पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की सेहत में अब तेजी से सुधार हो रहा है. विगत 10 दिनों से बुखार से पीड़ित महाप्रभु और उनके सहचर देवता ‘अनवसर घर’ नामक विश्रामगृह में विश्राम कर रहे थे और विशेष औषधीय उपचार प्राप्त कर रहे थे. एकादशी के शुभ दिन पर देवताओं को दसमूलमोदक नामक पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि अर्पित की गई, जिसे 10 प्रकार की जड़ी-बूटियों और औषधीय मूलों से तैयार किया गया है. यह औषधि राजवैद्य (राजकीय वैद्य) द्वारा विशेष रूप से तैयार की गई थी और शुक्रवार को मंदिर प्रशासन को सौंप दी गई थी.
एकादशी पर किया खड़ी लागी का अनुष्ठान
देवसेवक भवानी दैतापति ने बताया कि योगिनी एकादशी का दिन महाप्रभु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है. एकादशी पर ‘खड़ी लागी’ अनुष्ठान किया जाता है. शाम के समय महाप्रभु के पूरे शरीर पर यह लेप चढ़ाया जाएगा, जिससे उनके शरीर को ठंडक प्राप्त होगी. ठीक वैसे ही जैसे मानव शरीर में बुखार आने पर शरीर गर्म हो जाता है, वैसे ही महाप्रभु ने भी मानवीय लीला करते हुए इस पीड़ा को दर्शाया है. रात में चंदन लेप (सुगंधित ठंडी चंदन की परत) पूरे शरीर पर लगाया जाएगा, जिससे महाप्रभु का शरीर शीतल होगा और वे पूर्णतः स्वस्थ हो जाएंगे.
22 जून को दी जाएगी सूचना
22 जून को द्वादशी के दिन महाप्रभु जगन्नाथ के स्वस्थ होने की सूचना गजपति महाराज (पुरी के राजवंश) को दी जाएगी. इस अवसर पर राजप्रसाद भेजा जाएगा, जिसमें महाप्रभु के शरीर पर लगाए गए चंदन, उपचार में प्रयुक्त वस्तुएं और वस्त्र सम्मिलित होंगे. यह परंपरा यह दर्शाती है कि परम ब्रह्म, हमारे आराध्य भगवान जगन्नाथ अब पूर्णतः स्वस्थ हैं. महाप्रभु की सेहत में सुधार के बाद नेत्र उत्सव और नवजौवन दर्शन की तैयारी शुरू हो गई है.
15 दिन तक नहीं देते दर्शन
यह पर्व भगवान के फिर से दर्शन की शुरुआत मानी जाती है, जो रथ यात्रा के दो दिन पहले होता है. इससे पहले 15 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं हो पाता क्योंकि महाप्रभु ‘मानव लीला’ के अंतर्गत अस्वस्थ रहते हैं. उन्होंने कहा कि भक्त समाज आनंदित है. कहा गया है कि जो व्यक्ति महाप्रभु को रथ पर विराजमान देखता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता. वह बैकुंठ की प्राप्ति करता है. यह एक ऐसा पर्व है जहां जाति-पंथ-धर्म का भेद समाप्त हो जाता है. सभी लोग भगवान के रथ को खींचते हैं, राजा हो या रंक.
आषाढ़ पूर्णिमा से हो जाते हैं बीमार
हर साल आषाढ़ मास में स्नान पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है. मान्यता है कि इस स्नान के बाद तीनों विग्रह बीमार हो जाते हैं और 15 दिन तक अनवर्षर काल यानी सार्वजनिक दर्शन से दूर रहते हैं. इस दौरान उन्हें शुद्ध औषधियों और आयुर्वेदिक पथ्य द्वारा सेवा दी जाती है लेकिन एकादशी के मौके पर प्रभु के औषधि दी जाती हैं, जिससे प्रभु की सेहत में सुधार आने लगता है. पूरी तरह से स्वस्थ्य होने के बाद 27 जून को बिना किसी परेशानी के भाई-बहन के साथ भगवान जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल हो सकेंगे.