कहानी में दम, पर एक्टिंग में कमी! वैभव ने मारी बाज़ी, वाणी इमोशनल सीन्स में रह गईं पीछे

मुंबई : नेटफ्लिक्स पर आई नई सीरीज ‘मंडला मर्डर्स’ एक मर्डर मिस्ट्री है, लेकिन ये वैसी नहीं है जैसी आमतौर पर देखी जाती हैं। इसमें सिर्फ अपराध नहीं है, बल्कि इसके साथ पुरानी कहानियों से जुड़ी बातें, अंधविश्वास, पॉलिटिक्स और सिस्टम की सच्चाइयों को भी मिलाने की कोशिश की गई है। इस वजह से कहानी थोड़ी अलग बनती है, हालांकि, कुछ जगहों पर चीजें जरूरत से ज्यादा हो जाती हैं जिससे असर थोड़ा कम हो जाता है।

वाणी कपूर की परफॉर्मेंस

जहां तक एक्टिंग की बात है, वाणी कपूर ने पहली बार ओटीटी पर काम किया है। सीरीज की शुरुआत में उनका अंदाज अच्छा लगता है, शांत, समझदार और प्रोफेशनल। एक्शन वाले सीन में भी उनका काम ठीक है। सीरीज में ऐसे सीन आते हैं जहां उनके किरदार को दुख, गुस्सा, डर या कोई गहरी भावना दिखानी होती है। ऑडियंस को भी वो भाव महसूस होना चाहिए, वहां वाणी कपूर की एक्टिंग उतना असरदार नहीं लगती। उनके चेहरे के हावभाव या उनकी आवाज में वो भाव नहीं आता जो उस पल की जरूरत होता है। जैसे अगर उनका किरदार किसी दर्दनाक घटना को याद कर रहा है या किसी अपने को खोने का दुख जता रहा है, तो उनका एक्सप्रेशन थोड़ा फीका या बनावटी लगता है।

वैभव राज गुप्ता: सीरीज की जान

वैभव राज गुप्ता सीरीज की जान हैं। 'गुल्लक' से पहचाने जाने वाले वैभव ने इस बार बिल्कुल अलग और गंभीर रोल निभाया है। विक्रम सिंह का किरदार ऐसा है जो बाहर से सख्त दिखता है, लेकिन अंदर ही अंदर बहुत कुछ झेल रहा है और ये सारे भाव वैभव ने बड़ी सादगी से निभाए हैं। उनकी आंखों में डर, गुस्सा और उलझन सब साफ नजर आता है। यही वजह है कि उनका किरदार सबसे ज्यादा जुड़ाव पैदा करता है।

सुरवीन चावला: साइलेंट लेकिन स्ट्रॉन्ग प्रेजेंस

सुरवीन चावला ने अनन्या भारद्वाज की भूमिका निभाई है, जो एक पॉलिटीशियन है। उनका किरदार चालाक और थोड़ा रहस्यमयी है। सुरवीन ने अपने हिस्से का काम अच्छे से किया है। कभी-कभी वह काफी सख्त लगती हैं, तो कभी चुप और सोच में डूबी हुई। उनका किरदार छोटा है, लेकिन ध्यान खींचता है।

बाकी कलाकारों का काम

श्रीया पिलगांवकर की भूमिका ज्यादा बड़ी नहीं है, लेकिन वह कहानी में एक अहम मोड़ लाती हैं। वह ज्यादातर फ्लैशबैक में दिखाई देती हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी से कहानी में गहराई आती है। बाकी कलाकारों ने भी अपने किरदार ईमानदारी से निभाए हैं, जिससे सीरीज का माहौल असली लगता है।

क्या हैं कमजोरियां

अब बात करें सीरीज की कमजोरियों की। कुछ रोमांटिक सीन और कुछ किरदारों की बैक स्टोरी कहानी में जरूरत से ज्यादा लगती है। टाइमलाइन भी कई जगह उलझी हुई है, जिसे समझने में मेहनत लगती है। जब लगता है कि क्लाइमेक्स में सारी बातें साफ हो जाएंगी, तब थोड़ा निराशा होती है।

क्या है खास?

सीरीज जाति, पुरुष प्रधान सोच और सिस्टम की लापरवाही जैसे मुद्दों को छूती है, लेकिन इन पर बहुत गहराई से बात नहीं कर पाती। इसलिए इनका असर अधूरा रह जाता है।

देखनी चाहिए या नहीं?

फिर भी, ‘मंडला मर्डर्स’ में कुछ ऐसी बातें हैं जो इसे एक बार देखने लायक बनाती हैं। जैसे इसका माहौल, कैमरे का काम और वैभव राज गुप्ता की एक्टिंग। अगर आपको धीमी लेकिन सोचने पर मजबूर करने वाली कहानियां पसंद हैं, तो ये सीरीज आपको जरूर पसंद आ सकती है।