नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के जेल अधिकारियों की लापरवाही को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। मामला उस अंडरट्रायल आरोपी से जुड़ा है जो चार साल से ज्यादा समय से जेल में बंद है, लेकिन उसे 85 में से 55 सुनवाई तारीखों पर ट्रायल कोर्ट के सामने पेश ही नहीं किया गया। कोर्ट ने इस स्थिति को मूलभूत अधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने आरोपी को जमानत दे दी। इस दौरान पीठ ने कहा कि जेल विभाग की यह विफलता न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया और आरोपी के संवैधानिक अधिकारों को सीधे प्रभावित करती है। पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र राज्य के महानिरीक्षक या कारागार विभाग के प्रमुख को व्यक्तिगत जांच का निर्देश दिया है और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने को कहा है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने आदेश में कहा कि हम निर्देश देते हैं कि महाराष्ट्र के जेल महानिरीक्षक या कारागार विभाग के प्रमुख स्वयं इस मामले की जांच करें, जिम्मेदारी तय करें और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करें। यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि किसी को बचाने या छिपाने का प्रयास किया गया, तो इसके लिए स्वयं डीजी कारागार विभाग के प्रमुख को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
पीठ ने कहा कि आरोपी को कोर्ट में प्रस्तुत करना सिर्फ त्वरित सुनवाई के लिए नहीं है, बल्कि यह उसकी सुरक्षा, उसके साथ किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराने और न्यायपालिका से सीधे संवाद का एक अनिवार्य माध्यम है। आरोपी की पेशी केवल शीघ्र सुनवाई के लिए नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि उसके साथ कोई दुर्व्यवहार न हो और वह अदालत के सामने अपनी शिकायतें रख सके। इस मूलभूत सुरक्षा का गंभीर उल्लंघन हुआ है, जो अत्यंत चिंताजनक और निंदनीय है। सुप्रीम कोर्ट ने
55 सुनवाई तारीखों पर ट्रायल कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया आरोपी
