प्यार दे’ से बेहतर है या नहीं? कैसी है यह फिल्म, जानने के लिए पढ़िए यह रिव्यू…

कहानी
फिल्म की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पर ‘दे दे प्यार दे’ खत्म हुई थी। आयशा (रकुल प्रीत सिंह) आशीष (अजय देवगन) के परिवार से मिल चुकी है। अब बारी है आशीष के आयशा के परिवार से मिलने की। आयशा की फैमिली चंडीगढ़ में रहती है। आयशा के परिवार में उसके पिता (आर माधवन), मां (गौतमी कपूर), भाभी (इशिता दत्ता) और भाई (तरुन गहलोत) हैं। आयशा की भाभी प्रेग्नेंट हैं और घर में इसको लेकर सब उत्साहित हैं। इस बीच आयशा अपनी फैमिली से आशीष को मिलवाना चाहती है। अब 28 साल की आयशा 52 साल के अपने बॉयफ्रेंड आशीष से कैसे अपने परिवार को मिलाती है? आशीष की उम्र और उसके बारे में जानने के बाद उसकी फैमिली क्या रिएक्शन देती है? क्या वो आशीष को स्वीकार करते हैं या फिर नहीं? यही फिल्म की कहानी है, जो आपको 2 घंटा 26 मिनट की फिल्म देखने पर पता चलेगी।

कैसी है फिल्म
फिल्म की कहानी कहीं न कहीं काफी प्रेडेक्टिबल है। क्योंकि सबको ही पता है कि अंत में कहानी में क्या होना है। फिल्म का फर्स्ट हाफ बेहतर है। ये आपको पूरे टाइम हंसाता रहेगा और एक अच्छी रोमांटिक-कॉमेडी होने का भरोसा देगा। लेकिन जैसी ही फर्स्ट हाफ खत्म होता और सेकंड हाफ आगे बढ़ता है। आपका भरोसा टूटने लगता है। मेकर्स सेकंड हाफ में जबरन इमोशन घुसेड़ने के चक्कर में असल कहानी से भटक गए। जो कहानी आपको हंसाने से शुरू होती है, वो दूसरे हाफ में आपको थोड़ा उबाने लगती है। आप स्क्रीन से इतर इधर-उधर देखने लगते हैं और सोचते हैं कि अब फिल्म खत्म हो। फिल्म थोड़ी खिंची-खिंची सी लगती है। लेकिन आर माधवन की एक्टिंग आपको फिल्म से बांधे रखती है और लास्ट के 15 मिनट एक बार फिर आपको हंसाते हुए थिएटर से विदा करते हैं। हां, अगर मुकाबला ‘दे दे प्यार दे’ से किया जाए, तो वो इस दूसरे पार्ट से बेहतर है।

एक्टिंग
एक्टिंग के पहलू को देखने के बाद ये कहने में कोई दोराय नहीं कि आर माधवन अजय देवगन समेत फिल्म की पूरी कास्ट पर भारी पड़े हैं। कॉमेडी से लेकर सख्त पिता और इमोशनल सीन तक में आप उनसे जुड़ पाते हैं और हर इमोशन को फील कर पाते हैं। माधवन ने दिखाया है कि रोल चाहें जैसा भी हो वो अपनी एक्टिंग से उसे जानदार बना देते हैं। यहां पेपर सॉल्ट लुक में वो काफी कूल भी लगे हैं।

अजय देवगन जो फिल्म के लीड एक्टर हैं और कहने को ये उनकी ही फिल्म है। लेकिन पूरी फिल्म में अजय देवगन ने काफी कम डायलॉग्स बोले हैं। वो भी सबसे ज्यादा लास्ट के 15 मिनट में। बाकी पूरी फिल्म में वो सिर्फ एक्सप्रेशन देते नजर आए हैं, जो वो पिछले 34 साल से दे रहे हैं। हां, रोल के हिसाब से अजय देवगन फिल्म में फिट हैं।

फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं रकुल प्रीत सिंह। 2019 में जब ‘दे दे प्यार दे’ आई थी, तब रकुल की खूबसूरती के काफी चर्चे हुए थे और अपने रोल में वो फिट बैठी थीं। लेकिन इस बार जहां रकुल फीमेल लीड में अकेली ही थीं, उन्होंने पूरी तरह निराश किया है। हल्के-फुल्के सीन और मॉडर्न लड़की के रोल में तो वो जंचती हैं। लेकिन जहां बात इमोशनल सीन्स और भारी डायलॉग्स की आती है, वहां रकुल कमजोर पड़ जाती हैं। इमोशनल सीन में वो ओवर एक्टिंग करती दिखती हैं और उनको देखकर आपको हंसी आ जाएगी। कई दमदार डायलॉग्स उनकी फ्लैट डायलॉग डिलीवरी की वजह से फीके पड़ जाते हैं।

अपने डांस स्टेप से सुर्खियां बटोरने वाले मीजान जाफरी की एंट्री ही सेकंड हाफ की शुरुआत में होती है। फिल्म में उन्हें सिर्फ हीरोइन को इंप्रेस करके दिखाना था, वो उन्होंने बखूबी किया है। गिटार बजाना, अपनी बॉडी दिखाना, घुड़सवारी करना, सिर्फ टॉवेल पहनकर नहाना.. मीजान ने सबकुछ किया है। रकुल के साथ उनकी जोड़ी भी जची है और अंत में कॉमेडी सीन में भी उनके एक्सप्रेशन ठीक ही हैं। कुल मिलाकर उन्हें जैसा काम मिला था, उसे उन्होंने बखूबी निभाया है।

इसके अलावा जावेद जाफरी, गौतमी कपूर और इशिता दत्ता ने अपने-अपने हिस्से का काम ईमानदारी से किया है।

निर्देशन
फिल्म का निर्देशन अंशुल शर्मा ने किया है, एक नए निर्देशक के तौर पर उनका काम ठीक-ठाक ही है। हां, कई मौकों पर आपको ऐसा लगेगा कि सबकुछ काफी जल्दी में करने का प्रयास हुआ। जबकि सेकंड हाफ में एडिटिंग की कैची और चल सकती थी। निर्देशक ने फिल्म में चंडीगढ़ और लंदन की दूरी ही खत्म कर दी है। एक सीन में इंसान लंदन में है और अगले ही पल वो चंडीगढ़ पहुंच जाता है। ऐसा एख नहीं कई मौकों पर होता है। वहीं कुछ एक सीन ऐसे हैं, जहां आपको कनेक्शन उतना बेहतर नही लगता। बाकी निर्देशन का काम ठीक है।

संगीत
‘दे दे प्यार दे’ का संगीत पसंद किया गया था। फिल्म के सैड सॉन्ग ‘चले आना’ से लेकर पार्टी सॉन्ग तक लोगों को याद रहे थे। यहां पर फिल्म के दो गाने एक ‘3 शौक’ और दूसरा ‘झूम बराबर’ ही ऐसे हैं, जो चर्चाओं में भी हैं और पार्टी में बजते भी सुनाई देंगे। हां, इस बार का सैड सॉन्ग आपको याद नहीं रहेगा। जबकि पिता और बेटी के रिश्ते को दिखाता गीत भी कुछ खास प्रभावित नहीं करता।

खूबियां
फिल्म की शुरुआत शानदार है। पहला पार्ट खूब हंसाता है और फनी लगता है। क्लाइमैक्स में एक ट्विस्ट है, जब वो आता है तो बेशक एक बार को आप भी हैरान रह जाते हो। अंत भी बेहतर ढंग से हुआ है। रकुल प्रीत को छोड़कर, बाकी सभी का काम भी अच्छा है।

कमियां
फिल्म की सबसे बड़ी कमी रकुल प्रीत की एक्टिंग है, जिससे उन्होंने इमोशनल सीन और कई अहम मौकों को बर्बाद किया है। सेकंड हाफ खिंचा-खिंचा सा लगता है, जो कई मौकों पर आपको बोर करता है। एडिटिंग टेबल पर काम हो सकता था।

देखें या न देखें
‘दे दे प्यार दे 2’ की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे आप पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं। ये एक फैमिली एंटरटेनर है। अगर वीकेंड पर आप खाली हैं, तो फिल्म को एंजॉय कर सकते हैं।