भारत के यशस्वी महानायक नरेंद्र मोदी का आज जन्म दिवस है। प्रधानमंत्री की 75 वीं वर्षग्रंथि पर उन्हें हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं देने की मंशा से जब मैं अपने इस लेख की शुरुआत कर रहा हूं तब बरबस ही मुझे दिवंगत राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की निम्नलिखित पंक्तियां याद आ रही हैं –
जितने कष्ट कंटकों में है,
जिनका जीवन सुमन खिला।
गौरव -गंध उन्हें उतना ही
यत्र – तत्र – सर्वत्र मिला ।
नामुमकिन को मुमकिन बनाने की सामर्थ्य का वरदान देकर ईश्वर ने जिस महामानव को आज से तीन चौथाई शती पूर्व भारत की पावन धरा पर भेजा था उसने अपना सफर शून्य से शुरू किया और पृथ्वी पर अपने जीवन को सार्थक बनाने के संकल्प के साथ हिंदी के मूर्धन्य कवि स्व. श्री ब्रजराज पांडेय की निम्नलिखित पंक्तियों को अपने जीवन का आदर्श बना लिया –
कर्मवीर के आगे पथ का ,
हर पत्थर साधक बनता है,
दीवारें भी दिशा बतातीं में
जब मानव आगे बढ़ता है।
विधाता ने बालक नरेन्द्र को दिए गए वरदान की पात्रता सिद्ध करने के लिए बचपन से ही उसके इम्तहान लेना शुरू कर दिए लेकिन बेहद गरीबी के दिनों में भी उस मासूम बालक ने कभी हार नहीं मानी । पग पग पर उसे भयावह मुसीबतों का सामना करना पड़ा लेकिन उसके बालमन में तो मानों सुप्रसिद्ध गीतकार नीरज की इन पंक्तियों ने वह अटूट साहस और आत्मविश्वास कूट कूट कर भर दिया था जो आगे चलकर उसके जीवन में आश्चर्यजनक उपलब्धियों का मूल मंत्र बन गया-
कांटों कंकड़ भरी डगर हो,
या प्याले में भरा जहर हो,
पीड़ा जिसकी पटरानी है,
उसको हर मुश्किल मरहम है।
बालक नरेन्द्र ने जब युवावस्था में प्रवेश किया तो तन मन धन से मातृभूमि की सेवा करने का संकल्प ले लिया और अपने इस पुनीत संकल्प को पूरा करने के लिए नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और आज भी खुद को सबसे पहले संघ का स्वयं सेवक कहलाना पसन्द करते हैं। नरेंद्र मोदी कहते हैं कि संघ में मिले संस्कारों ने ही आज उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाया है जहां कोटि कोटि जनता के हृदय सम्राट के रूप में उनकी पहचान बन चुकी है। आज वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता माने जाते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में जो करिश्माई लोकप्रियता अर्जित की है उसे चुनौती देने का साहस समकालीन किसी राजनेता में नहीं है। नरेंद्र मोदी ने उल्लेखनीय उपलब्धियों के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अपने साहसिक फैसलों से नामुमकिन को मुमकिन बनाने में उन्होंने समय समय पर जो ऐतिहासिक सफलताएं अर्जित की हैं उनसे विपक्ष भी दांतों तले अंगुली दबाने के लिए विवश हुआ है। पिछले ग्यारह वर्षों में केंद्र सरकार ने अनेकों ऐसे फैसले लिए हैं जो प्रधानमंत्री की अद्भुत इच्छा शक्ति के परिचायक हैं। अयोध्या विवाद का शांतिपूर्ण समाधान, तीन तलाक़ कानून की समाप्ति और संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद का निष्प्रभावी करण इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के फैसलों ने यह साबित कर दिया है कि वे उनके लिए महिलाओं, किसानों और युवाओं के हित सर्वोपरि हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्रों की कतार में अग्रणी स्थान पर प्रतिष्ठित करने का जो सुनहरा स्वप्न संजोया है उसके साकार करने के लिए वे प्राणपण से जुटे हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने एक बार विनोद के लहजे में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी न तो खुद सोते हैं,न ही अपने सहयोगियों को सोने देते हैं। एक कहावत है कि "लीक छोड़ तीनों चलें शायर सिंह सपूत" , मां भारती के अनन्य सपूत नरेंद्र मोदी की विलक्षण कार्यशैली पर यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है। वे किसी की लकीर को छोटा करने के लिए खुद बड़ी लकीर खींचने में विश्वास रखते हैं। उनकी अद्भुत नेतृत्व क्षमता ने विश्व के बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भी उनके निकटतम मित्र परिवार में शामिल कर दिया है। आज अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मोदी की राय अहम साबित होती है। मोदी जब भारत के साथ शरारत करने वाले पड़ोसी देशों को कठोर सबक सिखाने की ठान लेते हैं तो दुनिया भारत के पक्ष में आ खड़ी होती है। यही मोदी होने के मायने हैं । मोदी के प्रेरक व्यक्तित्व के इन्हीं दुर्लभ गुणों ने उन्हें यशस्वी महानायक बनाया है। इस लेख के अंत में मैं यह जिक्र अवश्य करना चाहूंगा कि मोदी के बहुमुखी व्यक्तित्व की खूबियों को उजागर करने वाली जो दो पुस्तकें मैंने अतीत में लिखी थीं वे यशस्वी मोदी और महानायक मोदी शीर्षक से ही प्रकाशित हुईं थीं। तब मेरे अनेक मित्रों ने कहा था कि दोनों किताबों के इससे बेहतर शीर्षक नहीं हो सकते थे।
(लेखक "यशस्वी मोदी" महानायक मोदी किताब के लेखक है)
यूं ही नहीं बनता कोई यशस्वी महानायक : कृष्णमोहन झा
