पिछड़ी सोच पर भारी कश्मीर की नई आवाज़, सुरों से लिखी आज़ादी की दास्तां
मुंबई: कहते हैं, एक सच्चे कलाकार की कला हर धर्म, जाति, पंथ और लिंग की सीमाओं से ऊपर उठकर सिर्फ इंसानियत और भावनाओं की जुबान बोलती है। उसकी कला को समाज की बेड़ियां जकड़ नहीं सकतीं। दूसरे शब्दों में कहें तो एक कलाकार को कैद किया जा सकता है लेकिन उसकी कला को नहीं। अभिनेत्री…
