फीकी कहानी पर नहीं चला एक्टिंग का जादू, कॉमेडी ने दबा दिए इमोशन्स

मुंबई: एक शानदार बिजनेस आइडिया, ब्रांड को लॉन्च करने का संघर्ष, रिश्तों में गलतफहमियां और मार्केट में होने वाला कॉम्पीटिशन, इन सभी को मिलाकर अगर कॉकटेल बनाई जाए तो तैयार हो जाएगी 'डू यू वाना पार्टनर'। कुल 8 एपिसोड वाली इस सीरीज में तमन्ना भाटिया और डायना पेंटी ऐसी 2 महत्वकांशी लड़कियों का किरदार निभा रही हैं जो जिंदगी में कुछ कर गुजरना चाहती हैं। जब भी किसी सीरीज या फिल्म में लंबी-चौड़ी स्टारकास्ट हो तो उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। इस सीरीज में जावेद जाफरी, श्वेता तिवारी, रणविजय सिंह, नकुल मेहता जैसे कलाकार भी नजर आते हैं। अब कितना प्रभावित कर पाई और कितना नहीं, यह तो आगे पता चलेगा लेकिन ये सीरीज इतना तो जरूर सिखाकर जाती है कि कभी भी दोस्ती के बीच बिजनेस को लेकर नहीं आना चाहिए। चलिए जानते हैं इस सीरीज को देखने से पहले आप क्या कुछ एक्स्पेक्ट कर सकते हैं। 

कहानी 
सीरीज की कहानी शुरू होती है शिखा रॉय चौधरी (तमन्ना भाटिया) के नौकरी जाने से जब उसकी कंपनी को दूसरी कंंपनी टेकओवर कर लेती है। इसके बाद वो कॉर्पोरेट जॉब से परेशान होकर आखिरकार अपने उस सपने को पूरा करने के बारे में सोचने लगती है जो कभी उसके पापा देखा करते थे- खुद की बीयर बनाने का सपना। हालांकि ना तो उसके पास पैसा है और ना ही बेस्ट फ्रेंड अनाहिता (डायना पेंटी) की रजामंदी। अनाहिता भी अपनी जॉब में कर तो अच्छा रही है लेकिन उसे झटका तब लगता है जब उसकी कंपनी में उसे उसका हक नहीं मिलता। मतलब उसे प्रमोशन ना मिलकर किसी आदमी को ही सारा क्रेडिट मिल जाता है। इसके बाद अनाहिता और शिखा दोनों मिलकर शिखा के आइडिया को बिजनेस बनाने का पूरा प्लान करती हैं। बीयर बनाने वाला बॉबी बग्गा (नकुल मेहता) मिल जाता है लेकिन बीयर कहां बनाई जाएगी यानी कि प्लांट, उसके लिए कोई मानता नहीं है। कोई बिजनेस करने निकलीं दो लड़कियों पर दांव नहीं लगाना चाहता।

लेकिन फिर किस्मत साथ देती है और अचानक से अनाहिता का गला खराब होने की वजह से उसकी आवाज भारी हो जाती है। बड़ी ही अजीब बात है लेकिन फोन पर उसकी भारी आवाज सुनकर लोग उसे मर्द समझकर धंधा करने के लिए तैयार हो जाते हैं। हालांकि अभी भी सबसे बड़ी मुश्किल से पार पाना है और वो है पैसा। ऐसे में बॉबी दोनों की मुलाकात कराता है एक गैंगस्टर की काफी करीबी और खास लैला सिंह (श्वेता तिवारी) से, जो उन्हें 2 करोड़ का लोन देती है। इन सारी मुश्किलों से पार पाकर आखिरकार दोनों एक अच्छी मार्कटिंग की बदौलत अपनी बीयर को सक्सेसफुली लॉन्च कर देती हैं। यही से शुरू होती है असली जंग। वर्षों पहले शिखा के पिता का बीयर फॉर्मुला चुराकर मार्केट में आज जिस वालिया ने अपनी करोड़ों की कंपनी खड़ी कर ली है, वही इस बार भी अपने ही दोस्त की बेटी के बिजनेस को रोकने के लिए अपने हर दांव-पेंच का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है। फिर कैसे दोनों की कंपनी मार्केट में सांसें ले पाएगी? क्या सभी के आपसी रिश्ते इतने उलझ जाएंगे कि कंपनी सर्वाइव ही नहीं कर पाएगी और जावेद जाफरी का सीरीज में क्या अहम किरदार है, ये सबकुछ जानने के लिए आपको सीरीज देखनी होगी।  

निर्देशन
सीरीज का डायरेक्शन किया है अर्चित कुमार और कॉलिन डी'कुन्हा ने। इसे करण जौहर के धर्माटिक एंटरटेनमेंट द्वारा बनाया गया है। सीरीज के डायरेक्शन की अगर बात करें तो काफी निराशा हो सकती है क्योंकि सीरीज का बैकड्रॉप एक इमोशनल कहानी पर बेस्ड है जहां एक दोस्त ही दोस्त की पीठ में खंजर घोंपता है लेकिन उसे उतनी संजीदगी से नहीं दिखाया गया है। सीरीज को कॉमेडी का तड़का देने के लिए इसके मेन फ्लेवर यानी इमोशन्स को काफी पीछे छोड़ दिया गया है। जब आप किसी ऐसी कहानी को देखते हैं जहां बच्चे अपने मां-बाप की गलतियों से सीख लेते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं, तब भावुकता का एक कनेक्शन जो फील होना चाहिए वो इस सीरीज में काफी मिसिंग लगता है। निर्देशन और स्क्रीनप्ले के डिपार्टमेंट में सीरीज काफी बेहतर हो सकती थी।

अभिनय 
सीरीज में कलाकारों के अभिनय की बात करें तो काफी हद तक तमन्ना भाटिया और डायना पेंटी ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय करने की कोशिश की है लेकिन बावजूद इसके फीकी कहानी और स्क्रीनप्ले के चलते एक्टिंग में भी कुछ खास दम देखने को नहीं मिलता है। ऐसा लगता है जैसे रणविजय के किरदार 'कबीर' को जबरदस्ती बीच में डाला हुआ है। सीरीज की कहानी में उस किरदार का कोई खास योगदान नजर नहीं आता। ऐसा लगता है जैसे किरदारों के पास कुछ खास करने के लिए नहीं है। सीरीज बहुत जगहों पर काफी प्रिडेक्टेबल लगती है। हालांकि अगर इमोशन्स को थोड़ा बेहतर तरीके से दिखाया जाता ना कि मजाक-मस्ती के तौर पर ही, तो कलाकार भी अभिनय से सीरीज को थोड़ा बेहतर बना सकते थे। 

खामियां
इस सीरीज को देखेंगे तो शुरुआती कुछ एपिसोड्स तो काफी बोरिंग लग सकते हैं। आखिर-आखिर में जब दिलचस्पी पैदा होने लगती है तो पता चलता है कि सीरीज तो खत्म होने वाली है। सीरीज में कोई ऐसा गाना नहीं है जो मन को भा सके। बीच-बीच में दूसरी फिल्मों के गानों का इस्तेमाल किया गया है थोड़ा-थोड़ा लेकिन वो भी उतना प्रभावी नहीं हो पाता। इसके अलावा कई ऐसी चीजें देखने को मिलती हैं जो समझ में नहीं आती। जैसे एक शख्स को भूलने की बीमारी है लेकिन जब उसका मेन काम आता है तो वो कुछ भी नहीं भूलता। इसके अलावा शिखा छोटी से छोटी बात अपनी बेस्ट फ्रेंड से शेयर कर लेती है लेकिन बिजनेस को लेकर इतनी बड़ी बात वो ना जाने क्यों बताती ही नहीं है। 

देखें या नहीं?
अगर आप एक लाइट सीरीज देखना चाहते हैं जिसे देखकर ज्यादा दिमाग ना लगाना पड़े या फिर आप बिजनेस में दिलचस्पी रखते हैं तो इसे आप जरूर देख सकते हैं। अगर वैसे आप बोरियत फील कर रहे हैं तो आपके लिए ये एक ठीक-ठाक ऑप्शन हो सकती है लेकिन हां कुछ लोग इसे देखने के बाद फील कर सकते हैं कि बिना कुछ देखे बोरियत महसूस करना बेहतर ऑप्शन है।