मेरठ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोट बैंक की राजनीति एक बार फिर गहराती जा रही है। पिछले एक दशक में जिस प्रकार से दलित वोट बैंक ने परंपरागत रूप से बहुजन समाज पार्टी को अन्य ठिकानों की तलाश की है। अब एक बार फिर उन्हें एक छतरी के नीचे लाने का प्रयास किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मायावती एक बार फिर अपने खोए वोट बैंक को समेटने की कोशिश करती दिख रही हैं। वहीं, दलित वोट बैंक पर कब्जे की कोशिश में जुटे चंद्रशेखर आजाद भी शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में हैं। इन कोशिशों में कांशीराम परिनिर्वाण दिवस एक बड़ी भूमिका निभाता दिख रहा है। कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस 9 अक्टूबर पर एक तरफ बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती महारैली में दहाड़ेगी। दूसरी तरफ आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी लखनऊ में ही आवाज बुलंद करेंगे। आसपा भी बीएसपी की तरह कांशीराम के नाम को पुरजोर तरीके से लखनऊ में ही उठाएगी। इसके लिए आसपा 9 अक्टूबर को 'भाईचारा बनाओ अस्तित्व बचाओ ओबीसी अधिकार महासम्मेलन' करना तय किया हैं।
9 साल बाद बसपा की तैयारी
दरअसल, बीएसपी भी इसी दिन अपने संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर 9 साल बाद लखनऊ में ही महारैली करने जा रही हैं। ऐसे में आसपा पर भी बीएसपी की तरह बड़ा आयोजन करने का अब दबाव है। आयोजन को वृहद रूप देने के लिए आसपा ने एक अक्टूबर को नए सिरे से रणनीति बनाने के लिए अपनी प्रदेश इकाई की बैठक बुलाई हैं।
क्यों महत्वपूर्ण कांशीराम?
दरअसल, कांशीराम, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक हैं। उन्होंने दलितों को राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था। बाद में उनकी मुहिम को मायावती ने आगे बढ़ाया। मायावती लंबे समय से खुद को प्रदेश और देश में दलितों को सबसे बड़े नेता और पार्टी के मुखिया के तौर पर पेश करती रही हैं। हालांकि, एक दशक में उनका वोट बैंक लगातार कमजोर हुआ है। चंद्रशेखर आजाद ने भी अपनी सियासी दल आजाद समाज पार्टी के साथ कांशीराम का नाम जोड़ा हुआ हैं। चंद्रशेखर, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इसी नाम से वह बिजनौर की नगीना लोकसभा सीट से सांसद भी चुने गए हैं। वे बसपा पर दलितों के राजनीतिक अधिकार दिलाने वाली राजनीति से पीछे हटने का आरोप लगाते हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी अध्यक्ष पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स के जरिए इस वर्ग को साधने में जुटे हैंद्ध
दोनों दलों का एक ही वोट बैंक
बीएसपी और आसपा दोनों दलों का एक ही वोट बैंक माना जाता हैं। 2026 में होने वाले पंचायत और 2027 के होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दल अपने परंपरागत वोट को हासिल करने की जोर आजमाइश में लगे हैं। मायावती की बीएसपी ने 2016 के बाद अब 2025 में लखनऊ में कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर महारैली करने जा रही हैं। बीएसपी ने कई लाख लोगों को बुलाने का लक्ष्य रखा गया हैं। ऐसे में दोनों दलों में अपना जनाधार बढ़ाने की होड़ लगी हैं। आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने सोमवार को एनबीटी को बताया कि 9 अक्टूबर को कांशीराम साहब के परिनिर्वाण दिवस पर आसपा लखनऊ में 'भाईचारा बनाओ अस्तित्व बचाओ ओबीसी अधिकार महासम्मेलन' करेगी। खुद वह भी शामिल होंगे। सम्मेलन में बहुजन भाईचारा और पिछड़े वर्ग के हक, अधिकार पर चर्चा होगी। फिलहाल यह आयोजन एक ऑडिटोरियम में रखा गया हैं लेकिन आयोजन के स्वरूप में बदलाव संभव हैं। इसके लिए पार्टी की यूपी इकाई एक अक्टूबर को नई रणनीति तय करेगी। उनका कहना है कि कांशीराम हमारे आदर्श हैं। उनके बताए रास्ते पर समाज के उत्थान के लिए काम आसपा आगे बढ़ रही हैं। बीएएपी का कहना है कि रैली के आगे विरोधी बोने साबित होंगे।
पूर्व सहयोगी हो रहे एकजुट
एक वक्त बीएसपी के राष्ट्रीय कोर्डिनेटर रहे जय प्रकाश, कई साल से पार्टी से बाहर हैं। उन्हें मायावती ने पार्टी से निकाल दिया था। वह अब बीएसपी में जाने की जुगत में हैं। आकाश आनंद और अशोक सिद्धार्थ के वापसी के बाद वह भी बहनजी से सोशल मीडिया पर माफी मांग चुके हैं। फिलहाल लखनऊ रैली के लिए बहुजन समाज के सभी लोगों से शिरकत करने की अपील सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म से कर रहे हैं। उनका कहना है कि 9 अक्टूबर को सभी को लखनऊ में बीएसपी की रैली में शिरकत करने जाना चाहिए।
