सोनभद्र: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की बिल्ली मारकुंडी क्षेत्र स्थित कृष्णा माइनिंग खदान हादसे में मजदूरों की मौत की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अब तक 6 मजदूरों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. इस भीषण हादसे ने न सिर्फ जिले को हिलाकर रख दिया, बल्कि सालों से चले आ रहे खनन माफिया और खनन विभाग की सांठगांठ की परतें भी खोल दीं. जांच में सामने आया है कि कागज पर भले ही खदान एक व्यक्ति के नाम थी, लेकिन असल में इसे 9 प्रभावशाली लोगों की अवैध हिस्सेदारी में नियमों के विपरीत संचालित किया जा रहा था.
यह खदान साल 2016 से सक्रिय थी और लगातार सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर संचालन जारी था. खनन विभाग की अनदेखी और खनन माफिया के संरक्षण ने इस अवैध तंत्र को मजबूत बना दिया. खदान कुछ समय बाद एक स्थानीय ठेकेदार को दे दी गई, जिसके बाद पैसे, हिस्सेदारी और गैरकानूनी खनन का खेल और गहरा होता चला गया. हादसे के बाद तीन विशेष जांच टीमें बनाई गई हैं.
शुरुआती जांच में संकेत मिले हैं कि सालों से इस खदान का संचालन स्थानीय सफेदपोश, ठेकेदारों और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से होता रहा है. खनन विभाग ने अब पट्टाधारकों के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 52 घंटे पहले जब मजदूर जिंदा दबे थे, तब विभाग की यह सक्रियता कहां गई थी. लगातार 52 घंटे के रेस्क्यू में अब तक 6 शव बरामद किए जा चुके हैं.
जिलाधिकारी बद्रीनाथ सिंह ने बताया कि ऑपरेशन अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही अंतिम शव भी निकाल लिया जाएगा. इस मामले में माइंस संचालक समेत तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जिनकी तलाश पुलिस ने शुरू कर दी है. यह त्रासदी सिर्फ हादसा नहीं, बल्कि सोनभद्र में सैकड़ों करोड़ के अवैध खनन नेटवर्क और सिस्टम की घोर विफलता का प्रमाण है, जिसमें माफिया और विभाग की चुप्पी ने छह मजदूरों की जान ले ली.
