देश के लिए नहीं खेल पाए, कोच बनकर भारतीय टीम को फाइनल में पहुँचाया—अमोल मजूमदार की कहानी

नई दिल्ली: अमोल मजूमदार की कहानी सिर्फ एक कोच की नहीं है, यह उस खिलाड़ी की गाथा है जिसने कभी भारतीय टीम की जर्सी नहीं पहनी, पर उसने वह कर दिखाया जो शायद भारत के लिए खेलने वाले भी नहीं कर पाए। उन्होंने खुद मैदान पर मौका नहीं पाया, लेकिन दूसरों को वह मौका दिलाया और उसी से भारत को विश्व कप फाइनल तक पहुंचा दिया। भारत की महिला क्रिकेट टीम 2005 और 2017 के बाद सिर्फ तीसरी बार वनडे विश्व कप के फाइनल में पहुंची है और इस बार उसके चैंपियन बनने की संभावना पहले से कहीं ज्यादा प्रबल है।

फाइनल दो नवंबर को दक्षिण अफ्रीका से नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में है। भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में एक ऐसी ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराया जिसे हराना मुश्किल माना जाता है। हालांकि, अमोल मजूमदार के लिए ऐसा करना आसान नहीं था। उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, न सिर्फ बतौर कोच, बल्कि अपने खेलने के दिनों में भी। आइए उनकी कहानी जानते हैं…

बचपन और इंतजार की शुरुआत
मजूमदार का जीवन एक इंतजार से शुरू हुआ। 1988 में वह 13 साल के थे, जब स्कूल क्रिकेट के टूर्नामेंट हैरिस शील्ड के दौरान नेट्स में अपनी बल्लेबाजी की बारी आने का इंतजार कर रहे थे। उसी दिन अमोल की टीम से ही खेल रहे सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की ऐतिहासिक साझेदारी की। दिन खत्म हो गया, पारी घोषित कर दी गई, लेकिन अमोल को बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला। यह घटना उनके जीवन का प्रतीक बन गई। बैटिंग की बारी हमेशा उनसे कुछ दूर ही रही।

1993 में जब उन्होंने बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया, तो पहले ही मैच में 260 रनों की ऐतिहासिक पारी खेल डाली। यह तब विश्व में किसी भी खिलाड़ी की डेब्यू पारी में सबसे बड़ा स्कोर था। लोग कहने लगे- यह अगला सचिन तेंदुलकर बनेगा। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दो दशक से भी अधिक लंबे करियर में उन्होंने 11,000 से ज्यादा रन बनाए, 30 शतक जड़े, लेकिन कभी भी भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेल सके। वो एक सुनहरे युग के खिलाड़ी थे, जब टीम में तेंदुलकर, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण जैसे सितारे थे। मजूमदार उनके साए में खो गए।

हार नहीं मानी: पिता की एक बात ने सब बदल दिया
2002 तक आते-आते उन्होंने लगभग हार मान ली थी। चयनकर्ता बार-बार नजरअंदाज करते रहे। वो खुद कहते हैं, 'मैं एक खोल में चला गया था, समझ नहीं आ रहा था अगली पारी कहां से निकलेगी।' तभी उनके पिता अनिल मजूमदार ने कहा, 'खेल छोड़ना नहीं, तेरे अंदर अभी क्रिकेट बाकी है।' यह एक वाक्य उनकी जिंदगी बदल गया। उन्होंने वापसी की और 2006 में मुंबई को रणजी ट्रॉफी जिताई। इसी दौरान उन्होंने एक युवा खिलाड़ी रोहित शर्मा को पहली बार फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में मौका दिया। फिर भी, दो दशकों में 171 मैच, 11,167 प्रथम श्रेणी रन, 30 शतक के बावजूद उन्होंने भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेला।

कोच बनने की नई राह
सचिन तेंदुलकर ने 2014 में अमोल के संन्यास के वक्त कहा था, 'मजूमदार सच्चे अर्थों में खेल के सेवक हैं।' पर अमोल के मन में एक खालीपन रह गया और वह बताते हैं, 'मैंने भारत के लिए कभी नहीं खेला, यही एक कमी रह गई।' 2014 में क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद उन्होंने कोचिंग का रास्ता चुना। उन्होंने नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और राजस्थान रॉयल्स जैसी टीमों के साथ काम किया। उनकी पहचान एक ऐसे कोच की बनी जो कम बोलता है, लेकिन बहुत गहराई से हर चीज को समझता है। अक्तूबर 2023 में जब उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया गया, तो कई लोगों ने सवाल उठाए कि जिसने भारत के लिए कभी नहीं खेला, वो कोच कैसे बनेगा? लेकिन दो साल बाद, वही लोग उनके सामने सिर झुका रहे हैं।

कबीर खान की तरह टीम को बदला
2025 महिला विश्व कप के ग्रुप स्टेज में भारत का प्रदर्शन खराब रहा। इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से टीम को हार मिली। सोशल मीडिया पर मीम्स बन रहे थे, आलोचना चरम पर थी। तभी मजूमदार ने टीम के सामने कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया दी। हरमनप्रीत कौर बाद में बोलीं, 'मैंने इंग्लैंड मैच के बाद एक शब्द नहीं बोला। सर ने कहा- आप लोगों को यह मैच आसानी से खत्म करना चाहिए था। हम सबने उसे सही भावना में लिया क्योंकि अमोल सर जो भी कहते हैं, दिल से कहते हैं।' मजूमदार ने उस समय कहा, 'वह बात भावना से आई थी, लेकिन मकसद टीम को आगे बढ़ाना था।' यह वही पल था जिसने पूरी टीम की सोच बदल दी। उस एक बातचीत ने आपको उस आदमी के बारे में सब कुछ बता दिया, जिसने चक दे! इंडिया में शाहरुख खान के कबीर खान की तरह व्यक्तिगत अस्वीकृति को सामूहिक जीत में बदल दिया।

सेमीफाइनल: बस एक रन ज्यादा चाहिए
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल से पहले, उन्होंने ड्रेसिंग रूम की व्हाइटबोर्ड पर सिर्फ एक लाइन लिखी, 'हमें फाइनल में पहुंचने के लिए बस उनसे एक रन ज्यादा चाहिए, बस इतना।' साधारण वाक्य, लेकिन गहरी सोच। फिर चमत्कार हुआ। जेमिमा रॉड्रिग्स ने नंबर तीन पर बल्लेबाजी की, जैसा कि मजूमदार ने तय किया था। उन्होंने 127 रनों की नाबाद पारी खेली, जबकि कप्तान हरमनप्रीत कौर ने 89 रन बनाए। भारत ने 339 रनों का पीछा कर ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया। महिलाओं के वनडे इतिहास का सबसे बड़ा सफल चेज किया। टीम उछल पड़ी, लेकिन अमोल मजूमदार खामोश खड़े रहे। उनकी आंखों में नमी थी और चेहरा शांत था। उन्होंने कोई जश्न नहीं मनाया। उनके लिए यह जीत नहीं, एक अधूरी कहानी का अंत थी। कहानी यह कि- जिसने कभी भारत की जर्सी नहीं पहनी, उसने कोच बनकर भारतीय टीम को विश्व कप फाइनल तक पहुंचा दिया।

असल जिंदगी का 'कबीर खान'
समानताएं खुद-ब-खुद लिखी जाती हैं। चक-दे इंडिया के कबीर खान की तरह ही अमोल मजूमदार ने भी अनदेखे और गलत समझे जाने के जख्म अपने भीतर सहे। कबीर की तरह उन्होंने भी एक ऐसी टीम को संभाला, जिसे अक्सर अस्थिर और असंगत कहकर आलोचना की जाती थी। लेकिन अमोल ने उन खिलाड़ियों को स्पष्टता दी, दिशा दी और विश्वास दिलाया। लेकिन फर्क इतना है कि मजूमदार की कहानी किसी पटकथा लेखक की नहीं, जिंदगी की अपनी कलम से लिखी गई है। उनके सबक किसी किताब से नहीं आए, वे आए हैं वर्षों के इंतजार, खामोशी से जद्दोजहद करने और उस संवेदना से जो केवल वही महसूस कर सकता है, जिसने खुद कभी भुलाए जाने का दर्द झेला हो। ऑलराउंडर स्नेह राणा ने कहा, 'वो सबसे मिलनसार कोच हैं जो हमारे साथ रहे। वो कभी चिल्लाते नहीं, बस सुनते हैं। और जब बोलते हैं, तो आप बेहतर करना चाहते हैं।' मजूमदार ने टीम को सिर्फ तकनीक नहीं सिखाई, उन्होंने विश्वास करना सिखाया। उन्होंने खिलाड़ियों को यह महसूस कराया कि वो किसी भी मंच पर खड़ी होकर जीत सकती हैं।

अमोल मजूमदार: एक प्रतीक बन चुके हैं
अब चाहे भारत फाइनल जीते या हार जाए, लेकिन अमोल मजूमदार की कहानी पूरी हो चुकी है। जिस बच्चे को 13 साल की उम्र में बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला था, आज वही कोच बनकर पूरी टीम को चैंपियन बनने का मौका दे रहा है। कभी जो इंतजार उनका सबसे बड़ा दर्द था, वही अब उनकी पहचान बन गया है। उन्होंने दिखाया कि क्रिकेट सिर्फ मैदान पर खेलने वालों का खेल नहीं, बल्कि उन लोगों का भी है जो दिल से खेलते हैं। कभी-कभी खेल उन्हें याद नहीं रखता जिन्होंने खेला, बल्कि उन्हें याद रखता है जिन्होंने उसे बदल दिया, और अमोल मजूमदार ने सचमुच उसे बदल दिया है। जिसे बैटिंग की बारी कभी नहीं मिली, उसने पूरी टीम को जीत की बारी दे दी।