भोपाल । मप्र में 9 साल बाद सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मिलने की आस जगी थी, लेकिन मामला एक बार फिर से अदालत में फंस गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता खोल दिया है, लेकिन कुछ कर्मचारियों के कारण मामला हाई कोर्ट में चला गया है, जहां सुनवाई के लिए तारीख पर तारीख दी जा रही है। गौरतलब है कि प्रदेश में 2016 पर बैन लगा था। कई सरकारें आई-गई लेकिन मामला सुलझ नहीं पाया। अब डॉ. मोहन यादव सरकार ने कर्मचारियों को प्रमोशन देने की कवायद शुरू की है, लेकिन मामला एक बार फिर उलझ गया है। प्रमोशन में आरक्षण को लेकर दायर जनहित याचिका पर 14 अगस्त को मप्र हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में समय मांगा गया, जिसके पीछे कारण बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं सीएस वैद्यनाथन और तुषार मेहता को हाईकोर्ट में बहस के लिए नियुक्त किया गया है। सरकार ने निवेदन किया कि चूंकि दोनों वरिष्ठ अधिवक्ता राज्य का पक्ष रखेंगे, इसलिए उन्हें तैयारी के लिए समय दिया जाए।
चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने यह मांग स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई के लिए 9 सितंबर की तारीख तय की है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुयश मोहन गुरु ने बताया कि चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि सरकार द्वारा जो चार्ट पेश किया गया है, वह यह स्पष्ट नहीं करता कि आंकड़े जनगणना (सेंसर) के आधार पर हैं या फिर सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व के आधार पर। इस पर कोर्ट ने तुलनात्मक वस्तुस्थिति स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा हाईकोर्ट ने यह भी कहा है की नई पॉलिसी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन हुआ है या नहीं? यह भी बताया जाए। बता दें कि मध्यप्रदेश में लागू नई प्रमोशन नीति 2025 को लेकर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने यह याचिका दायर की है। इससे पहले सुनवाई 12 अगस्त को प्रस्तावित थी, लेकिन चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच की उपलब्धता नहीं होने के कारण इसे 14 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया था।
नई नीति के तहत पदोन्नति नहीं दी जाएगी
पिछली सुनवाई में कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि अगली सुनवाई तक किसी को नई नीति के तहत पदोन्नति नहीं दी जाएगी। मामले में भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि हाईकोर्ट पहले ही साल 2002 के प्रमोशन नियमों को आरबी राय केस में रद्द कर चुका है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने नए सिरे से वही नीति लागू कर दी जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और वहां यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी है। बता दें कि वर्ष 2016 से सुप्रीम कोर्ट में मप्र के कर्मचारियों की पदोन्नति संबंधी याचिका विचाराधीन होने से प्रदेश में कर्मचारियों के प्रमोशन पर रोक लगी थी। पदोन्नति का रास्ता खोलने के लिए डॉ. मोहन यादव कैबिनेट ने 17 जून को मप्र लोक सेवा प्रमोशन नियम-2025 को मंजूरी दी थी। सरकार ने पदोन्नति के नए नियमों के संबंध में 19 जून को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने 26 जून को सभी विभागों को 31 जुलाई से पहले डीपीसी की पहली बैठक बुलाने के निर्देश दिए थे। सीएस के निर्देश पर सभी विभागों ने डीपीसी की बैठकें बुलाने की तैयारियां कर ली थीं। इस बीच पदोन्नति के नए नियमों के विरोध में कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को कर्मचारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को अगली सुनवाई (15 जुलाई) में कर्मचारियों की पदोन्नति के पुराने नियम (वर्ष 2002) और नए नियम (वर्ष 2025) में अंतर संबंधी तुलनात्मक चार्ट पेश करने का आदेश दिया था। साथ ही अगली सुनवाई तक पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। तभी से सभी 54 विभागों में पदोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगी है। हाईकोर्ट में 15 जुलाई को सुनवाई टल गई थी। फिर याचिका पर सुनवाई 12 अगस्त को प्रस्तावित थी, लेकिन चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच की उपलब्धता नहीं होने के कारण इसे 14 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया था। प्रदेश में नौ साल से पदोन्नति पर रोक लगी होने के कारण इस अवधि में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी बगैर प्रमोशन मिले रिटाराई हो चुके हैं।
प्रमोशन में आरक्षण: फिर तारीख पर तारीख
