सारनाथ से हटाई गई मुख्य पट्टिका जिसमें संरक्षण का श्रेय ब्रिटिश अधिकारियों को दिया गया 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने बताया बाबू जगत सिंह ने खुदाई कर महत्ता को उजागर किया

 सारनाथ । यूनेस्को की टीम के सारनाथ दौरे से पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बड़ा कदम उठाने की तैयारी की है। दरअसल बौद्ध धर्म से जुड़े ऐतिहासिक स्थल को भारत ने विश्व धरोहर सूची के लिए नामित किया है। इसी कड़ी में एएसआई अब वहां एक “सुधार की गई” पट्टिका लगाने जा रहा है, जिसमें स्थल के संरक्षण का श्रेय ब्रिटिश अधिकारियों को नहीं बल्कि तत्कालीन स्थानीय शासक परिवार के सदस्य बाबू जगत सिंह को मिलेगा।
फिलहाल सारनाथ में लगी मुख्य पट्टिका पर यह लिखा है कि साइट के पुरातात्विक महत्व को सबसे पहले 1798 में डंकन और कर्नल ई. मैकेंजी द्वारा उजागर किया गया, जिसके बाद अलेक्जेंडर कनिंघम (1835-36), मेजर किट्टो (1851-52), एफ.ओ. ओर्टेल (1904-05), सर जॉन मार्शल (1907), एम.एच. हरग्रेव्स (1914-15) और अंत में दयाराम साहनी द्वारा खुदाई कराई गई। रिपोर्ट के मुताबिक, अब एएसआई का कहना है कि बाबू जगत सिंह ने 1787-88 में यहां खुदाई कर इस स्थल की पुरातात्विक महत्ता को उजागर किया था। सिंह बनारस के शासक राजा चैत सिंह के वंशज थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, जगत सिंह के वंशजों ने एएसआई को प्रस्ताव भेजकर पट्टिका में सुधार की मांग की थी। परिवार का कहना है कि इतिहास में गलत तरीके से ब्रिटिश अधिकारियों को महान बताया गया है। एएसआई महानिदेशक यदुबीर रावत ने पुष्टि की है कि “स्थल के प्रकाश में आने की तारीख को नए तथ्यों के आधार पर संशोधित किया जाएगा।” जगत सिंह के वंशज प्रदीप नारायण सिंह ने कहा कि उन्होंने एएसआई से सांस्कृतिक नोटिस बोर्ड पर भी संशोधन करने का अनुरोध किया है ताकि “भ्रामक विवरण” हटाया जा सके।
इसके पहले इसी साल एएसआई ने सारनाथ के धर्मराजिका स्तूप पर लगी पट्टिका में भी बदलाव किया था। पुरानी पट्टिका में जगत सिंह को “दीवान” और “स्तूप का विनाशक” बताया गया था। लेकिन संशोधित पट्टिका में उल्लेख है कि यह ढांचा उनके कारण प्रकाश में आया और इस कभी “जगत सिंह स्तूप” भी कहा जाता था। एक अधिकारी ने कहा, 1861 में एएसआई की स्थापना और सारनाथ के संरक्षित स्मारक बनने तक, न वैज्ञानिक शोध हुआ था और न ही दस्तावेजीकरण। इसलिए कई स्मारकों की पट्टिकाओं में ब्रिटिश अधिकारियों के व्यक्तिपरक आकलन हो सकते हैं। दशकों बाद, यदि कुछ अलग पाया जाता है, तब उसे सुधारा जा सकता है।

खुदाई से जुड़े तथ्य और हालिया रिसर्च
एएसआई के सारनाथ संग्रहालय की सूची के अनुसार, जगत सिंह ने अपने भवन निर्माण के लिए प्राचीन टीले से सामग्री निकालने का आदेश दिया था। इसी दौरान यहां से एक बौद्ध अवशेषों से युक्त पात्र मिला था, जिसका एक हिस्सा आज भी एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता के पास संरक्षित है। इसके अलावा, वर्ष 2013-14 में पुरातत्वविद् बी.आर. मणि द्वारा कराई गई खुदाई में यह प्रमाण मिले कि बुद्ध और अशोक के बीच के लगभग 300 वर्षों में भी सारनाथ बौद्ध गतिविधियों का केंद्र बना रहा।