शुभ योग में सावन के पहले सोमवार का व्रत आज, जानें महत्व, पूजा विधि, पूजन मुहूर्त, शिव मंत्र और आरती

आज सावन के पहले सोमवार का व्रत किया जा रहा है और आज का दिन भगवान शिव और शक्ति की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन है. यह दिन शिवभक्तों के लिए विशेष फलदायी और कृपासंपन्न होता है. शिव पुराण के अनुसार, सावन के सभी सोमवार का व्रत करने से सभी दुख व परेशानियों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. यह व्रत रोगों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय, कर्ज से छुटकारा, संतान प्राप्ति और मानसिक शांति के लिए अत्यंत प्रभावी है. सावन मास के पहले दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिससे आज के दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. इन शुभ योग में पूजा अर्चना करने से व्रत का फल दोगुना मिलता है. आइए जानते हैं सावन के पहले सोमवार को किस मुहूर्त में और किस विधि से शिव पूजन करें…

 

सावन सोमवार का महत्व
शिव पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार सावन मास में सभी सोमवार का व्रत और शिव पूजन से सौ यज्ञों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. यह व्रत रोगों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय, कर्ज से छुटकारा, संतान प्राप्ति और मन शांति के लिए अत्यंत प्रभावी है. इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है. सावन के पहले सोमवार को भगवान शिव के साथ माता पार्वती और शिव परिवार का पूजन करने का विशेष महत्व है. आज के दिन सुबह और प्रदोष काल में शिव पूजने करने से कुंडली में मौजूद सभी दोष से मुक्ति मिलती है और ग्रहों का शुभ प्रभाव मिलता है.

सावन के पहले सोमवार पर शुभ योग
सावन के पहले सोमवार को कई शुभ योग बन रहे हैं. आज के दिन आयुष्मान योग के साथ सौभाग्य योग बन रहा है. साथ ही शुक्र वृषभ राशि में रहने से मालव्य राजयोग, मिथुन राशि में सूर्य और गुरु के होने से गुरु आदित्य योग जैसे महायोग बन रहे हैं. साथ ही आज चंद्रमा पर मंगल की सप्तम दृष्टि रहने वाली है, जिससे लक्ष्मी योग का निर्माण भी हो रहा है, जिससे आज के दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. वहीं आज शिवजी का वास कैलाश पर रहने वाला है, जो बेहद दुर्लभ माना जाता है. इस तरह सावन के पहले सोमवार के दिन 5 शुभ योग बन रहे हैं.

 

सावन सोमवार पूजन मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त, 04:12 ए एम से 04:53 ए एम. साथ ही आयुष्मान योग 04:14 पी एम तक रहने वाला है, इसके बाद सौभाग्य योग बनेगा. इस तरह आप पूरे दिन किसी भी समय शिवजी का पूजन कर सकते हैं. लेकिन आपको राहुकाल के समय पूजा अर्चना करने से बचना होगा, आज राहुकाल 07:17 ए एम से 09:01 ए एम तक है. प्रदोष काल पूजन (विशेष फलदायी) 07:12 पीएम 08:34 पीएम.

सावन सोमवार व्रत व पूजा विधि
आज ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें (सफेद या पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं). व्रत का संकल्प लें कि मैं सावन सोमवार व्रत का संकल्प लेता/लेती हूं – हे शिव! मेरी मनोकामना पूर्ण करें. पास के शिवालय जाकर शिवलिंग पर सबसे पहले पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल) अर्पित करें. इसके बाद बेलपत्र (त्रिपत्रीय), भस्म, रुद्राक्ष, धतूरा, आक के फूल, अक्षत (चावल), धूप, दीप, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें. इसके बाद शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र, आरती करें.

 

शिव पूजन इस तरह करें
ॐ नमः शिवाय मंत्र के साथ शिवलिंग पर जल अर्पित करें. पंचामृत स्नान कराएं और फिर शुद्ध जल से धोकर बेलपत्र चढ़ाएं. चंदन, भस्म लगाएं, पुष्प व फल अर्पित करें. शिव चालीसा का पाठ करें. अंत में शिवजी की आरती करें. दिनभर निराहार या फलाहार रहें. प्रदोष काल में फिर से शिव पूजन करें और कथा पढ़ें व सुनें. अगले दिन व्रत का पारण करें (उद्यापन).

शिवजी की मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

 

पंचाक्षरी मंत्र
ॐ नमः शिवाय

रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

 

शिव संतान प्राप्ति मंत्र
ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये नमः॥

धन और व्यापार में वृद्धि हेतु मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गंग गणपतये वर वरद
सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।

 

शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥