देश भर में भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मौजूदगी स्वास्थ्य के लिए खतरा, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

नई दिल्ली: पर्यावरणविदों ने विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मौजूदगी पर गहरी चिंता जताई है. उनका कहना है कि सरकार की पहल और शमन प्रयासों के बावजूद, देश में सुरक्षित पेयजल तक पहुंच चुनौती बनी हुई है. पर्यावरणविदों की यह चिंता राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) को हाल ही में दिए गए निर्देश के मद्देनजर सामने आई है, जिसमें विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की उपस्थिति पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है.

एनजीटी ने 25 राज्यों के भूजल में आर्सेनिक और 27 राज्यों में फ्लोराइड की मौजूदगी पर प्रकाश डालने वाली एक समाचार रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया था और मामले में सुनवाई करते हुए यह रिपोर्ट मांगी है. अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी.

एनजीटी ने सीजीडब्ल्यूए से कहा है कि वह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की उपस्थिति पर अपनी रिपोर्ट में दी गई जानकारी को सारणीबद्ध करे और इससे प्रभावित जिलों, गांवों और स्रोतों की संख्या और समस्या के निवारण के लिए की गई कार्रवाई का सारांश प्रस्तुत करे.

सीजीडब्ल्यूए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को समस्या के समाधान के लिए जारी किए गए परामर्श/निर्देश/आदेशों (अगर कोई हों) का भी खुलासा करेगा. उसे प्रभावित क्षेत्रों में स्थापित किए जा सकने वाले विभिन्न क्षमताओं वाले आर्सेनिक और फ्लोराइड निष्कासन संयंत्रों की उपलब्धता का भी खुलासा करना होगा, अगर अभी तक ऐसा नहीं किया गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आर्सेनिक से जन स्वास्थ्य को सबसे बड़ा खतरा दूषित भूजल से उत्पन्न होता है. भारत, बांग्लादेश, कंबोडिया और चिली सहित कई देशों के भूजल में अकार्बनिक आर्सेनिक प्राकृतिक रूप से उच्च सांद्रता में पाया जाता है. लगभग 70 देशों में 14 करोड़ व्यक्ति 10 μg/L के अनंतिम दिशानिर्देश मान (guideline value) से अधिक स्तर पर आर्सेनिक युक्त जल का सेवन कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तीव्र आर्सेनिक विषाक्तता के शुरुआती लक्षणों में उल्टी, पेट में तकलीफ और दस्त शामिल हैं. इसके बाद, व्यक्ति को अंगों में सुन्नता और झुनझुनी, मांसपेशियों में ऐंठन और गंभीर मामलों में मृत्यु भी हो सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अकार्बनिक आर्सेनिक की उच्च सांद्रता के लंबे समय तक संपर्क में रहने (जैसे कि पीने के पानी और भोजन के सेवन के जरिये) के प्रारंभिक लक्षण आमतौर पर त्वचा में दिखाई देते हैं, जो त्वचा में परिवर्तन, त्वचा पर घाव और हथेलियों तथा पैरों के तलवों पर कठोर क्षेत्रों (हाइपरकेराटोसिस) के रूप में प्रकट होते हैं.

पर्यावरणविद् की राय

ईटीवी भारत से बात करते हुए पर्यावरण कार्यकर्ता बीएस वोहरा ने कहा, "यह दुखद है कि आजादी के दशकों बाद भी भारत में लाखों लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है. आर्सेनिक, फ्लोराइड और अन्य प्रदूषकों से होने वाला प्रदूषण जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है, खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में."

उन्होंने जोर देकर कहा कि जल जीवन मिशन जैसे सरकारी प्रयासों के बावजूद, खराब बुनियादी ढांचे, अपर्याप्त परीक्षण और असुरक्षित भूजल पर अत्यधिक निर्भरता जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं. वोहरा ने कहा, "भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड का दूषण भारत के कई हिस्सों में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है. पश्चिम बंगाल, बिहार और असम जैसे राज्यों में भूजल में आर्सेनिक का दूषण त्वचा के घावों, कैंसर और तंत्रिका संबंधी समस्याओं का कारण बनता है. राजस्थान, आंध्र प्रदेश और गुजरात में आम तौर पर पाया जाने वाला फ्लोराइड, विशेष रूप से बच्चों में दंत और कंकालीय फ्लोरोसिस (skeletal fluorosis) का कारण बनता है. लाखों लोग अशोधित (untreated) भूजल पर निर्भरता के कारण इसके संपर्क में आते हैं. कुछ क्षेत्रों में इनके संयुक्त संपर्क से स्वास्थ्य संबंधी परिणाम और भी खराब हो जाते हैं."

दिल्ली का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "यहां तक कि दिल्ली में भी भूजल में फ्लोराइड दूषण (contamination) की समस्या है, खासकर नरेला, बवाना और रोहिणी जैसे इलाकों में. 50 से अधिक ट्यूबवेल से सुरक्षित फ्लोराइड सीमा से अधिक दूषित पानी निकलता है, जिससे दंत और कंकालीय फ्लोरोसिस का खतरा है. हालांकि पानी को शुद्ध करके आपूर्ति की जाती है, फिर भी शहरी आबादी को फ्लोराइड-संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने के लिए निरंतर निगरानी और सुरक्षित विकल्प जरूरी हैं."

पर्यावरण कार्यकर्ता ने कहा कि सुरक्षित जल तक पहुंच एक बुनियादी मानव अधिकार है, न कि एक विलासिता और तत्काल, निरंतर कार्रवाई की आवश्यकता है – प्रौद्योगिकी, नीति सुधार और सामुदायिक भागीदारी को मिलाकर – यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक नागरिक, स्थान या आय की परवाह किए बिना, अपने स्वास्थ्य या सम्मान को खतरे में डाले बिना पानी पी सके.

भूजल में आर्सेनिक को कम करने के उपाय

उनका कहा है कि भूजल में आर्सेनिक को सुरक्षित जल स्रोत, फिल्ट्रेशन और नीतिगत उपायों के संयोजन से कम किया जा सकता है. उन्होंने कहा, "समुदायों को उथले कुओं, सतही जल या वर्षा जल संचयन जैसे सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख करना चाहिए. रिवर्स ऑस्मोसिस, सक्रिय एल्यूमिना और कम लागत वाले घरेलू फिल्टर जैसी आर्सेनिक हटाने की तकनीकें दूषित पानी को प्रभावी ढंग से शुद्ध कर सकती हैं. नियमित परीक्षण, आर्सेनिक मुक्त स्रोतों पर स्विच करना और प्रबंधित जलभृत पुनर्भरण जोखिम को सीमित करने में मदद कर सकते हैं. सार्वजनिक जागरूकता और फिल्टर का उचित रखरखाव जरूरी है."

वोहरा ने पूरे भारत में आर्सेनिक और फ्लोराइड-दूषित क्षेत्रों के मानचित्रण और निगरानी पर जोर दिया. उन्होंने आगे कहा, "इसे भूजल गुणवत्ता नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए, सतही और वर्षा जल जैसे सुरक्षित जल विकल्पों को बढ़ावा देना चाहिए और पर्यावरण-अनुकूल शुद्धिकरण तकनीकों का समर्थन करना चाहिए. जन स्वास्थ्य प्रयासों के साथ शमन को एकीकृत करने के लिए संबंधित मंत्रालयों के साथ समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है. सामुदायिक जागरूकता, क्षमता निर्माण और स्थानीय जल प्रशासन को मजबूत किया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, कम लागत वाले फिल्ट्रेशन और सख्त पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के लिए अनुसंधान में निवेश जरूरी है. प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने और सुरक्षित पेयजल की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए केंद्रित बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की जरूरत है."

गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में, केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने कहा था कि केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) पूरे देश में नियमित रूप से यूरेनियम और आर्सेनिक सहित कई प्रदूषकों के लिए भूजल गुणवत्ता निगरानी करता है और विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के दौरान क्षेत्रीय स्तर पर भूजल गुणवत्ता के आंकड़े भी तैयार करता है. इन अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कुछ इलाकों में भूजल में यूरेनियम और आर्सेनिक की मात्रा मानव उपभोग के लिए स्वीकार्य सीमा से ज्यादा है.

उन्होंने कहा कि देश के कुछ अलग-थलग हिस्सों में यूरेनियम और आर्सेनिक दूषण के अपेक्षाकृत अधिक मामले सामने आए हैं, जो दूषण को लेकर संवेदनशील क्षेत्रों में सीजीडब्ल्यूबी द्वारा परीक्षण की आवृत्ति में वृद्धि के कारण हो सकता है.