‘मालिक’ में परफॉर्मेंस के बाद मानुषी छाईं, इंडस्ट्री से मिलने लगे ऑफर्स

मुंबई : मानुषी छिल्लर की फिल्म ‘मालिक’ हाल ही में रिलीज हुई है। 6 दिनों में इस फिल्म ने लगभग 19 करोड़ रुपए से भी अधिक का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया है। ‘मालिक’ मानुषी के करियर के लिए काफी अहम फिल्म है। 

अब जब ‘मालिक’ रिलीज हो चुकी है, तो पीछे मुड़कर देखने पर क्या याद आता है?

सच कहूं तो सबसे ज्यादा वो जर्नी याद आती है, जब हम सबने अपना दिल, मेहनत और पूरी लगन से काम किया था। डायरेक्टर से लेकर कास्ट और प्रोड्यूसर तक, सबका एक साफ और मजबूत विजन था। उस मेहनत को सफल होते देखना सपने जैसा लगता है। यह मेरे करियर का पहला ऐसा मौका था जब मुझे अपनी परफॉर्मेंस के लिए इतनी सराहना मिली। बतौर एक्टर, जब लोग आपके काम को नोटिस करें, तो वो बहुत ही अच्छा लगता है। 

कुछ ने फिल्म की तारीफ की तो कुछ ने स्क्रिप्ट पर सवाल उठाए। आपकी नजर में असली प्रतिक्रिया क्या रही?

हर किसी का देखने का नजरिया अलग होता है। मुझे खुशी है कि थिएटर में आई पब्लिक ने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया। हां, क्रिटिक्स के रिव्यूज जरूर मिक्स्ड रहे, लेकिन वो भी जरूरी हैं। एक्टर के तौर पर मेरा काम है ईमानदारी से किरदार निभाना और अगर वो लोगों तक पहुंचा, तो मेरे लिए वही सबसे बड़ी जीत है। खास बात ये रही कि स्क्रीनिंग के बाद खुद इंडस्ट्री के कुछ लोगों ने कॉल कर के कहा कि उन्होंने मेरा काम एंजॉय किया। ये मेरे लिए बहुत स्पेशल था। कहीं न कहीं मुझे लगा, चलो, मेहनत दिखी।

क्या आपको लगता है कि इंडस्ट्री में लोगों का नजरिया आपके प्रति बदला है? खासकर 'पृथ्वीराज' से लेकर 'मालिक' तक?

हां, अब नजरिया बदला है। 'पृथ्वीराज' के वक्त लोगों ने कहा था कि ये मेरी पहली फिल्म जैसी नहीं लग रही। स्क्रीन प्रेजेंस और कैमरे के सामने कॉन्फिडेंस की तारीफ हुई, लेकिन शायद वो असर नहीं पड़ा जो मैं चाहती थी। 'मालिक' के बाद पहली बार ऐसा लगा कि लोगों ने सिर्फ मुझे देखा नहीं, मेरे काम को महसूस भी किया।

इंडस्ट्री में तीन साल से हैं लेकिन ज्यादा फिल्में नहीं कीं। क्या खुद के लिए सही मौका तलाश रही हैं?

मेरे लिए ‘मालिक’ वही मौका था। मैं इंडस्ट्री में आउटसाइडर हूं, इसलिए कभी ये उम्मीद नहीं की थी कि डेब्यू के साथ ही ड्रीम रोल मिल जाएगा। लेकिन ‘शालिनी’ का किरदार मुझे इसीलिए खास लगा क्योंकि इसमें मुझे पहली बार परफॉर्मेंस का असली मौका मिला। ये फिल्म मेरे लिए सिर्फ एक रोल नहीं थी, बल्कि एक ऐसा चांस था जहां मैं सिर्फ ‘अच्छी दिखने’ से आगे जाकर, कुछ महसूस करवा सकूं।

अगर मौका मिले, तो वो कौन-सा आइकॉनिक किरदार है जिसे आप पर्दे पर निभाना चाहेंगी?

बहुत से रोल्स हैं जो मुझे बतौर एक्टर एक्साइट करते हैं, लेकिन अगर मुझे एक क्लासिक किरदार चुनना हो, तो मैं ‘देवदास’ की पारो को निभाना चाहूंगी। उसमें इमोशन है, ग्रेस है और एक गहरी ट्रैजिक ब्यूटी है।

फेमस होने के बाद क्या आपमें कोई पर्सनल चेंज आया है?

मैं अब भी वही इंसान हूं। फर्क बस इतना आया है कि अब मैं कैमरे और पब्लिक अटेंशन के साथ ज्यादा कम्फर्टेबल हो गई हूं। शुरुआत में जब मिस वर्ल्ड बनी थी, वो चेंज बहुत अचानक आया। कभी-कभी छोटी-छोटी चीजें जैसे कि डिनर पर जाना भी एक अटेंशन पॉइंट बन जाती थी। लोग टेबल की ओर देखने लगते हैं, बातें करते हैं, फोटो मांगते हैं तो वो शुरुआत में थोड़ा अजीब लगता था। अब धीरे-धीरे मैं उस सबकी आदत हो गई।

इंडस्ट्री में काम करते हुए आपका सबसे बड़ा सबक क्या रहा?

सबसे बड़ा सबक यह मिला है कि आपको अपने गोल्स के प्रति पूरी तरह स्पष्ट रहना होगा। लोग सलाह दे सकते हैं, लेकिन आखिर में फैसला आपका ही होगा। मुझे कभी ये नहीं लगा कि मुझे रोल सिर्फ इसलिए मिलेगा क्योंकि मैं किसी को जानती हूं। मौका तब मिलेगा जब मेरी मेहनत और काबिलियत सामने आएगी। इसलिए मेरा फोकस हमेशा खुद को बेहतर बनाने पर रहता है। यही माइंडसेट मुझे यहां तक लेकर आया है और आगे भी ले जाएगा।

फिल्म, बिजनेस और सोशल वर्क तीनों कैसे संभालती हैं?

मैं हमेशा से मल्टीटास्कर रही हूं। मिस इंडिया की तैयारी के साथ पढ़ाई भी करती थी, तो बैलेंस करना मेरी आदत बन गई है। शूटिंग के दौरान पूरा फोकस फिल्म पर होता है, लेकिन जैसे ही मौका मिलता है, मैं अपने वेलनेस प्रोजेक्ट, ब्रांड्स और बाकी काम संभाल लेती हूं।

ऐसी एक बात जो आपके फैंस नहीं जानते?

बहुत लोग नहीं जानते कि मैं बहुत अच्छी पेंटिंग करती हूं। मैं एक आर्टिस्ट हूं। पेंटिंग मेरी एक थैरेपी की तरह है।

आपकी पेंटिंग्स में क्या खास होता है? किस तरह की थीम्स या कहानियां आप अपने आर्ट में दिखाती हैं?

मेरी पेंटिंग्स ज्यादातर इंसानों की भावनाओं और अंदरूनी दुनियाओं की पड़ताल करती हैं। मैं कोशिश करती हूं कि जो फीलिंग्स हम शब्दों में बयां नहीं कर पाते, उन्हें रंगों और आकृतियों के जरिये सामने लाऊं। मेरा ये आर्ट बिल्कुल रियलिस्टिक कॉपी नहीं होता, बल्कि एकदम पर्सनल और इमोशनल एक्सप्रेशन होता है।

क्या ऐसा कभी हुआ है कि आप पूरी तरह टूट गई हों और सब कुछ छोड़ देने का मन किया हो?

ऐसा महसूस करना बिल्कुल नेचुरल है। ऐसे दिन आते हैं जब सब कुछ थका देने वाला लगने लगता है। हालांकि, मैं अभी जिंदगी के शुरुआती पड़ाव पर हूं। इस उम्र में हार मान लेना या रुक जाना सही नहीं। थकावट तो होती है, लेकिन उसी थकान से खुद को उठाना और फिर से आगे बढ़ना असली ताकत होती है।

भारत की पहली मिस ग्रैंड इंटरनेशनल 2024 रशेल गुप्ता ने पेजेंट ऑर्गनाइजर्स पर बॉडी शेमिंग और मिसट्रीटमेंट के गंभीर आरोप लगाए हैं। इस मामले में आपकी क्या राय है?
मैं उनके एक्सपीरियंस के बारे में पूरी जानकारी तो नहीं रखती, इसलिए सीधे कमेंट करना मुश्किल है। लेकिन मेरा अनुभव मिस वर्ल्ड जैसे बड़े मंच पर हमेशा सम्मान और गरिमा का रहा है। वहां ग्लैमर से ज्यादा इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि आप क्या लेकर आ रहे हैं। आपका काम, आपकी सोच और समाज के लिए आपका योगदान। आज के समय में हर ब्यूटी पेजेंट को कंटेस्टेंट्स की रिस्पेक्ट और मेंटल वेलबीइंग को लेकर और भी जिम्मेदार बनना होगा। ये जिम्मेदारी सिर्फ ऑर्गनाइजेशन की नहीं, पूरे सिस्टम की है।

अगर कोई लड़की एक्टर बनना चाहती है या ब्यूटी पेजेंट में हिस्सा लेना चाहती है, तो आप उन्हें क्या सलाह देंगी?

मेरी सलाह यही होगी कि इसे सिर्फ ग्लैमर की दुनिया मत समझो। ये रास्ता चमक-धमक से ज्यादा मेहनत और स्ट्रगल से भरा होता है। मिस वर्ल्ड बनने की रात तो सब देखते हैं, लेकिन उसके पीछे होती है दिन-रात की थकान, फंडरेजिंग, लगातार ट्रैवल और इमोशनल स्ट्रगल। एक्टिंग भी आसान नहीं है, हर सीन को बार-बार परफेक्ट करना पड़ता है और हर दिन खुद को साबित करना होता है। अगर आप इन चुनौतियों को स्वीकार कर सकती हैं और आपका फोकस सिर्फ फेम पर नहीं, बल्कि अपने काम को बेहतर बनाने पर है तो ये सफर आपके लिए बेहद खास और सफल हो सकता है।