बिहार विधानसभा चुनाव: बिहार के चुनावी माहौल में, मधुबनी के मतदाता चुनावी वादों और सौगातों को कसौटी पर कस रहे हैं। युवाओं का मानना है कि मुफ्त राशन से विकास नहीं होगा, बल्कि उद्योगों और रोजगार पर ध्यान देना चाहिए। शराबबंदी के बावजूद अवैध शराब का धंधा चल रहा है। लोगों का कहना है कि जातिवाद से ऊपर उठकर विकास करना होगा। एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला कड़ा है।
बिहार के चुनावी अखाड़े में वादों और मुद्दों के अपने-अपने दांव से मतदाताओं का मन जीतने के लिए सत्ताधारी एनडीए तथा विपक्षी महागठबंधन ने भले ही सारे पिटारे खोल दिए हैं। इनकी चर्चा भी खूब है मगर हकीकत यह भी है कि मतदाता इन चुनावी वादों को पूरा होने या नहीं होने की हकीकत की कसौटी पर भी परख रहे हैं।
मिथिलांचल की हृदयस्थली माने जाने वाले मधुबनी में केवल दोनो खेमों के चुनावी वादों को ही नहीं बल्कि चुनाव से ठीक पहले दी गई सौगातें भी इस कसौटी से बाहर नहीं रखी जा रही हैं। चुनाव से पहले रेवड़ियां बांटने से लेकर व्यवहारिकता की कसौटी पर मुश्किल दिखने वाले वादों के पूरा होने पर संदेह के सवाल हैं।
चुनावी वादों को कसौटी पर कस रहे वोटर
मिथिलांचल में मुद्दों पर मतदाताओं की यह मुखरता सामाजिक समीकरणों के दायरे में बंधे बिहार के चुनावी परिदृश्य में दोनों गठबंधनों के बीच दिलचस्प मुकाबले की झलक दिखा रही है। मधुबनी जिले के बेनीपटटी मेन रोड पर एक चुनावी चर्चा में यहां के युवा धीरेंद्र ठाकुर इस विधानसभा में एनडीए तथा महागठबंधन के बीच मुकाबला जोरदार होने की चर्चा करते हुए सवाल उठाते हैं कि जीविका के तहत महिलाओं को एक बार 10 हजार और मुफ्त राशन से ही बिहार विकास करेगा, उचित होता चुनाव से पहले रेवड़ियों पर खर्च हजारों करोड़ की इस राशि से कुछ उद्योग-रोजगार के साधन विकसित किए जाते।
'बिहार में रेवड़ियां बांटना ठीक नहीं'
वहीं, मौजूद एक अन्य युवा सुमन पटेल इसके विपरीत इसे सही ठहराते हुए कहते हैं कि जब महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, कर्नाटक जैसे विकसित राज्यों में महिलाओं को खाते में नगद राशि वहां की सरकारें देती हैं तो बिहार में इसकी आवश्यकता कहीं ज्यादा है। जिले की जयनगर विधानसभा के बनगामा गांव के निवासी रिटायर शिक्षक 79 वर्षीय दिगंबर प्रसाद सिंह कहते हैं कि चुनाव को लक्षित कर रेवड़ियां बांटना ठीक नहीं मगर जब यह पूरे देश में हो रहा तो फिर बिहार में इसे गलत कैसे ठहराएंगे। उनके इस रूख पर जब कुछ युवाओं ने चुटकी ली तो सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा कि वे विचार से जन्मजात कांग्रेसी हैं और जगन्नाथ मिश्र के निधन के बाद राजद को भी तीन बार परख चुके और ऐसे में उनके पास वर्तमान व्यवस्था के अलावा विकल्प ही कहां हैं। मधुबनी कलक्टेरियट के सामने ठेले पर लगी फ्रूट चाट खाते हुए अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों से चुनावी माहौल जानने की कोशिश की गई तो प्रौढ़ लोगों ने बड़ी चतुराई से मतदाताओं के अंतिम समय में निर्णय लेने की बात मधुबनी जिले में महागठबंधन तथा एनडीए के बीच लगभग टक्कर को उन्नीस-बीस का बता चुप रहना बेहतर समझा। मगर फल खाते एक युवा सोनू कुमार ने कि गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु का विकास उद्योग लगाकर हो रहा और बिहार का विकास क्या मुफ्त राशन और 10 हजार के नगद से हो जाएगा।
