मंदोदरी मंदिर के मालिकाना हक को लेकर दो पक्ष आमने-सामने, कोर्ट से लेकर सड़क तक पहुंचा मामला

मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ का सदर इलाका इन दिनों चर्चा में है। वजह है यहां स्थित ऐतिहासिक बाबा बिल्वेश्वर नाथ मंदिर, जिसे रामायणकालीन धरोहर माना जाता है। मान्यता है कि रावण की पत्नी और शिवभक्त मंदोदरी यहां पूजा-अर्चना करने आया करती थीं। यही कारण है कि मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अपार है। लेकिन, बीते कुछ वर्षों से इस मंदिर पर कब्जे और आयोजन को लेकर दो अलग-अलग कमेटियां आमने-सामने हैं। विवाद इतना बढ़ गया कि जिला प्रशासन और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और मंदिर के बाहर फोर्स तैनात करनी पड़ी।

कौन है असली संचालक?
पंडित शास्त्री गणेश ज्योतिषी का कहना है कि उनके पूर्वज पीढ़ियों से मंदिर में पूजा-पाठ करते आ रहे हैं। इसलिए, मंदिर का संचालन और आयोजनों की जिम्मेदारी भी पुजारियों की ही होनी चाहिए। वहीं, गणेश अग्रवाल और पवन गर्ग का कहना है कि मंदिर समाज का है, यहां होने वाले आयोजन समाज और दानदाताओं के सहयोग से संपन्न होते हैं। पुजारियों का दायित्व केवल पूजा-पाठ करना है, न कि मंदिर की व्यवस्थाओं और चंदे के संचालन पर कब्जा करना।

प्रशासन की मौजूदगी में समझौता
इन्हीं मतभेदों ने टकराव का रूप ले लिया। खासकर 29 तारीख को होने वाले बलदेव बाबा की छठ महोत्सव को लेकर दोनों पक्ष आमने-सामने हो गए। हालात बिगड़ने की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने मंदिर परिसर और आसपास पुलिस बल की तैनाती की। वही सीओ कैंट नवीन शुक्ला और SDM ने बताया कि दोनों पक्षों में प्रसाद वितरण के लिए समझौता हो गया है। फिर भी प्रसाद वितरण के दौरान पुलिस बल तैनात रहेगा।

जहां मंदोदरी करती थीं पूजा
इतिहासकार बताते हैं कि मेरठ (जिसे पहले मयराष्ट्र कहा जाता था) में मय दानवों का राजा मयराष्ट्र था और मंदोदरी उसकी बेटी थी। मंदोदरी सदर में स्थित रामायणकालीन मंदिर में शिव की उपासना करने आती थीं। कथाओं के अनुसार, मंदोदरी की गहरी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पूर्ण की। मंदोदरी ने इच्छा की थी कि उनका विवाह संसार के सबसे शक्तिशाली और विद्वान व्यक्ति से हो। शिवजी ने उनकी यह इच्छा पूरी की और परिणामस्वरूप मंदोदरी का विवाह लंकापति रावण से हुआ। इसीलिए, मेरठ को रावण की ससुराल कहा जाता है।

मय दानव का किला और मंदिर से जुड़ी कड़ी
इतिहासकार मानते हैं कि मौजूदा समय में जहां कोतवाली थाना स्थित है, वहीं एक समय मय दानव का विशाल महल और किला हुआ करता था। इसी किले से मंदोदरी बाबा बिल्वेश्वर नाथ मंदिर तक आती थीं और यहां जल अर्पित कर पूजा करती थीं। मंदिर परिसर में आज भी एक प्राचीन कुआं मौजूद है, जिसे फिलहाल बंद कर दिया गया बताते है उसी कुएं के जल से ही शिवलिंग पर अभिषेक किए जाने की परंपरा रही है।

मराठों ने कराया जीर्णोद्धार
मंदिर का स्वरूप समय-समय पर बदला। इतिहास में दर्ज है कि मराठों के शासनकाल में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। उस समय यह इलाका बिल्व वृक्षों से घिरा हुआ था और इन्हीं पेड़ों के कारण मंदिर का नाम पड़ा- बाबा बिल्वेश्वर नाथ। मराठा शैली की झलक आज भी मंदिर की वास्तुकला में देखी जा सकती है। यहां सावन के महीने में विशेष महत्व रहता है। दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए यहां पहुंचते हैं और मंदिर परिसर में भक्ति का माहौल चरम पर होता है।

स्वयंभू शिवलिंग और अनूठी मान्यता
मंदिर में स्वयंभू धातु का शिवलिंग स्थापित है, जिसकी पूजा-अर्चना भक्त बड़े श्रद्धाभाव से करते हैं। यहां यह मान्यता भी प्रचलित है कि यदि भक्त लगातार 40 दिन तक दीपक जलाए, तो उसकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। खासकर सावन के पवित्र महीने में यहां कन्याओं का आना और रुद्राभिषेक कर विवाह संबंधी मनोकामनाएं रखना एक परंपरा बन चुकी है।

सात सुरों वाले घंटे की अनोखी गूंज
मंदिर का ढांचा भी अपनी विशेषताओं के कारण चर्चित है। मुख्य द्वार की बनावट बद्रीनाथ धाम से मिलती-जुलती है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए झुकना पड़ता है, जो भक्त को विनम्रता और आस्था का अनुभव कराता है। सबसे खास है यहां स्थापित प्राचीन पीतल का घंटा। जब इसे बजाया जाता है तो इसमें से सात अलग-अलग सुरों की ध्वनि निकलती है। यह अनूठी विशेषता भक्तों को आकर्षित करती है और मंदिर के रहस्यपूर्ण स्वरूप को और गहरा करती है।

परंपरा और आयोजन: समाज की भागीदारी
मंदिर में सावन, शिवरात्रि और अन्य प्रमुख त्योहारों पर भव्य आयोजन होते हैं। समाज के लोग मिलकर इन कार्यक्रमों का खर्च उठाते हैं। यही कारण है कि एक पक्ष का मानना है कि मंदिर केवल पुजारियों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से चंदा इकट्ठा करने, आयोजन की कमान और मंदिर प्रबंधन को लेकर विवाद लगातार गहराता चला गया है। कई बार हालात पुलिस और प्रशासन तक को दखल देने पर मजबूर कर देते हैं।

वर्तमान स्थिति: पुलिस बल की मौजूदगी
29 अगस्त को होने वाले बलदेव बाबा की छठ महोत्सव को लेकर तनाव चरम पर पहुंच गया। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं और एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। प्रशासन ने एहतियातन कदम उठाते हुए मंदिर परिसर के बाहर पुलिस बल की तैनाती की है। अधिकारियों का कहना है कि किसी भी कीमत पर धार्मिक स्थल की शांति और आस्था को ठेस नहीं पहुंचने दी जाएगी।

धरोहर को बचाने की चुनौती
बाबा बिल्वेश्वर नाथ मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति की धरोहर भी है। रामायणकालीन इस धरोहर की रक्षा करना और इसकी गरिमा बनाए रखना प्रशासन, समाज और पुजारियों, तीनों की साझा जिम्मेदारी है। लेकिन, जब मंदिर पर कब्जे की जंग शुरू हो जाती है, तो कहीं न कहीं इसका असर सीधे भक्तों की आस्था पर पड़ता है। जरूरत है कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से मंदिर की गरिमा को बनाए रखते हुए कार्य करें, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी मंदोदरी और शिव की भक्ति से जुड़ी इस अनूठी परंपरा से परिचित रह सकें।