सागर के बड़ा बाजार में पतली पतली गलियां और उनमें जगह पर ऐतिहासिक प्राचीन और प्रसिद्ध श्री राधा कृष्ण के अलग-अलग स्वरूप में अनेक मंदिर है. जिसकी वजह से इस क्षेत्र को मिनी वृंदावन या गुप्त वृंदावन के नाम से जाना जाता है. यहां भगवान श्री कृष्णा से जुड़े त्यौहार बड़े ही हर्ष उल्लास और धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं. इस कृष्ण जन्माष्टमी पर भी श्री देव अटल बिहारी मंदिर में दो दिन का जन्मोत्सव कार्यक्रम मनाया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से बुंदेली बधाई और नृत्य किया जाएगा यहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शनों को उमड़ते हैं.
ऐसे ही यहां पर बांके बिहारी का 350 साल पुराना चमत्कारिक मंदिर है,जहां एक बार दर्शन करने के बाद ही लोग भगवान के हो जाते हैं. मंदिर में जाते ही वृंदावन की अनुभूति होने लगती है. भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी की अनुपम छवि लोगों का मन मोह लेती है.
इस मंदिर की खास बात यह है कि बांके बिहारी को यहां पर श्री देव अटल बिहारी के नाम से जाना जाता है. इसको लेकर एक कहानी यहां पर चलती है जिसके मुताबिक भगवान बांके बिहारी की यहां पर स्थापना नहीं की गई थी बल्कि वह खुद चलकर आए थे तब से यहीं पर है.
मंदिर के पुजारी अमित चांचौदिया के मुताबिक माना जाता है कि पहले साधुओं की टोली जब पैदल तीर्थ यात्राएं करती थी तो वह बांके बिहारी को डोली में लेकर चलती थी. ऐसे ही एक टोली तीर्थ यात्रा पर थी और अपनी इस यात्रा के दौरान जब सागर का पड़ाव आया और रात होने की वजह से उन्होंने विश्राम लिया, तो बांके बिहारी को भी बैठा दिया, सुबह पूजन ध्यान करने के बाद जब उन्होंने आगे बढ़ने के लिए बिहारी जी को उठाया तो वह 1 इंच तक नहीं हिले, साधुओं के सारे प्रयास नाकाम रहे प्रभु की इच्छा मानकर उनको यही विराजमान कर दिया, इस तरह बांके बिहारी अटल बिहारी हो गए.